साठ करोड़ का बजट, सफाई व्यवस्था चौपट

नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग का भारी भरकम बजट होने के बावजूद शहर में सफाई व्यवस्था की हालत बदतर है। चालू वित्तीय वर्ष में इस विभाग पर करीब साठ करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। साल भर में सवा सात करोड़ रुपए से ज्यादा का बजट बढ़ाकर भी यह विभाग आमजन की आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतर सका है। गन्दगी और सीवर जाम की विकट समस्या से अधिकांश वार्डों के नागरिक परेशान हैं।

नगर निगम में स्वास्थ्य विभाग का महत्वपूर्ण योगदान है। शहर भर में सफाई व्यवस्था को दुरुस्त रखना ओर नाले नालियों की नियमित रूप से सफाई कराना इस विभाग का दायित्व है। इसके अलावा संक्रामक रोगों से निपटने के लिए भी यह विभाग कसरत करता रहता है। सूत्रों के मुताबिक वर्ष 2013-14 में स्वास्थ्य विभाग हेतु 52 करोड़ 62 लाख 35 हजार 490 रुपए का बजट निर्धारित किया गया था।

वर्ष 2014-15 में यह बजट बढ़ाकर 57 करोड़ 50 लाख रुपए कर दिया गया। कुछ दिन पहले बोर्ड बैठक से मंजूर पुनरीक्षित बजट में इस विभाग का अनुमानित बजट 60 करोड़ रुपए किया गया है। यानि पिछले वित्तीय वर्ष के मुकाबले यह बजट 7 करोड़ 37 लाख 64 हजार 510 रुपए अधिक है। सफाई कर्मचारियों को वेतन, नालों की साफ-सफाई, संक्रामक रोगों के रोकथाम हेतु आकस्मिक कार्य शहरी मलिन बस्तियों और ग्रामीण क्षेत्रों में सफाई कार्य आदि मद में उपरोक्त बजट खर्च होना है। नालों की सफाई के लिए बजट में डेढ़ करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। भारी भरकम बजट होने के बावजूद स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली हमेशा सवालों के दायरे में रहती है। नगर निगम सीमांतर्गत 80 वार्ड क्षेत्र हैं।

अधिकांश वार्डों में सफाई व्यवस्था की हालत पतली है। शहीद नगर, जवाहर पार्क, कैलाभट्टा, पुराना विजयनगर, नन्दग्राम, घूकना, लाजपत नगर, श्यामपार्क मेन, पप्पू कॉलोनी, पसौंडा, चमन कॉलोनी, जटवाड़ा, मालीवाड़ा, भाटिया मोड़, पटेल मार्ग आदि क्षेत्रों में नियमित रूप से साफ-सफाई न होने से अक्सर संक्रामक रोग फैलने का खतरा रहता है। शहर भर में प्रतिदिन 800 मीट्रिक टन से अधिक कूड़ा कचरा निकलता है। विभाग मुश्किल से 500 मीट्रिक टन कचरे की लिफ्टिंग करा पाता है। नगर निगम क्षेत्र में डम्पिंग ग्राउंड का भी अभाव है। कूड़ा कचरा फेंकने हेतु पर्याप्त स्थान का अभाव है। बोर्ड एवं कार्यकारिणी बैठक में पार्षद अक्सर चौपट सफाई व्यवस्था पर हो-हल्ला मचाते हैं, मगर अफसर आश्वासन देकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। कुछ माह पहले स्वास्थ्य विभाग के वाहन चालकों पर डीजल चोरी के गम्भीर आरोप मढ़े गए थे। पार्षदों का कहना था कि कूड़ा कचरा उठाने की बजाए ज्यादातर वाहन चालक डीजल को बेच देते हैं। कूड़ा  लिफ्टिंग का कार्य सिर्फ कागजों में होता है।

साभार : नेशनल दुनिया 23 फरवरी 2015

Post By: iwpsuperadmin
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