सफाई कामगारों की उत्पत्ति

संजीव खुदशाह

किसी भी शहर में आप सफाई करते भंगी को कहीं भी देख सकते हैं। यह विचारणीय है कि हिन्दुस्तान में सबसे निकृष्ट समझे जाने वाले इस कार्य को यह व्यक्ति क्यो कर रहा है? शायद इसका कारण गरीबी हो। परन्तु यह कारण पर्याप्त नहीं है, क्योंकि मैंने अपने सर्वेक्षण में पाया है कि यदि वह व्यक्ति (सफाई कामगार) छोटी-मोटी दुकान खोल ले, या रिक्शा चला ले तो अफसोस कि उसकी दुकान क्षण भर न चलेगी और न ही उसके रिक्शे में कोई बैठने को तैयार होगा।

सफाई कामगार अतिशूद्र वर्ग में आते हैं। भले उसकी पहचान स्वीपर (सफाईवाला) या भंगी है लेकिन यह उसकी जाति नहीं है। कुछ विशेष जातियाँ हैं जो यह कार्य करती है। इस समुदाय की उत्पत्ति, इतिहास, पतन ही इस विषय पर मुख्य ज्वलंत प्रश्न है। आइए इस समुदाय विशेष की उत्पत्ति के विषय में प्रकाश डालते हैं :-

इस पेशे का इतिहास उतना ही पुराना है, जब से ‘मेहतर’ शब्द ईजाद हुआ। मेहतर- फारसी शब्द है। पाकिस्तान स्थित किसी राज्य का राजा अपने नाम के आगे इसे सरनेम स्वरूप जोड़ता था (‘मैं भंगी हूँ’ के ले.एड. भगवान दास मुलाकात दिनांक 16.12.2001 (नई दिल्ली) के अनुसार पाकिस्तान स्थित चितराल का नवाब मेहतर कहलाता था)। यह उस वक्त की बात है जब मुगलों का आक्रमण भारत में हुआ। कुछ मुगल शासकों ने यहाँ पाँव जमाना शुरू किया। जब मुसलमान सेनापति, व्यापारी यहाँ बसने लगे, तो उनके (मन्त्रीगण तथा अधिकारियों की) बेगमें भी यहाँ रहने के लिए आईं।

 

जैसा कि विदित है कि पूर्व में पैखानों आदि की कोई व्यवस्था नहीं थी। उस समय मल-मूत्र त्याग हेतु मैदान जाना पड़ता था। किन्तु बादशाह, अधिकारी एवं उनकी बेगमों के लिए मैदान जाना असुरक्षित था। उन्हें भय था कि विद्रोही उनके ऊपर हमलें न कर दें। यह एक बड़ी समस्या मुगलों के सामने खड़ी हो गई। इसका हल यह निकाला गया कि महल में ही पैखाने बनाए जाएँ। पैखाना बनाया गया, इससे एक समस्या तो खत्म हो गई किन्तु दूसरी समस्या यह खड़ी हो गई कि इसकी सफाई कौन करेगा? इस समस्या से निजात पाने के लिए सफाईकर्मी की आवश्यकता थी। उस समय, पाक-नापाक, पवित्र-अपवित्र जैसे विचारवालों का काफी बोलबाला था, इसलिए इस कार्य को करने के लिए कोई तैयार न हुआ।

ऐसी स्थिति में बादशाह ने अपने बन्दी गृह में बन्द सैनिकों से (जो हिन्दू क्षत्रिय सैनिक थे) इस कार्य को करवाना प्रारम्भ किया। जो इसका विरोध करते, उन्हें कठोर दण्ड दिया जाता। कुछ लोगों ने सुविधा के लालच में इस्लाम धर्म स्वीकार करना प्रारम्भ किया। विरोधी मौत के घाट उतार दिए गए। कई पीढ़ियाँ यह कार्य करती रहीं। इस तरह पहले एक परिवार, फिर कई परिवार और अन्तत: कुनबा तैयार हो गया। इन्हें शेखड़ा, मुसल्ली, हलालखोर, मेहतर आदि नामों से पुकारा जाने लगा। बाद में ये लोग भूल गए कि ये कौन हैं, इनके पूर्वज कौन थे? आज भी इनमें गंगा-जमना सभ्यता (हिन्दू-मुस्लिम) एक साथ देखने को मिलते हैं।

बाद में बादशाह अकबर ने इस कार्य को महान कार्य बताया और इनको हलालखोर का नाम दिया। इस समुदाय के लिए विकास कार्य करने वाले तत्कालीन गुरु पीर बालाशाह नूरी ने इन पर काफी काम किया। उन्हीं के नाम पर ये ‘लाल बेग’ कहलाए। बाद में ये सभी मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में फैल गए एवं समय, स्थान की उपयुक्तता के आधार पर इनका नामकरण होता गया।

इस बात की पुष्टि इन तथ्यों से होती है :-

1. उत्तर-पश्चिम क्षेत्रों में स्थित भंगी हिन्दू-मुस्लिम दोनों सभ्यता मानते हैं। ये मोहर्रम में शेर बनते हैं और नमाज पढ़ते हैं। दीवाली में दिए भी जलाते हैं तथा पूजा करते हैं।

2. इनका नामकरण आज भी आधा हिन्दू-मुस्लिम पद्धति से होता है।

3. इसका सरनेम व क्षत्रिय सरनेम एक जैसा है। इसकी पुष्टि ‘नाच्यो बहुत गोपाल’ उपन्यास (अमृतलाल नागर) से भी होती है।

4. आज भी ये सभी मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में बहुतायत में पाए जाते हैं।

कुछ विद्वान मानते हैं कि उक्त परिकल्पना मिथ्या है। यह साजिश है हिन्दू को निर्दोष एवं सारा दोष मुसलमानों के ऊपर मढ़ने की। इनका मानना है कि यदि ऐसा होता तो आज से 2500 वर्ष पूर्व भगवान बुद्ध द्वारा भंगी सुणीत को धर्म दीक्षा देने का विवरण क्यों मिलता? जबकि यह घटना 2500 वर्ष पूर्व की है और मुगलों को आए 700 वर्ष ही हुए हैं।

श्री ओमप्रकाश वाल्मीकि जी यह बताते हैं कि जिन पाँच लोगों को जैन धर्म में प्रवेश पर मनाही है उनमें से एक भंगी भी है। जबकि यह धर्म बौद्ध से पूर्व का है। अत: उस वक्त के पूर्व से सफाई कामगार थे (श्री ओमप्रकाश वाल्मीकि से मुलाकात, दिनांक 5.11.2001, जबलपुर)।

साभार :  सफाई कामगार प्रारम्भ की परिकल्पना, प्रकार, भंगी का अभिप्राय एवं वर्गीकरण

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