शौचालय के अभाव से सर्वाधिक कष्ट उठाती हैं स्त्रियाँ वह अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करता है

बदायूँ के सामूहिक बलात्कार-कांड के महीने भर बाद यह तथ्य सामने आया कि घरेलू शौचालय का अभाव औरतों और नाबालिक बच्चों को कितने भंयकर खतरों का शिकार बनाता है- भारत का शौचालय परिदृश्य चिन्ताजनक है। सुलभ-स्वच्छता-आन्दोलन के संस्थापक पद्मभूषण डॉ. बिन्देश्वर पाठक उस संगठन के जनक हैं, जो देशभर मंे किफायती शौचालय के निर्माण में सहायता करता है। फोजिया यासीन से बातचीत करते हुए वह उचित शौचालय के न होने की सामाजिक-आर्थिक कीमत के विषय में बताते हैं, उसके निदान के बारे में बातें करते हैं, सबसे अच्छे और सबसे खराब राज्यों की मूलभूत सुविधाओं के प्रावधान के बारे में चर्चा करते हैं:-

 

हाल के अपराध शौचालयों के अभाव की स्थिति को उजागर करते हैं। आप स्थिति का मूल्यांकन किस प्रकार करते हैं ?

ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय के अभाव से सबसे ज्यादा असुविधा औरतों को होती है। उन्हें शौच के लिए खुली जगहों पर जाना पड़ता है। सूर्यास्त या सूर्याेदय से पहले। पुरूषों की तरह दिन में वे ऐसा नहीं कर सकती : बलात्कार का खतरा, जानवरों के आक्रमण का डर, साँप के काटने का भय। बहुत सी लड़कियाँ स्कूल इसलिए नहीं जाती, क्योंकि वहाँ शौचालय नहीं हैं।

स्वच्छता-सम्बन्धी अवांछनीय अवस्था में 50 किस्म की बीमारियाँ होती हैं। इसका प्रभाव बड़े पैमाने पर आर्थिक स्थिति पर भी पड़ता है-कार्य-दिवस नष्ट हो जाते हैं, स्वास्थ्य की देखभाल के खर्चे बढ़ जाते हैं।

'सुपर पावर’ होने का उद्देश्य रखने वाले देश में स्वच्छता को प्राथमिकता क्यों नहीं दी जाती ?

शौचालय का प्रावधान और हाथ से मैला-सफाई को खत्म करना पिछली सरकार की प्राथमिकताएँ थीं। लेकिन कार्यक्रम को सन्तोषजनक ढंग से अमल में नहीं लाया जा सका। बहुत से वायदे किए गए, पर वे पूरे नहीं हुए। आज जो फंड उसके लिए आवंटित किए गए हैं, वे काफी नहीं हैं। धनाढ्य लोगों को भारत में नया स्वच्छता-आन्दोलन चलाने के लिए खर्च करना चाहिए। 690 सन्पन्न व्यक्तियों की सहायता से भारत के 690 जिलों मंेे काम किया जा सकता है।

वर्ल्ड बैंक की एक रिपार्ट में कहा गया है कि देश में 60 करोड़ लोगों को खुली जगहों में शौच करना पड़ता है। इस समस्या का समाधान कैसे निकाला जाए ?

यह शर्म की बात है। देश को आज 120 मिलियन शौचालयों की जरूरत है। हमारे लिए बड़े पैमाने पर सार्वजनिक शौचालयों और मूत्रालयों के निर्माण की जरूरत है देश के शहरों और कस्बों में। शहरी स्लमों में निवासियों का जमीन पर कोई अधिकार नहीं प्राप्त होता है, आज वे अपने घरों के भीतर भी शौचालय का निर्माण नहीं कर सकते। उनके लिए सार्वजनिक शौचालय, मूत्रालय, स्नानघर और कपड़े धोने की जगहें और एक छोटे स्वास्थ्य-केन्द्र बनवाए जाने चाहिए। ऐसे शौचालयों का रख-रखाव नगर-निगमों को निःशुल्क करना चाहिए।

भारत विशाल जनसंख्या का एक बड़ा देश है। उसके युवा कैसे सहायता कर सकते हैं ?

शुरुआत करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रांे में शौचालयों के निर्माण और उनके रख-रखाव कार्य में प्रति ब्लाक में 5 लड़कियों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। भारत में 5,924 ब्लॉक या तल्लुका हैं। अतः इस प्रक्रिया में 30,000 लड़कों-लड़कियों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।

शहरी क्षेत्रों में ऐसे युवकों को यह अनुमति दी जानी चाहिए कि वे अपनी देखभाल के लिए कुछ राशि लिया करें, ताकि वे उत्प्रेरक की तरह काम कर सकें। उन्हें घर-घर जाकर खुले में शौच की खराबियों के बारे में लोगों को बताना चाहिए तथा सुविधाएँ उपलब्ध कराने में मदद करनी चाहिए।

मूलभूत सुविधाओं के सिलसिले में देश के तीन सर्वाधिक अच्छे और सर्वाधिक खराब राज्य कौन-कौन से हैं ?

गोवा, महाराष्ट्र और उत्तराखंड स्वच्छता के क्षेत्र में सबसे ऊपर हैं। मध्य-प्रदेश, उत्तर-प्रदेश और बिहार सबसे खराब स्थिति वाले राज्य हैं।

अंग्रेजी से साभार अनूदित

साभार : द टाइम्स ऑफ इण्डिया 27 जून 2014

सुलभ सुलभ इण्डिया जून 2014

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