राजु कुमार
मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के चिचोली विकासखण्ड का सिपलई गाँव खुले में शौच से मुक्त गाँव बन गया है। गाँव के बच्चे और महिलाएँ भी खुश हैं कि अब उनके घरों में शौचालय है। शौचालय बनने के बाद उन्होंने शौचालय का उपयोग भी शुरू कर दिया। पर अब उनके माथे पर चिन्ता की लकीरें दिखने लगी हैं। गाँव पानी की समस्या से जूझ रहा है और पानी के लिए उन्हें पूरे दिन मशक्कत करनी पड़ रही है। ऐसे में ग्रामीणों को यह चिन्ता सता रही है कि क्या पानी के अभाव में वे शौचालय का उपयोग नियमित रूप से कर पाएंगे? इस कठिन सवाल का जवाब गाँव के किसी अधिकारी के पास भी नहीं है। यद्यपि यह कोशिश की जा रही है कि गाँव में जल्द से जल्द नल-जल योजना का प्रस्ताव तैयार हो जाए, जिस पर अमल कर इस समस्या से निजात पाई जाए।
भारत की जनगणना 2011 के अनुसार 611 जनसंख्या वाले सिपलई गाँव में कुल 131 परिवार रहते हैं। यह गाँव देवपुर कोटमी पंचायत में आता है। गाँव में छह हैंडपम्प हैं, जिसमें से दो पूरी तरह खराब हैं। अन्य से पानी बहुत ही कम निकलता है। पानी के लिए महिलाओं एवं बच्चों को सुबह से ही दिन भर हैंडपम्प या खेतों के ट्यूबवेल के चक्कर लगाने पड़ते हैं। गाँव की सुश्री फुन्दा बाई कहती हैं, ‘‘पूरा परिवार पानी लाने के काम में ही व्यस्त रहता है। खाना बनाने एवं बर्तन के अलावा अब शौचालय में उपयोग के लिए भी पानी का इंतजाम करना पड़ता है।
गाँव को खुले में शौच से मुक्त बनाने के लिए पिछले साल ट्रिगरिंग कर समुदाय आधारित स्वच्छता अभियान चलाया गया था। पहले से गाँव में 45 शौचालय विभिन्न योजनाओं और निजी तौर पर बनाए गए थे। अभियान के दरम्यान जिला एवं विकासखण्ड स्तर के अधिकारी, सरपंच, सचिव एवं ग्रामीणों ने आगे बढ़कर शौचालय निर्माण में हिस्सा लिया। एक साथ सभी घरों में शौचालय बनाने के लिए राजमिस्त्रियों को प्रशिक्षण दिया गया। 10-10 राजमिस्त्रियों के पाँच समूह बनाए गए। सभी ने मिलकर महज एक महीने में सभी परिवारों के यहाँ शौचालय बना दिए। शौचालय के उपयोग को लेकर यहाँ के अधिकांश ग्रामीण सहमत थे, पर पूरी तरह से खुले में शौच से मुक्त गाँव बनाने के लिए बच्चों एवं महिलाओं की निगरानी समिति बनाई गई।
पंचायत सचिव भवानी यादव कहते हैं, ‘‘गाँव के चारों ओर पहले मल पड़ा रहता था, पर अब पूरा गाँव साफ-सुथरा दिखता है। गाँव से कुछ दूरी पर एक छोटा तालाब है, जहाँ लोग शौच के लिए जाते थे, पर अब वह भी साफ-सुथरा है।’’ वे कहते हैं कि अधिकांश लोग पहले भी जब बाहर शौच के लिए जाते थे, तब घर से ही पानी लेकर जाते थे, इसलिए पानी की समस्या के कारण शौचालय का उपयोग प्रभावित होना सम्भव नहीं दिखता। यद्यपि गाँव में नल-जल योजना से पानी की व्यवस्था हो जाएगी, तब पानी की समस्या का समाधान हो जाएगा।’’
महिलाओं को भी लगने लगा है कि बाहर शौच जाने के बजाय शौचालय का उपयोग करना बेहतर है। पर पानी को लेकर उनकी चिन्ता बनी हुई है। सुश्री जुगनी बाई पानी की समस्या पर कहती हैं, ‘‘सरपंच और सचिव ने शौचालय बनवा कर दिए। हम शौचालय का उपयोग कर रहे हैं, पर पानी की व्यवस्था हमारे लिए बड़ी परेशानी है। सरपंच और सचिव मिलकर गाँव में पानी की व्यवस्था करें और हमें इस समस्या से मुक्ति दिलाए।’’