सुतपा चक्रवर्ती
भले ही प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के कथन ‘पहले शौचालय, फिर देवालय’ पर समाज के विभिन्न वर्गों से विभिन्न प्रतिक्रियाएँ आई हों, किन्तु पद्मभूषण डॉ. पाठक ने जो स्टॉकहोम वॉटर प्राइज से सम्मानित हैं, उनके इस कथन का स्वागत किया है। डॉ. पाठक 03 जून को विश्व-पर्यावरण-दिवस के उपलक्ष्य में रवीन्द्र ओकाकुरा-भवन, कोलकाता में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे।
‘यदि आप किसी मन्दिर में जाते हैं और अचानक आपको शौच जाने की आवश्यकता महसूस होती है तो आप तुरन्त शौचालय की ओर भागते हैं। ‘डॉ. पाठक ने होम हाइजिन, यू.के. तथा इंस्टिट्यूशन ऑफ पब्लिक हेल्थ इंजीनियर्स, जिसका मुख्यालय सी.के. ब्लॉक में है, आयोजित कार्यक्रम में कहा। डॉक्टर पाठक भारत के सबसे बड़े गैर सरकारी संस्थान सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक हैं।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में शौचालय की तुलना में मोबाईल फोन के उपयोगकर्ता अधिक हैं। ‘स्वच्छता की समस्याओं का समाधान निकालने के लिए आवश्यक नहीं कि आपके पास तकनीकी ज्ञान हो, आपको केवल अपने मस्तिष्क का प्रयोग करना है,’ डॉ. पाठक ने स्वयं-द्वारा आविष्कृत दो गड्ढों वाली शौचालय-प्रणाली के बारे में जिसे उन क्षेत्रों मंे प्रयोग में लाया जा सकता है, जहाँ सीवेज व्यवस्था न हो, बताते हुए कहा।
उनके इस आविष्कार से ने केवल जल की बचत होती है, बल्कि इसमें अपशिष्ट के निपटान में किसी प्रकार के रसायनों की आवश्यकता भी नहीं पड़ती। इसके अलावा इसे साफ करने में स्कैंवेजर की आवश्यकता भी नहीं पड़ती। दो वर्षों के भीतर ही अपशिष्ट बैक्टीरिया-मुक्त हो जाता है तथा खाद के रूप में प्रयोग करने लायक हो जाता है।
कोलकाता में यूनीसेफ के अध्यक्ष श्री असादुर रहमान ने बताया कि सरकार की योजना के अनुसार, सन 2017 तक पश्चिम बंगाल राज्य को ‘खुले में शौच’ से मुक्त कर दिया जाएगा। उन्होंने आगे कहा, ‘किन्तु इस लक्ष्य को पाने में लोगों का सहयोग मिलना आवश्यक है।’
‘होम हाइजिन इन डिवलेपिंग कंट्रीज: प्रिवेंशन ऑव इंफेक्शन इन द होम ऐंड पेरी डोमेस्टिक सेटिंग्स’ के हिंदी एवं बाँग्ला-संस्करण का लोकार्पण श्री रहमान एवं डॉक्टर पाठक ने किया।
इसकी संरचना सन 2005 में आई.एफ.एच. (इंटरनेशनल फॉरम ऑन होम हाइजिन) तथा वॉटर सप्लाई एंड सेथ्नटेशन कोलेबोरेटिव काउंसिल, जो स्वयं एक अंतर सरकारी एजेंसी है-द्वारा की गई थी तथा इससे पहले इसके रूसी तथा उर्दू-संस्करण भी आ चुके हैं। यह शिक्षकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, नर्सों तथा अन्य स्वास्थ्य-कार्यकर्ताओं के लिए जो विकासशील देशों में विद्यालयों एवं सामाजिक स्वच्छता-कार्यक्रमों का विकास करते हैं, दिशा-निर्देश है।
‘भारत तथा ऐसे अन्य विकासशील देशों में घरेलू-स्वच्छता के उपायों में सम्वर्द्धन करना अन्य सभी बीमारी-रोधक उपायों में सस्ता है।’ यह कहना था भारत में आई.पी.एच.ई के अध्यक्ष तथा आई.एफ.एच. के दक्षिण -पूर्वी एशिया के क्षेत्रीय समन्वयक प्रो. के.जे. नाथा का।
यह भी बताया गया कि यदि घर में स्वच्छता न रखी जाए तो स्वच्छ-जल भी बीमारी रोकने में नाकाम हो सकता है। आमतौर पर सभी जल-जनित बीमारियाँ भोजन एवं पेय जल के मानव-मल से मिलने के कारण ही पैदा होती हैं। ‘विश्व-पर्यावरण-दिवस’ के अवसर पर इस वर्ष का विषय था, ‘अपनी आवाज उठाएँ... समुद्र-स्तर नहीं।’ इसका कारण था कि संयुक्त राष्ट्र ने सन 2014 को ‘इंटरनेशनल ईअर ऑफ स्मॉल आइलैंड डिवलेपिंग स्टेट्स’ घोषित किया है। मानव-क्रियाओं तथा वैश्विक
तापन के कारण पर्यावरण में जो परिवर्तन आया है, उससे छोटे विकासशील द्वीपीय राष्ट्रों के लिए समस्या पैदा हो गई है। यदि पर्यावरण-परिवर्तन की इस रफ्तार को नजरअन्दाज किया गया तो कुछ छोटे द्वीप, जिनमें किरीबाती, टोबैगो तथा मालदीव आदि हैं, इंसानों के रहने लायक नहीं रह जाएँगे एवं कुछ समय पश्चात् दुनिया के मानचित्र से गायब ही हो जाएँगे। हालाँकि प्रदूषण बढ़ाने में इन द्वीपों का कोई अहम रोल नहीं है, फिर भी सबसे अधिक नुकसान इन्हें ही झेलना पड़ेगा’, प्रो नाथ ने कहा।
डॉक्टर पाठक श्रीमती इन्दिरा गाँधी के शब्द ‘गरीबी सबसे बुरा प्रदूषण है’ को स्मरण कर कहते हैं कि ‘मैं उनकी इस बात से सहमत नहीं हूँ। मेरा मानना है कि ये अमीर राष्ट्र है, जो अधिकांश पर्यावरण-प्रदूषण उत्सर्जित करते हैं और साथ ही औद्योगिक कचरा भी।’
साभार : द टेलीग्राफ 20 जून 2014
सुलभ इण्डिया जून 2014