विश्व-शौचालय-दिवस का आयोजन ‘सबके लिए शौचालय’ की सदिच्छा

सुलभ द्वारा पूर्व-प्रधानमन्त्री स्वर्गीया श्रीमती इन्दिरा गाँधी जी के जन्म-दिवस 19 नवम्बर को प्रतिवर्ष विश्व-शौचालय-दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष भी सुलभ द्वारा यह दिवस धूम-धाम से मनाया गया। किन्तु छठ पर्व के कारण यह आयोजन 18 नवम्बर, 2012 को ही मनाया गया। आयोजन-स्थल सुलभ-परिसर था और आयोजन का आकर्षण थीं गोरखपुर की वे दो महिलाएँ, जो पिछले कुछ दिनों से चर्चा में रही हैं, क्योंकि उन्होंने अपने विवाह के पश्चात् अपनी ससुराल में शौचालय उपलब्ध नहीं होने के कारण वहाँ रहने से इनकार कर दिया था।


आयोजन में गोरखपुर से आईं इन दोनों महिलाओं श्रीमती प्रियंका भारती एवं श्रीमती प्रियंका राय और इनके पतियों क्रमशः श्री अमरजीत तथा श्री लालचंद राय को सुलभ के स्वच्छता-अधिकारी के रूप में सम्बद्ध किया गया और घोषणा की गई कि इस माह से इन चारों को सुलभ की ओर से अगले पाँच वर्षों तक 10-10 हजार रुपए प्रतिमाह मानदेय के रूप में दिए जाएँगे। इन स्वच्छता-अधिकारियों की जिम्मेदारी होगी कि ये अपने क्षेत्र में सुलभ के स्वच्छता-संदेश का प्रचार-प्रसार करेंगे।


कार्यक्रम की शुरुआत दिल्ली के लगभग 10 स्कूलों से आए बच्चों द्वारा एक मानव-श्रृंखला बनाकर इस संदेश के साथ कि ‘सबसे लिए शौचालय’ हो के उद्घोष से की गई। इस श्रृंखला में बच्चों के मध्य डाॅ. बिन्देश्वर पाठक, श्रीमती प्रियंका भारती एवं प्रियंका राय एक पथ-प्रदर्शक के रूप में उपस्थित थे। उनके सीने पर लगे ‘Toilet For All’ का रंगीन बैज भी अपने संदेश का खासा प्रचार कर रहा था।


उस श्रृंखलाबद्ध स्थान से ही डाॅ. बिन्देश्वर पाठक ने कहा कि जिस प्रकार से किसी धर्म के प्रचार के लिए धर्माचार्यों की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार सुलभ के संदेश के प्रचार के लिए भी ऐसे लोगों की आवश्यकता है, जो घर-घर जाकर स्वच्छता का संदेश प्रचारित करे।


मानव-श्रृंखला बनाने में सुलभ पब्लिक स्कूल के अलावा जिन अन्य स्कूलों ने भाग लिया, वे हैं-रोहिणी का प्रेस्टिज काॅन्वेंट स्कूल, द्वारका का श्री वेंकटेश्वर स्कूल, महावीर इन्क्लेव का शिववाणी माॅडल स्कूल, होली हार्ट पब्लिक स्कूल, मौसम विहार का एस.एल्.डी.ए.वी. पब्लिक स्कूल, सर्वोदय कन्या विद्यालय नं.-1, सेक्टर-6, द्वारका का सर्वोदय कन्या विद्यालय, महावीर इन्कलेव का गवर्नमेंट गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल, विनय नगर बंगाली सीनियर सेकेंडरी स्कूल, यूनिवर्सल पब्लिक स्कूल एवं सेक्टर-1, द्वारका का सर्वोदय कन्या विद्यालय।


इस अवसर पर सुलभ-परिसर में एक चित्र-प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया था, जिसमें सुलभ की स्थापना सन 1970 से लेकर आज-तक की उपलब्धियों की झाँकियों का प्रदर्शन था। अनेकानेक चित्रों में स्पष्ट था कि किस प्रकार सुलभ ने डाॅ. पाठक के नेतृत्व में इन 42 वर्षों में विकास किया है। इन चित्रों में देश-विदेश के अनेक राष्ट्रीय नेताओं द्वारा सुलभ-भ्रमण के चित्र थे। कुछ वर्ष पूर्व सुलभ में पधारे स्वीडन के प्रधानमन्त्री माननीय श्री फ्रेड्रिक रेनफील्ड और उनकी पत्नी के चित्र भी थे। इनके अलावा विभिन्न राज्यपालों, मुख्य मन्त्रियों, राजदूतों इत्यादि के आगमन का इतिहास भी उन चित्रों में प्रदर्शित था।


सुलभ के विकास पर सुलभ पब्लिक स्कूल के छात्रों ने भी विविध चित्रों और माॅडलों के माध्यम से स्वच्छता-आयामों को प्रदर्शित किया था। उसमें जिसने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा, वह था ‘एक दिन ऐसा आएगा, चाँद पर भी सुलभ पाएगा।’ इन्हीं तस्वीरों में यह भी स्पष्ट था कि अपशिष्ट जल-शोधन की सुलभ-द्वारा विकसित तकनीक बेहद कारगर एवं प्रासंगिक है।


सुलभ पब्लिक स्कूल तथा सुलभ व्यावसायिक प्रशिक्षण-केन्द्र के बच्चों द्वारा लगाए गए इन स्टाॅलों पर दर्शकों की भारी भीड़ थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे प्रगति मैदान में लगने वाला ‘अन्तरराष्ट्रीय व्यापार मेला’ यहाँ सुलभ-प्रांगण में सज गया हो। इन्हीं स्टाॅलों में एक स्टाॅल पर सुलभ व्यावसायिक-केन्द्र के फैशन डिजाइनिंग ट्रेड की छात्राओं ने अपनी शिक्षिका श्रीमती ज्योति मारवाह के सहयोग से एक फैशन शो का आयोजन किया था। इस फैशन शो की प्रमुख विशेषता यह थी कि इन लड़कियों द्वारा पहने गए खूबसूरत परिधानों पर जो दुपट्टे लिए हुए थे, वे ट्वाॅयलेट पेपर के बने हुए थे, इन परिधानों में सुसज्जित ये लड़कियाँ अति सौम्य लग रही थीं।


इन कपड़ों की विशेष खासियत यह थी कि इनके डिजायन ट्वाॅयलेट पेपर के बने थे। इन सूटों की तुलना माॅल और बड़े बाजारों में बिकने वाले महँगे सूटों से की जा सकती थी।


‘नई दिशा’ का स्टाॅल, जिसमें राजस्थान के अलवर और टोंक की पुनर्वासित स्कैवेंजरों द्वारा बनाए गए उत्पादों का प्रदर्शन था, भी बेहद ही आकर्षक ढंग से सजाया गया था। स्टाॅल पर पापड़, वड़ियाँ, वैफर, अचार और कई अन्य प्रकार की वस्तुएँ थीं। इस स्टाॅल को देखकर हर व्यक्ति चकित था कि कुछ वर्ष पूर्व तक अस्पृश्य समझी जानेवाली इन महिलाओं में सुलभ-द्वारा कितना परिवर्तन आया है। कल तक मैला ढोने वाली ये महिलाएँ आज ऐसी निपुण हैं कि लोगों के लिए खाद्य-उत्पादों का निर्माण कर उन्हें बाजार में बेच रही हैं। इनके द्वारा बनाया गया सामान बिक भी रहा है।

 

छात्रों द्वारा कुछ कविताओं का पाठ किया गया तो कुछ ने शौचालय एवं स्वच्छता पर अपने विचार व्यक्त किए।


सुलभ स्कूल सैनिटेशन क्लब के स्टाॅल पर क्लब-द्वारा की जा रही सभी गतिविधियों की जानकारी थी। एक छात्रा ने बताया ‘हम लोग जो भी करते हैं, उसका मुख्य उद्देश्य लोगों में स्वच्छता के प्रति जागरूकता लाना है।’ सैनिटेशन क्लब की विभिन्न शाखाएँ देशभर के कई स्कूलों में कार्य कर रही हैं। हमारा मकसद केवल शौच के बाद की स्वच्छता ही नहीं, बल्कि हम तो पूरे शरीर की स्वच्छता की जागरूकता लाना चाहते हैं, जिससे शरीर हर प्रकार के इन्फेक्शन से भी मुक्त रहे। यहाँ यह बताया जाता है कि साबुन से हाथ धोना भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि दाँतों को ब्रश करना।’


चित्र-दीर्घा में कुछ तस्वीरें स्कैवेंजरों के कष्टों की भी कहानी कह रही थीं। लोगों के शौचालय साफ करने के साथ अस्पृश्यता का जो व्यवहार उन लोगों के साथ किया जाता था, उन तस्वीरों में उस दर्द के स्पंदन को महसूस किया जा सकता था। हालाँकि देश का कानून अस्पृश्यता को नहीं मानता, फिर भी हमारे समाज में इसका प्रचलन आज भी है। इस चित्र-प्रदर्शनी को विभिन्न विद्यालयों से आए विद्यार्थियों ने भी बड़े ध्यानपूर्वक देखा।


पूरी प्रदर्शनी का अवलोकन करने के बाद डाॅ. पाठक एवं अन्य विशिष्ट व्यक्तियों ने सुलभ-सभागार में प्रवेश किया, जहाँ कार्यक्रम का आरम्भ सुलभ-प्रार्थना ‘आओ हम मिलजुल  के बनाएँ, सुलभ सुखद संसार...’ के साथ हुआ। गोरखपुर से आईं दोनों विशिष्ट महिलाओं और उनके पतियों का स्वागत शाॅल ओढ़ाकर और पुष्पगुच्छ प्रदान कर किया गया।


इस अवसर पर सुलभ-द्वारा एक चित्रकला-प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। पर्यावरण-विषय पर हुई उस प्रतियोगिता के विजेताओं को प्रमाण-पत्र एवं पदक-चिह्न प्रदान किए गए। इस अवसर पर कुछ छात्रों द्वारा कुछ कविताओं का पाठ किया गया तो कुछ ने शौचालय एवं स्वच्छता पर अपने विचार व्यक्त किए।

 

नेतृत्व यदि चाहे तो स्वच्छता एवं शौचालय-जैसे विषयों पर कार्य करने की दिशा में तेजी लाई जा सकती है

 

अपने वक्तव्य में डाॅ. बिन्देश्वर पाठक ने कहा कि ‘विश्व-शौचालय-दिवस’ पूरे विश्व में केवल औपचारिकता के लिए ही नहीं, बल्कि वास्तव में जीवन में शौचालय के महत्व को बताने के लिए मनाया जाता है। स्वास्थ्य एवं जीवन के आनन्द का प्रमुख आधार है एक स्वच्छ शौचालय और इसके अभाव में पर्यावरण को स्वच्छ रखना असम्भव है। लोगों का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहेगा, समय-समय पर महामारियाँ आएँगी। अभी हाल ही की बात है, पश्चिम बंगाल-सरकार के स्वास्थ्य-विभाग ने सर्वेक्षण के नजरिए से तीन गाँवों पर नजर रखी। इन तीन गाँवों में से एक गाँव में शौचालय थे, एक में शौचालय नहीं थे किन्तु जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध था, और तीसरे में न तो शौचालय था और न ही पर्याप्त मात्रा में जल की उपलब्धता थी। तीन माह बाद जाँच करने पर पता लगा कि जिस गाँव में शौचालय थे, वहाँ पर लोग रोगमुक्त रहे, जबकि अन्य दो गाँवों के लोग कई रोगों से ग्रस्त रहे। यह उदाहरण शौचालय की महत्ता को बताने के लिए काफी है।


शास्त्रों में विवरण है कि एक व्यक्ति को शौच के लिए अपने घर से कम-से-कम उतनी दूर अवश्य जाना चाहिए, जितनी दूर कमान से छूटकर एक तीर गिरता है। शौच के बाद मल को मिट्टी से ढँक देना चाहिए, जिससे कि वे पर्यावरण-प्रदूषण तथा बीमारी का स्रोत न बने। आज हमने गोरखपुर से इन दो महिलाओं को इसलिए यहाँ बुलाया है कि इन्होंने शौचालय के अभाव के कारण जो अपनी ससुराल छोड़ी, उससे समाज में शौचालय के महत्व का संदेश पहुँचा है।’ डाॅ. पाठक ने यह भी बताया कि एक अंग्रेज-परिवार में छह बच्चे थे और चूँकि घर में एक ही शौचालय था तो अपनी बारी की प्रतीक्षा में उन सभी ने डान्स करना सीख लिया।


आज यद्यपि समाज में शौचालय के महत्व को समझा जा रहा है, फिर भी शौचालय बनवाने के लिए अनुदान के आवेदन-पत्र लम्बे समय तक अटके रहते हैं, जबकि इस कार्य के लिए अनुदान देने का प्रावधान है। जब-तक नेतृत्व में इच्छा-शक्ति नहीं होती, तब-तक कार्यालयों में कार्य नहीं होता इस सन्दर्भ में डाॅ. बिन्देश्वर पाठक ने बिहार के एक विधायक श्री भागदेव सिंह की चर्चा की, जिन्होंने बिहार में स्वच्छता की गम्भीर समस्या को लेकर तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी जी को पत्र लिखा था। श्रीमती गाँधी ने बिहार के तत्कालीन मुख्यमन्त्री श्री केदार पांडेय को पत्र लिखकर बिहार में अधिक शौचालयों की आवश्यकता के लिए निर्देश दिए। इसके 14 दिन के भीतर ही मुख्यमन्त्री ने माननीया प्रधानमन्त्री से मिलकर विचार-विमर्श किया कि बिहार में शौचालयों की उपलब्धता के विषय में क्या उचित कदम उठाए जा सकते हैं।


शौचालय के महत्व के बारे में एक अन्य उदाहरण देते हुए डाॅ. पाठक ने कहा कि ‘अभी हाल ही में जब मैं राजस्थान के अलवर एवं टोंक की पूर्व स्कैवेंजरों को लेकर श्री राहुल गाँधी जी से मिलने गया तो मुलाकात के समय वहाँ सोनिया गाँधी भी स्वयं मिलने आ गईं। दरअसल, नेतृत्व यदि चाहे तो स्वच्छता एवं शौचालय-जैसे विषयों पर कार्य करने की दिशा में तेजी लाई जा सकती है।’


गोरखपुर से आई दोनों ही महिलाएँ श्रीमती प्रियंका भारती और श्रीमती प्रियंका राय ने अपने उद्गारों में  कहा कि वे सुलभ के प्रति कृतज्ञ हैं, केवल इसलिए ही नहीं कि सुलभ के द्वारा उनके जीवन में बड़ा परिवर्तन आया है, बल्कि इसलिए भी कि यहाँ आकर वे अनेकानेक महत्वपूर्ण लोगों से मिली हैं। उन दोनों ही ने कहा कि डाॅ. पाठक से मिलने के बाद उन्हें लगता है कि उनके कष्टों के दिन अब समाप्त हो गए हैं। अब तो उनके जीवन में केवल खुशहाली-ही-खुशहाली है। सुलभ ने उनके जीवन में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाया है।


सुलभ के सी.ई.ओ, पूर्व आई.ए.एस. श्री गोविन्द आर. पटवर्धन ने धन्यवाद-ज्ञापन देते हुए कहा कि जब मैं बिहार-ज्ञापन देते हुए कहा कि जब मैं बिहार-सरकार के साथ कार्य कर रहा था, तब बिहार-सरकार के पास उपलब्ध आठ हवाई-जहाजों में से केवल एक जहाज में ही शौचालय की सुविधा थी। बाद में तो उसको भी बैठने की सीट में परिवर्तित कर दिया गया था, जिससे एक अतिरिक्त व्यक्ति को बैठने का स्थान मिल सके। एक बार पूर्व प्रधानमन्त्री श्री राजीव गाँधी जी बिहार राज्य की अपनी यात्रा पर थे तो उन्हें उस हवाई-जहाज से यात्रा करने का अवसर आया। रास्ते में जब उन्हें यह जानकारी मिली कि इस जहाज में शौचालय सीट को बैठने की सीट में परिवर्तित कर दिया गया है तो वे बहुत नाराज हुए और उन्होंने जहाज से उतरते ही निर्देश दिया कि उक्त जहाज की परिवर्तित सीट को हटाकर पुनः उसमें शौचालय-सेवा आरम्भ की जाए।


श्री पटवर्धन ने कार्यक्रम को सफल बनाने में जिन-जिन व्यक्तियों ने सहयोग किया, उन सबको धन्यवाद दिया, खासकर बाहर से आए स्कूली बच्चों को।


साभार : सुलभ इण्डिया नवम्बर 2012

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