शहरी क्षेत्र के 25 हजार लोग खुले में शौच को मजबूर

नीरज मिश्र

लखनऊ। स्वच्छता अभियान पर लाखों खर्च करने व जागरुकता अभियान चलाने के दावे भले ही किए जा रहे हों लेकिन आज भी शहरी क्षेत्र की कुल आबादी 28 लाख 13 हजार 33 लोगों में से 24 हजार 757 लोग आज भी खुले में शौच करते हैं। खुले में शौच जाने वाले अधिकतर लोग शहर की नई कालोनियों से लेकर पुराने बसे हुए मुहल्लों के हैं। खुले में शौच करने वाले ये लोग नाले के किनारे, खेत, तालाब, सड़क के किनारे, रेलवे लाइन के किनारे शौच के लिए जाते हैं। ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि जिला प्रशासन की सर्वेक्षण रिपोर्ट बता रही है।

खास बात ये है कि खुले में शौच करने वाले ये 24 हजार से अधिक लोग एक दो दर्जन मुहल्लों, कालोनियों वाले नहीं बल्कि 67 मुहल्लों के लोग हैं। मतलब कि 67 मुहल्लों के 24757 लोग खुले में शौच करने जाते हैं। इनके पास आज भी (उत्तर प्रदेश की) राजधानी जैसे इलाके में शौचालय तक नहीं हैं। खैर खुद का तो छोड़िए सरकारी और सार्वजनिक शौचालय भी इन इलाकों में नहीं हैं। नटखेड़ा, निलमथा, औरंगाबाद खालसा, बरौली खलीलबाद, वृन्दावन, मछली मण्डी, रहीमनगर, महानगर, खुर्रमनगर नाले के किनारे, इस्माइलगंज (कमता, विजईपुर, तखवा, कठौता) जरहरा, अमराई गाँव, पुराना दाउद नगर, मल्लाही टोला, अहमदगंज, गर्उघाट, सज्जादबाग समेत करीब 67 मुहल्लों के पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएँ और युवतियाँ भी खुले में शौच जाने को मजबूर हैं।

शौचालय के अभाव में ये लोग नालों, रेलवे लाइन के किनारे, तालाबों और सड़कों के किनारे शौच कर पूरी तरह से गन्दगी फैलाते हैं। चौक चौराहा निकट आगा बब्बर इमामवाड़ा के लोगों ने बताया कि इस क्षेत्र में सार्वजनिक शौचालय के निर्माण को लेकर पिछले एक वर्ष से भटक रहे हैं, लेकिन शौचालय निर्माण नहीं हो सका है। नगर निगम से लेकर जिला प्रशासन के अधिकारी सिर्फ आश्वासन ही देते रहे हैं। इससे महिलाओं व लड़कियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

अधिकतर झुग्गी झोपड़ी के लोग

खुले में शौच जाने वाले अधिकतर लोग झुग्गी झोपड़ी में निवास करते हैं। मसलन रेलवे लाइनों के किनारे, नालों के किनारे अथवा तालाबों और गोमती नदी के किनारे अवैध तरीके से कब्जा कर निवास कर रहे हैं। हजारों लोग ऐसे हैं, जो सड़क, पटरियों, पार्कों में रात बिताते हैं और खुले में शौच जाने को मजबूर हैं।

सार्वजनिक शौचालय पर लगते हैं पैसे

11 मुहल्लों में सार्वजनिक शौचालय तो हैं लेकिन इनमें पैसा अधिक लगने के कारण हर रोज लोग शौच के लिए नहीं जा सकते। इस वजह से इन इलाकों के लोग सार्वजनिक शौचालय होते हुए भी खुले में शौच करने जाते हैं। नटखेड़ा के कुम्हार मण्डी में छह सीटों, मल्लाही टोला में 10 सीटों, अहमदगंज में दो 4-4 सीटों का सुलभ इंटरनेशनल, प्रताप नगर में नगर निगम का 30 सीटों, हाथी पार्क नई बस्ती नबीउल्ला रोड में सुलभ शौचालय, रामपुर नहर किनारा में पाँच सीटों का सुलभ शौचालय है लेकिन वे सभी बन्द पड़े है।

खुले में शौच जाने वाले लोगों की सबसे अधिक आबादी

 

मुहल्ला

आबादी

औरंगाबाद खालसा

2,000

औरंगाबाद जागीर

1,500

पुराना दाउद नगर

750

रामपुर नहर किनारा

800

पारा हैदरगंज द्वितीय

800

बरहा सबौली रिंग

1,000

तकरोही

1,100

कंचनपुर मटियार (चमरही)

1,000

हरदासी खेड़ा

1,000

अकबर नगर

2,000

 

एक किलोमीटर दूरी पर भी नहीं हैं शौचालय

इन 67 मुहल्लों में से सिर्फ 11 मुहल्लें ही ऐसे हैं, जहाँ पर एक किलोमीटर की रेंज में सुलभ शौचालय मौजूद हैं। इसके अलावा 56 मुहल्ले ऐसे हैं, जहाँ पर एक किलोमीटर की दूरी तक एक भी सार्वजनिक शौचालय नही हैं। मसलन अकबर नगर में अल्पसंख्यक दलित कुकरैल नाले के किनारे, हरिजन कालोनी देवा रोड, कंचनपुर मटियारी, तकरोही, इस्माइलगंज, हरदासी खेड़ा के लोग खेतों व तालाबों के किनारे, मुनेश्वरपुरम मजरा पारा, केसरीखेड़ा, गंगाखेड़ा, इन्द्रपुरी, भोलाखेड़ा आदि मुहल्लों के लोग खुले मैदान और रेलवे लाइन के किनारे शौच जाते हैं।

इनका कहना है

1. मल्लाही टोला के मौलाना अब्दुल रशीद कहते हैं कि दो जून की रोटी जुटाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। सरकारी अनुदान का लाभ मिले तो शौचालय का निर्माण करेंगे।

2. लाडली बेगम बताती हैं कि शौचालय के लिए सामाजिक व सरकारी दोनों स्तर पर प्रयास किया जाना चाहिए। महिलाओं के सम्मान का सवाल है।

3. मुखिया खैरुन खातून बताती हैं कि कुछ लोगों ने सरकारी सहायता मिलने की उम्मीद में शौचालय का निर्माण कराया था। लेकिन राशि नहीं मिलने के कारण लोगों ने रुचि लेना छोड़ दिया है।

4. सदर तहसील में कुल 24757 लोग खुले में शौच जाने को मजबूर हैं। लेखपालों के माध्यम से सर्वेक्षण कराकर रिपोर्ट तैयार कर ली गई है। ऐसे सभी लोगों के लिए सार्वजनिक शौचालयों की व्यवस्था की जाएगी। इसकी रिपोर्ट जिलाधिकारी को जल्द सौंपी जाएगी- शत्रोहन वैश्य, एसडीएम सदर।

साभार : डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट 20 मार्च 2015

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