मनोज मिश्र
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो अक्टूबर को गांधी जयंती के अवसर ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का नारा दिया और खुद नई दिल्ली नगर निगम स्थित एक वाल्मीकि बस्ती में इस अभियान के तहत उन्होंने भी झाड़ू लगाए। लेकिन स्वच्छ भारत अभियान का एक दूसरा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि हमारे मोहल्ले, घरों, कार्यालयों आदि से सफाई के बाद निकलने वाले कूड़े का निबटान कैसे और कहां होगा? केवल दिल्ली में हर रोज निकलने वाले करीब दस हजार टन कचरे का निबटान एक बड़ी समस्या है। उसका निबटान कैसे किया जाए? उसे कहां रखा जाए?
नए कूड़ा घर को लेकर राजनीतिक झंडे लहरा जा रहे हैं
दिल्ली के तीनों कूड़ा घर (लैंडफिल) गाजीपुर, ओखला और भलस्वा डेयरी सालों पहले भर चुके हैं। अब वहां कचरे के पहाड़ बन चुके हैं, जो दिन-रात अपनी ऊंचाई बढ़ने से विकराल या भयावह स्थिति की चुनौती दे रहा है। हाईकोर्ट के आदेश से विशेषज्ञों की एक टीम ने कूड़ाघर के जिन 13 नई जगहों का सुझाव दिया था। वहां कूड़ाघर बनने से पहले ही स्थानीय लोगों ने विरोध का झंडा उठा लिया है। कहीं कांग्रेस तो कहीं भाजपा तो कहीं आम आदमी पार्टी (आप) इसके खिलाफ आंदोलन चला रही है। वोट की राजनीति करने वाली किसी भी पार्टी की सरकार के लिए यह आसान न होगा कि वह लोगों के विरोध को दरकिनार कर कहीं कूड़ा घर बना दे।
कूड़े से बिजली उत्पादन सिर्फ ओखला में ही शुरू हो सका है
तीनों पुराने कूड़ा घरों के कूड़े से बिजली पैदा करने की योजना भी सिरे नहीं चढ़ पा रही है। अभी प्लांट केवल ओखला का ही शुरू हुआ है। लेकिन वहां उसका विरोध शुरू होने से पहले ही हो रहा है। कूड़े के निबटान की सरकारी योजना तरीके न चलने की वजह से हर तरह का कूड़ा एक साथ कूड़ा घरों में आता है। हर तरह के कूड़े के आपस में मिलने से खतरनाक गैस निकलती है। इससे किसी बड़ी दुर्घटना का खतरा बना रहता है।
यह तय करना कठिन है कि मोहल्लों से कूड़ा उठाकर ले कहां जाया जाए। यह हाल देश की राजधानी दिल्ली का है। दिल्ली से जुड़े एनसीआर में तो कोई व्वस्था ही नहीं है। दिल्ली में कूड़ा उठाने का काम नगर निगमों के पास है। एक वरिष्ठ विधायक कहते हैं कि प्रधानमंत्री पहले दिल्ली में नगर निगमों को ठीक करें। इन नगर निगमों में एक तो सफाई कर्मचारी कम हैं, जो हैं भी उनमें बहुत से फर्जी और निगम अधिकारियों की सेवा में लगे हैं। निगमों के पास आधुनिक उपकरणों की भी कमी है। वहीं शहर के विभिन्न इलाकों में बने खत्तों (छोटे कूड़ा घरों) में हर तरह का कूड़ा डाला जाता है। लेकिन उसे कभी समय से नहीं उठाया जाता।
घरेलू कचरे का बड़ा हिस्सा खाद्य पदार्थों का होता है, वह निश्चित रूप से बेहतरीन खाद बनाने के काम आ सकता है। लेकिन उसके साथ जो प्लास्टिक, इलेक्ट्रॉनिक और मेडिकल कचरा होता है, वह इसे खतरनाक बना देता है। ये सब तरह के कचरे मिलकर रासायनिक क्रिया करते हैं। इससे निकलने वाली गैस बेहद खतरनाक होती है।
कचरे अलग-अलग भी नहीं किए जाते हैं
कचरों के इतने प्रकार हैं कि अगर उनकी छंटाई घर से न हो तो वे बाद में छांटे ही नही जा सकते हैं। घरेलू कचरे का बड़ा हिस्सा खाद्य पदार्थों का होता है, वह निश्चित रूप से बेहतरीन खाद बनाने के काम आ सकता है। लेकिन उसके साथ जो प्लास्टिक, इलेक्ट्रॉनिक और मेडिकल कचरा होता है, वह इसे खतरनाक बना देता है। ये सब तरह के कचरे मिलकर रासायनिक क्रिया करते हैं। इससे निकलने वाली गैस बेहद खतरनाक होती है।
प्लास्टिक थैली प्रतिबंधित, फिर भी 6000 टन सालाना कचरे का उत्पादन
सरकार ने सात जनवरी 2009 को दिल्ली में प्लास्टिक की थैली पर पाबंदी लगा दी थी। लेकिन उपयोग न रुकने पर 23 दिसंबर 2012 को एक सरकारी अधिसूचना जारी कर प्लास्टिक के उपयोग पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई। बावजूद इसके हर साल करीब 600 टन प्लास्टिक कचरा दिल्ली से निकलने का अनुमान है।
मेडिकल वेस्ट के लिए तो कड़े-से-कड़े विधान किए गए। अस्पतालों और नर्सिंग होम में मेडिकल वेस्ट के निबटारे का इंतजाम करना अनिवार्य किया गया। लेकिन अभी भी इस पर कड़ाई से अमल नहीं हो रहा है।
राजधानी दिल्ली में हर रोज तकरीबन 10 हजार टन कूड़ा निकलता है। इन कूड़ों में जाहिर है कि इलेक्ट्राॅनिक कचरा या ई-कचरा भी निकलता है। दिल्ली के अलग-अलग इलाके गाजीपुर, ओखला व भलस्वा डेयरी में बने लैंडफिल (कूड़ा घर) निर्धारित ऊंचाई को बहुत पहले ही पार कर चुके हैं। एक अनुमान है कि 2021 तक दिल्ली में हर रोज 16 हजार टन कूड़ा निकलने लगेगा। दिल्ली में इस समस्या को लेकर सरकार बहुत चिंतिंत भी नहीं दिखती है। मतलब यह कि कूड़े के निबटान पर काम करने में जितनी देरी होगी समस्या उतनी ही विकराल होती जाएगी।
स्वच्छ भारत अभियान का भी उसी तरह विरोधी नहीं होगा जैसे कोई व्यक्ति भ्रष्टाचार को जायज नहीं ठहराएगा। लेकिन सवाल यह है कि अगर कोई भ्रष्टाचार को सही नहीं मान रहा है तो भ्रष्टाचार को कर कौन रहा है? उसी तरह अगर सभी सफाई चाहते हैं तो गंदगी नहीं होनी चाहिए। प्रधानमंत्री दो अक्टूबर को दिल्ली के जिन तीन स्थानों पर गए उन जगहों का बुरा हाल कुछ घंटे में ही दिखने लगा। संभव है भय की वजह से कुछ दिन और यह अभियान चले लेकिन वास्तव में आजादी के आंदोलन जैसा अभियान बनने के बाद ही बेहतर नतीजे दिखेंगे। यह तो इस अभियान का एक पक्ष है, दूसरा पक्ष यह है कि अगर सही में दिल्ली में सफाई होने लगे और कूड़ा उठने लगे तो उस कूड़े का निबटान कैसे होगा? अगर दिल्ली में इसकी पक्की व्यवस्था नहीं होगी तो दूसरे शहरो या गांवों में कैसे होगी। कूड़ाघर बनाने से लेकर कूड़े का निबटान तक की चुनौती आसान नहीं है। एक अनुमान है कि 2021 तक दिल्ली में हर रोज 16 हजार टन कूड़ा निकलने लगेगा। यानी कूड़े के निबटान पर काम करने में जितनी देरी होगी समस्या उतनी ही विकराल होती जाएगी।
साभार : जनसत्ता, 5 अक्टूबर 2014