संजीव खुदशाह
प्राचीन समय में आर्यों के सामाजिक बन्धन, नियम, कानून कड़े थे। प्रत्येक गाँव में पंच-पंचायत, सखीदार, चौधरी, राजा के रूप में प्रशासन चलाया जाता था। यह प्रशासन की इकाई थे। उस समय दण्ड के भागीदार अपराधी सत्ता विरोधी, दुश्चरित्र तथा कामचोर, लापरवाह लोग समाज से बहिष्कृत कर दिए जाते थे। कुछ लोगों को तड़ीपार की सजा भी मिलती थी।
भगोड़े या विरोधी सैनिक भी होते थे। इन्हें ग्राम में या शहर में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। ये लोग गाँव के बाहर ही रहते थे एवं गाँव वालों के रहमो-करम पर पलते थे। अपने पेट की ज्वाला शान्त करने के लिए ये लोग कुछ भी काम करने को तैयार थे। कुछ लोगों को दण्ड स्वरूप नीच पेशा अपनाने को दिया गया। इस प्रकार ये निम्न कोटि का कार्य करने के लिए बाध्य हुए। ये लोग ग्राम के बाहर रहते थे और उसी पेशे में रमने लगे। सम्भव है कि वे इन्हीं अनार्यों से ही मिल गए हों।
इसलिए भंगियों में आज भी ठाकुर सरनेम, ब्राह्मण सरनेम एवं अन्य सामान्य गोत्र वाले सरनेम भी मिल जाते हैं।
उपरोक्त अध्ययन से यह परिणाम मिलता है कि सफाई-पेशा दो प्रकार का रहा होगा। :-
(अ) कूड़ा-करकट एवं सड़क-आँगन में झाड़ू लगाना।
(ब) पैखाना साफ करना और झाड़ू भी लगाना।
ये लोग (मुसीबत के मारे) दलित रहे होंगे। यह तय है कि ये शासन के विरोधी रहे होंगे। यह जाति विदेशों से आयात नहीं की गई, बल्कि यहीं के समाज से बनी अर्थात वे इसी समाज के अंग रहे होंगे।
उपरोक्त परिकल्पनाओं एवं सफाई-पेशा के प्रकार के आधार पर इनका वर्गीकरण इस प्रकार होगा :
वर्ग (अ) की विशेषताएँ :-
1. इसमें क्षत्रिय सरनेमवाले लोग ज्यादा संख्या में मिलते हैं।
2. ये गंगा-जमुना सभ्यता, हिन्दू-मुसलमान दोनों धर्म को मानते हैं।
3. ये अत्यन्त गलीच काम करते थे। जिनमें टट्टी फेकना, मल को टोकरी में रखकर फेंकना आदि।
4. ये उत्तरी पश्चिमी भारत में रहते हैं। हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, गुजरात एवं पश्चिमी महाराष्ट्र।
5. इनका निवास ज्यादातर मुस्लिम बहुल शहरों मे है।
6. इनमें दूसरी जाति के लोगों को अपने में समाहित कर लेने की अद्भुत क्षमता है।
वर्ग (ब) 1 की विशेषताएँ :-
1. इनका निवास शेष भारत में था। ये जातियाँ दलित थीं एवं इनका मूल व्यवसाय सफाई के बजाए कुछ और था।
2. ये हिन्दू सभ्यता तो मानते हैं, किन्तु इनके मूल देवी-देवता हिन्दू पुराणों, वेदों में नहीं मिलते।
3. ये मूल रूप से मुर्दा फेंकने, श्मशान की चौकीदारी करना, जल्लाद का काम, साफ-सफाई करना, बाँस का काम, बैण्ड बजाना आदि था।
4. हिन्दू धर्म की उच्चवर्गीय जातियाँ मुसलमान नवाबों की तर्ज पर निजी मेहतर रखने लगे और इस कार्य के लिए इन्हें चुना गया। यह एक दुर्भाग्य है।
5. इनके पूर्वज नाग, दास, दानव, सुर, असुर आदि थे।
6. इनमें उच्च/ अन्य समाज से बहिष्कृत लोगों को अपने में कुछ नियमानुसार प्रवेश देते थे।
वर्ग (ब) 2 की विशेषताएँ :-
1. इनमें सभी सवर्ण कही जाने वाली जातियाँ हैं। ये आजादी के तीस साल बाद इस पेशे में आईं।
2. इस पेशे में आने का कारण आरक्षण व्यवस्था, बेरोजगारी एवं भुखमरी है।
3. लोग सरकारी नौकरी पाने के लालच में सरकारी संस्थानों में सफाई का काम कर रहे हैं। रेलवे में, निगम में कई ब्राह्मण, क्षत्रिय इस पेशे में आए।
भंगी
भाषाविज्ञान के आधार पर भंगी की उत्पत्ति भज् धातु से हुई है।
भञ्ज (भंज्) = तोड़ना, फोड़ना, छिन्न-भिन्न करना, चूर-चूर करना, टुकड़े-टुकड़े करना, खण्ड करना।
भंगी (भड्गी, भंगि) = (भञ्ज= इन् + कुत्वम, भड़ि = ड़ीव)
अ. शीघ्र टूटने वाला, भंगुर।
ब. किसी अभियोग से पछाड़ा हुआ (पृ. 728, श्री वी. आर. आप्टे का संस्कृत हिन्दी शब्दकोश)।
उपर्युक्त आधार पर चार निष्कर्ष निकल सकते हैं :
1. भंगी शब्द विशेषण है, संज्ञा नहीं।
2. अतः यह किसी जाति का नाम नहीं है बल्कि किसी समूह की विशेषता दर्शाता है।
3. पुल्लिंग के आधार पर तोड़ने पर भंगकर्ता की भंगी के रूप में विशेषता दर्शाता है।
4. स्त्रीलिंग के आधार पर टूटकर विखण्डित या चूर हुए की भी भंगी के रूप में विशेषता दर्शाता है।
भंगी के सम्बन्ध में अन्य मत भी प्रचलित हैं जैसे :
1. श्री भगवान दास अपनी पुस्तक ‘मैं भंगी हूँ’ में लिखते हैं कि जिस तरह रेड इण्डियन (भारतीय) आज अमेरिका का मालिक है, उसी प्रकार आर्य राजाओं के भारत में आक्रमण से वहाँ के राजाओं, मूल निवासियों में ऐसे लोग जिन्होंने आक्रमणकर्ता के समक्ष घुटने नहीं टेके, अपवित्र करार दिए गए। इन्हें दबाकर, कुचलकर आर्य (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य) यहाँ के मालिक बन गए किन्तु मूल निवासी को भंगी कहा गया।
2. श्री वाल्मीकि ने सरभंग जाति मतभेद पुस्तक में भगवान का नाम भंगी कहा है। इससे भी आगे बढ़कर उसमें बताया गया है कि भंगी और गंगा दोनों जनता के पापों का प्रक्षालन करते हैं। इसलिए इन दोनों को मुक्ति का भण्डार कहा जाना चाहिए। इस मायने में वे ऋषि के वीर्य से उत्पन्न हुए तीन पुत्रों में से एक की परवरिश क्रथनी नामक भंगन ने की। यही बालक आगे चलकर वाल्मीकि कहलाया। चूँकि क्रथनी भंगन थी, भंगियों ने वाल्मीकि को अपना गुरु मान लिया (नरक सफाई, पृ.128)।
3. भंगी इन्हें इसलिए कहा गया है क्योंकि ये अकारण काल में आर्यों के वैदिक रस्मो-रिवाजों में रुकावट पैदा करते थे, इन्हें भंग करते थे। इसलिए इन्हें भंगी कहा गया। वास्तव में यह इनका वास्तविक नाम न होकर दिया गया नाम है। जैसे ‘भारत’ का दिया गया नाम ‘इण्डिया’ उसी प्रकार हिन्दू नाम भी दूसरों का दिया हुआ है।
भंगी शब्द का पर्याय सफाई कामगार कब से हुआ यह ठीक-ठीक कहना कठिन है। यह जानना आवश्यक है कि क्या विदेशों में भी सफाई पेशा को गन्दा पेशा माना जाता है? डॉ. बाबा आढ़ब कहते हैं, “भंगी व्सवसाय केवल भारत में ही है। इस बयान की यथार्थता को जाँचने की भी आवश्यकता है। सुदूर पूर्व के कई देशों में अस्पृश्यता का बोलबाला होने का तथ्य प्रकाश में आया है। उदाहरण के लिए, ‘एटा’, चीन की ‘चीऐन’, तिब्बत की ‘रागयाप्पा’ आदि जातियों को लिया जा सकता है। जापान में भंगी काम को प्रतिष्ठित व्यवसाय माना जाता है। जापानी किसान अपने घर से मैला का डिब्बा अपने ही सिर पर ढोकर अपने खेत में ले जाते हैं और खाद की तरह उसे उपयोग करते हैं। वहाँ शौचालय को ‘शेतखाना’ कहते हैं। इस खाद को ‘सोनखत’ कहा जाता है (नरक सफाई, प्रस्तावना)।”
उक्त कथन से यह स्पष्ट होता है कि विदेशों में इस पेशे को गन्दा पेशा नहीं माना जाता है।
4. देहाती पेशों का विशेषता सूचक भी यह शब्द हो सकता है। गुजरात में बाँस की टोकरियाँ बुननेवाले को भंगी कहा जाता है। जाहिर है कि बाँस को भंग करना पड़ता है इसलिए इन्हें भंगी कहा जाता है। समाज में बाँस का काम ओछा माना जाता है।
5. मनुस्मृति में भी बाँस के कार्य को निकृष्ट दृष्टि से देखा गया है।
कर्मारस्य निषादस्य रंगावतारकस्य च।
सुवर्ण कुर्तवेणस्य शस्त्र विभीयिणस्तथा।। 4/2/215 मनुस्मृति
अर्थ : लोहार, मल्लाह, रँगरेज, सुनार, बाँस के काम तथा अस्त्र की बिक्री करने वालों के दिए हुए अन्न को ब्राह्मण कभी भी न खाए।
धनुः शरणां कर्ता च यश्चा ग्रेदिधिषूपतिः।
मित्र ध्रुग्धूतवृत्तिश्च पुत्राचार्य स्तचैव च।। 3/160 मनुस्मृति
अर्थ : जो धनुष-बाण बनाने वाला हो, जिसने अविवाहिता की छोटी बहन से विवाह किया हो, जो मित्र द्रोही हो, जो जुआ की जीविका करता हो तथा जो पुत्र से वेद का अध्ययन कराता हो, ऐसा ब्राह्मण भी श्रद्धा से वर्जित होता है।
कण्डिका 4 एवं 5 से जाहिर है कि बाँस का कार्य हिन्दू समुदाय में नीचा कार्य माना जाता रहा है। यही कार्य करने वाले बाद में बेरोजगारी के चलते एवं घृणा के कारण कथित भंगी पेशे में संलग्न हो गए होंगे। अतः इन्हें घृणित कार्य करने से पूर्व ही भंगी पुकारा जाने लगा था।
6. कहीं-कहीं भंगी को प्रतिलोम विवाह की सन्तति होने की सम्भावना व्यक्त की गई है। किन्तु प्रतिलोम विवाह (उच्चवर्णीय स्त्री और निम्न वर्णीय पुरुष का मिलन) की सन्तति को चाण्डाल माना गया है। जबकि चाण्डालों के लिए मनुस्मृति में जो कार्य दर्शाए हैं वे भंगी कार्य (सफाई कार्य) में नहीं आते हैं।
साभार : सफाई कामगार प्रारम्भ की परिकल्पना, प्रकार, भंगी का अभिप्राय एवं वर्गीकरण