आभा बहादुर
भारत एक विशाल देश है। हमारे यहाँ रेलवे घरेलू पर्यटन के संचार का महत्वपूर्ण माध्यम है। भारतीय रेल विश्व की बड़ी रेल सेवाओं में से एक है और यह पर्यटन-उद्योग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसका नेटवर्क देश के सुदूरवर्ती क्षेत्रों को जोड़ता है। भारतीय होने पर हमें गर्व होना चाहिए और अपनी धरोहरों को विदेश से आनेवाले पर्यटकों को असीम गौरव के साथ दिखाना चाहिए। इसी को ध्यान में रखते हुए भारतीय उद्योग-संघ ने भारत के विकासशील पर्यटन-उद्योग के महत्व पर प्रकाश डालने के उद्देश्य से नई दिल्ली के इंडिया हैबिटाट सेंटर में 29 मार्च, 2011 को ‘भारतीय रेलवे: पर्यटन-विकास को प्रोत्साहन’ विषय पर एकदिवसीय सेमिनार का आयोजन किया।
भारत-सरकार के माननीय पर्यटन-मन्त्री श्री सुबोध कांत सहाय, जो इस समारोह के मुख्य अतिथि थे, का स्वागत डाॅ. बिन्देश्वर पाठक ने किया। सेमिनार में भाग लेने आए अन्य सभी अतिथियों का स्वागत भारतीय उद्योग-संघ राष्ट्रीय पर्यटन-समिति के सह-अध्यक्ष श्री अर्जुन शर्मा ने किया।
पहला सत्र ‘रेलवे: भारत में घरेलू पर्यटन को प्रोत्साहन देनवाला विभाग’ विषय पर केन्द्रित था। रेलवे के विकास से ही भारत में घरेलू पर्यटन की अत्यधिक वृद्धि हुई है, जिससे ग्राहकों की आवश्यकताएँ ही पूरी नहीं होती हैं, बल्कि राजस्व अर्जित करने के नए स्रोत भी उत्पन्न होते हैं।
दूसरे सत्र में ‘राज्यों में रेलमार्ग: पर्यटन-अनुभव में वृद्धि के उपाय’ विषय पर चर्चा हुई। इसमें संदेह नहीं कि घरेलू पर्यटन में वृद्धि और शहरी भारत के अलावा विदेशी पर्यटकों द्वारा विभिन्न स्थानों की खोज के प्रति जागरूकता ने रेल-पर्यटन को अत्यंत महत्वपूर्ण बनाया है और भारत में घरेलू पर्यटन की वृद्धि में भारतीय रेलवे ने योगदान दिया है।
तीसरा सत्र ‘रेल-पर्यटन: पहल और विपणन-प्रयास’ विषय पर केन्द्रित था। भारतीय रेल-मन्त्रालय को पर्यटन-मन्त्रालय-द्वारा विभिन्न प्रकार के उत्पाद उपलब्ध कराए गए हैं, जो अधिक किराए से लेकर कम किराया देनेवाले सभी वर्गों/श्रेणियों के यात्रियों के लिए हैं। ये उत्पाद धार्मिक स्थलों, पहाड़ी स्थानों तथा रेलयात्रा पैकेजों के लिए उपलब्ध हैं।
प्रातः कालीन सत्र में कार्यक्रम में भाग लेने वाले वक्ताओं ने पर्यटन-अनुभव में वृद्धि, महत्वपूर्ण पर्यटन-स्थानों तक और अधिक ट्रेनें चलाने, राज्यों के प्रस्तुतीकरण और विभिन्न राज्यों के प्रस्तुतीकरण और विभिन्न राज्यों के बीच चलने वाली ट्रेनों की आधारभूत सामग्री का आधुनिकीकरण और वित्तीय निधि रखने पर चर्चा की।
सुलभ इंटरनेशल सोशल सर्विस आॅर्गनाइजेशन की ओर से इस लेखिका ने ‘रेल-पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सुलभ की भूमिका’ पर प्रस्तुतीकरण दिया और बताया कि पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए शौचालय कैसे आवश्यक हैं। ब्रिटिश-काल में ‘भुगतान करो और उपयोग करो’ के आधार पर शौचालयों के रख-रखाव के लिए एक अधिनियम पारित किया गया था, किन्तु वह सफल नहीं हुआ। सन 1960 तक रेलवे-स्टेशनों, बस-स्टापों, बाजारों, धार्मिक और पर्यटन-स्थलों-जैसे सार्वजनिक स्थानों में सार्वजनिक शौचालय-जैसी कोई सुविधा नहीं थी।
भारतीय पुरातत्व विभाग और पर्यटन-विभाग के पहल पर सुलभ विश्व की धरोहर स्मारकों-आगरा के ताजमहल, दिल्ली के लालकिला, जयपुर के हवामहल, मुम्बई के गेटवे आॅफ इंडिया, औरंगाबाद के निकट अजंता की गुफाओं इत्यादि के पास उत्कृष्ट कोटि के शौचालय-परिसरों का रख-रखाव कर रहा है।
इसके अतिरिक्त पहाड़ी स्थल और समुद्र-तट पर्यटकों के प्रिय स्थल हैं, जहाँ अच्छी सफाई-व्यवस्था होनी चाहिए। सुलभ शिमला, मसूरी, दार्जिलिंग, नीलगिरि इत्यादि पहाड़ी स्टेशनों और गोवा के समुद्र-तटों पर सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण करवा रहा है।
धार्मिक पर्यटन-स्थलों पर भी स्वच्छ शौचालयों की आवश्यकता है, ताकि अन्तरराज्यीय पर्यटकों को सुखद अनुभव हो, जिनकी संख्या गत वर्षों में कई गुणा बढ़ गई है। महत्वपूर्ण स्थल हैं-पूर्वी भारत में बौद्ध-स्थल, उत्तराखंड में हरिद्वार, उत्तर-प्रदेश में वाराणसी और मथुरा, जम्मू में वैष्णो देवी और कटरा, महाराष्ट्र में शिरडी इत्यादि। सुलभ ने नासिक के निकट शिरडी में विश्व के विशालतम सार्वजनिक शौचालयों में से एक का निर्माण किया है और इसका रख-रखाव और प्रचालन कर रहा है। 500 से अधिक लोग प्रतिदिन इसका प्रयोग करते हैं। इसमें यात्रियों को समान रखने के लिए 5,000 लाॅकर्स भी उपलब्ध हैं।
भक्तों को अधिक संख्या में आकर्षित करने वाले अन्य महत्वपूर्ण स्थान हैं-गुजरात में द्वारकाधीश, झारखंड में देवघर, हिमाचल-प्रदेश में चामुंडा देवी, आंध्र-प्रदेश-स्थित तिरूपति में वेंकटेश्वर-मन्दिर इत्यादि।
सुलभ ने पोर्ट ब्लेयर, अंडमान-निकोबार द्वीप-समूह और राँची में रैन बसेरा की सुविधा के साथ शौचालयों का निर्माण करवाया है, जहाँ नाममात्र के शुल्क के भुगतान पर रात्रि-विश्राम की सुविधा उपलब्ध है।
साभार : सुलभ इण्डिया मई 2011