Poem by Fariyadhi - पत्थर भी बोलते हैं

टूट कर आज हिमालय भी
हमको आवाज लगाता है 
मौन पड़े हैं वो जलप्रपात 
उपवन का जो मन बहलाता है 
कलरव चिड़ियों का 
भोर नहीं ले कर आता 
लाठी डंडे चीख पुकारें
रोज़ सवेरा अब ऐंसा आता
पहाड़ काट कर सड़कें बनती 
नदियाँ रोक कर बनते बांध
खुद को ही छल रहा धरा पर
अबोध बना ये इन्सान 
आसमान खामोश खड़ा है 
सूरज तक हैं इस पर हैरान 
तारे टूट पड़ते हैं धरती पर 
चाँद ठगा सा लगता वेजान  
हर मोड़ पर मनचले मिलते हैं 
पग पग पर जल जले निकलते हैं 
क्या होगा इस धरती का 
अब पत्थर भी ये बोलते हैं ............रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'  
Post By: fariyadhi
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