शौच एवं स्वास्थ्य

डॉ. सुरेन्द्र सिंह राजपूत

 

मिलता जीवन शौच से, शुद्ध शौच से होय।

शौच बिना सब व्यर्थ है, सुखी शौच से होय।।1।।

 

शौच सभी करते मगर, करना जाने कोय।

नहीं ठीक से बैठते, शौच त्यागते होय।।2।।

 

 

निश्चिंत हो न बैठते, शौचालय में जाय।

व्यर्थ भटकता मन फिरे, शौच कहाँ से आय।।3।।

 

जो व्यक्ति ब्रह्ममुहर्त में, शय्या देते त्याग।

पेट साफ उनका रहे, खुल जाते हैं भाग।।4।।

 

सोई की भाँति अगर, शौचालय हो साफ।

रोग दूर से ही कहे, हमको करना माफ।।5।।

 

खुशी-खुशी भोजर करै, खुशी-खुशी सो जाय।

प्रातःकाल उठते ही पेट साफ हो जाय।।6।।

 

उचित साफ-सफाई का, सदा धरे जो ध्यान।

रोग दूर उनसे रहे, बचें पैसे व प्राण।।7।।

 

घर की भाँति ही अगर, सार्वजनिक स्थल साफ।

सारा भारत स्वस्थ हो, जग में चमके साफ।।8।।

 

सुलभ शौचालय का यदि, सभी करें उपयोग।

स्वस्थ होंगे लोग सभी, दूर भागेंगे रोग।।9।।

 

सुथरे तन के साथ ही, मन भी सुथरा होय।

सभी तरह से स्वस्थ हों, रोगी रहे न कोय।।10।।

 

भूख लगै भोजन करै, नींद आय सो जाय।

ब्रह्ममुहूर्त में जो उठे, उसे रोग रहे न कोय।।11।।

 

यदि सुबह को उठते ही, शौच नहीं हो पाय।

निश्चिंत हो मन्जन करें, पेट साफ हो जाय।।12।।

 

साभार : सुलभ इण्डिया जून 2014

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