लेखक: अनुपम मिश्र
ढौंड गांव के पंचायत में छोटी-छोटी लड़कियां नाच रही थी और उनके गीत के ये बोल, सामने बैठे पूरे गांव को बरसात कि झड़ी में भी बांधे हुए थे | भीगते दर्शकों में ऐसी कई युवा और अधेड महिलाएं थी, जिनके पति और बेटे अपने जीवन के कई बसंत "परदेस" में ही बिता रहे हैं, ऐसे वृद्ध भी इस कार्यक्रम को देख रहे थे, जिनने अपने जीवन का बड़ा भाग "परदेस" की सेवा में लगाया है | और भीगी दरी पर वे छोटे बच्चे-बच्चियां भी थी, जिन्हें शायद कल परदेस चले जाना है |
एक गीत पहाड़ों के इन गाँवो से लोगों का पलायन भला कैसे रोक पायेगा ?
Post By: ashis
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