तदबीर से ही सुधरेगी स्वच्छता की तस्वीर

ऋतुपर्ण दवे

 

तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना ले, अपने पे भरोसा है तो एक दाँव लगा ले। कुछ इसी अंदाज में बीते 2 अक्टूबर से पूर्ववर्ती यूपीए सरकार का निर्मल भारत अभियान वर्तमान एनडीए सरकार की महत्वकांक्षी योजना स्वच्छ भारत अभियान बना। इसे शहरी और ग्रामीण इलाकों में शुरू किया गया। शहरी विकास मन्त्रालय के सर्वेक्षण का जो सच सामने आया है, लगता है प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी का वो सपना, जिसके दम पर उनकी एक अलग छवि बनी और नि:सन्देह लोकप्रियता भी बढ़ी, जल्द पूरा होता नहीं दिखता। हाँ, अति उत्साह कहें या दिखावा, क्या अधिकारी क्या नेता और क्या समाजसेवी, हर कोई हाथ में झाड़ू लिए फोटो खिंचाते कुछ इस अंदाज में दिखे कि लोग केवल अपने कचरे का प्रबंधन ही कर लें तो क्लीन इण्डिया कैम्पेन की सफलता तय है। दु:ख है कि ऐसा न हुआ, सब महज छलावा निकला जो चिंतनीय है। दोबारा न किसी ने झाड़ू हाथ में ली और न ही कचरा साफ करते दिखे। ऐसे में 476 शहरों की जो रिपोर्ट आई क्या गलत है, ये तो आनी ही थी।

 

जब प्रधानमन्त्री का स्वयं का संसदीय क्षेत्र बनारस का 418 नम्बर है, तो मध्यप्रदेश का दमोह सबसे आखिर 476 नम्बर पर हो तो इसमें चौंकना क्या। उत्तर और दक्षिण का फर्क भी खूब दिखा। इस रिपोर्ट का विश्लेषण जरूर चौंकाता है। रैंकिंग में केवल 3 राजधानियाँ ही टॉप 10 में आ पाईं, जो बंगलुरु 7, त्रिवेन्द्रम 8 और गंगटोक 10वें नम्बर पर हैं। प्रदेशों की बाकी बची 25 राजधानियों का क्रम हकीकत खुद ही बयाँ करता है। नई दिल्ली नगर पालिका परिषद 16, चंडीगढ़ 21, पुडुचेरी 23, अगरतला 32, पोर्ट ब्लेयर 34, आईजोल 35, गुवाहाटी 51, कोलकता 56, चेन्नई 61, दीमापुर 76, इम्फाल 83, शिमला 90, भोपाल 106, शिलांग 120, नवी मुम्बई 140, श्रीनगर 152, लखनऊ 220, राँची 223, हैदराबाद 275, रायपुर 293, गाँधीनगर 310, भुवनेश्वर 311, देहरादून 360, जयपुर 370 और पटना सबसे आखिर में 429 पर है।

 

शहरी विकास मन्त्रालय के सर्वेक्षण का जो सच सामने आया है, लगता है प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी का वो सपना, जिसके दम पर उनकी एक अलग छवि बनी और नि:सन्देह लोकप्रियता भी बढ़ी, जल्द पूरा होता नहीं दिखता। हाँ, अति उत्साह कहें या दिखावा, क्या अधिकारी क्या नेता और क्या समाजसेवी, हर कोई हाथ में झाड़ू लिए फोटो खिंचाते कुछ इस अंदाज में दिखे कि लोग केवल अपने कचरे का प्रबंधन ही कर लें तो क्लीन इण्डिया कैम्पेन की सफलता तय है।

 

यह सर्वेक्षण खुले में शौच, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, गन्दे पानी के शुद्धिकरण, पानी की गुणवत्ता और इससे होने वाली बीमारियों को लेकर था। कहने की जरूरत नहीं तस्वीर साफ है, भारत नहीं। स्वच्छ भारत अभियान मिशन पर वर्ष 2014-15 में विज्ञापन पर ही सरकार ने साल भर में 94 करोड़ रुपए खर्च कर दिए। इस अभियान को लेकर कुछ रोचक बातें भी हैं जैसे- कर्नाटक के मुख्यमन्त्री सिद्धरमैया ने अभियान के संयोजक पद के बजाय कार्यदल सदस्य बने रहना ही स्वीकारा था। आज उनका मैसूर देश में टॉपर है। मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान पर केन्द्र प्रायोजित योजनाओं हेतु गठित उप समूहों की अध्यक्षता का जिम्मा है, जिनका दमोह सबसे फिसड्डी है। त्रिपुरा के मुख्यमन्त्री माणिक सरकार को कौशल विकास पर गठित उप समूह की कमान सौंपी हुई है, जिनका अगरतला 32वें क्रम पर है। इस बारे में जो रिपोर्ट आई है, लगता है विधि मन्त्रालय को वैसी ही उम्मीद थी। इसीलिए एक ऐसा मसौदा तैयार किया जा रहा है जो कि आदर्श कानून हो और राज्य इसे न केवल स्वीकारें, बल्कि अपनी जरूरत के हिसाब से परिवर्तित भी कर सकें।

 

इस बारे में सरकार का मानना है कि स्वनियमन के बजाय कानून जरूरी है, जो स्वच्छता अभियान को लागू करने में दण्ड, जुर्माना के जरिए उसी प्रकार हो जैसा ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन पर घटनास्थल पर कार्रवाई करके दण्डित किया जाता है। शहरी क्षेत्र में हर घर में शौचालय बनाने, सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालय बनाने, ठोस कचरे का उचित प्रबंधन करने और 4041 वैधानिक कस्बों के 1.04 करोड़ घरों को शामिल करने का लक्ष्य है, साथ ही बाजार, बस अड्डे, रेलवे स्टेशन, पर्यटक स्थल और मनोरंजन स्थलों पर सर्व-सुविधायुक्त शौचालय बनाना शामिल है। पूरी परियोजना पर लगभग एक लाख 96 हजार करोड़ रुपयों से ज्यादा खर्च किया जाएगा और इसमें सभी से सहयोग की अपेक्षा भी की गई है।

 

यह तो रही कानून कायदों की बात अब जरा उन मुख्यमन्त्रियों और राजधानियों को भी जान लें जो टॉप 100 में भी जगह नहीं बना सके और सभी भाजपा के हैं। इनमें वसुंधरा राजे के जयपुर को 370, प्रधानमन्त्री के गृह राज्य की राजधानी और आनन्दी बेन के गाँधीनगर को 310, रमन सिंह के रायपुर को 293, रघुवर दास के राँची को 223, देवेन्द्र फड़नवीस के मुम्बई को 140 और शिवराज सिंह के भोपाल को 106वां रैंक मिला है। इससे कांग्रेस जरूर खुश होगी, क्योंकि बंगलुरु और तिरुवनंतपुरम को 7वीं और 8वीं रैंकिंग मिली है। पटना जरूर सबसे फिसड्डी रहा, जिसकी 429वीं रैंकिंग है। अब वहाँ चुनाव सिर पर है, जरूर बैठे बिठाए विरोधियों को एक मुद्दा जो मिल गया। साफ सफाई भला किसे नहीं भाती, जरूरत है इच्छाशक्ति की और कई बार इसके लिए सख्ती भी जरूरी होती है।

 

साभार : डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट 11 अगस्त 2015

लेखक ईमेल : rituparndave@gmail.com

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