भारत डोगरा
विभिन्न क्षेत्रों की पेयजल व स्वच्छता समस्याओं के विवरण में प्रायः इस ओर समुचित ध्यान नहीं दिया जाता है कि कुछ समुदायों के लिए यह समस्या सामान्य नागरिकों से कहीं अधिक विकट हो सकती है। ऐसा ही एक वर्ग है प्रवासी मजदूरों का वर्ग। आदिवासी प्रवासी मजदूरों का एक बड़ा केन्द्र सुमेरपुर (राजस्थान) शहर है जहाँ बड़ी मण्डी भी है। यह पाली जिले में है। इसके साथ सिरोही जिले का एक अन्य व्यस्त शहर शिवगंज भी लगा है। ग्रामीण क्षेत्रों में सिंदरु पंचायत में खनिक मजदूर हैं जबकि सुमेरपुर व शिवगंज में निर्माण मजदूर व बोझा उठाने वाले (हमाल) अधिक हैं। अधिकतम प्रवासी मजदूर राजस्थान के आदिवासी क्षेत्रों जैसे कोटड़ा, गोगुंदा आदि से हैं।
रात को उनके सोने के स्थान को देखा तो सबसे पहला विचार यह आया कि यहाँ कोई कैसे सो सकता है। आसपास जंगली पौधे व झाड़ियाँ थीं व किसी बिच्छू या कीड़े के काटने का डर भी ऐसे स्थान पर बना ही रहता है। अपना सामान रखने की भी कोई सुरक्षित जगह इन मजदूरों के पास नहीं है।
सुमेरपुर में रहने के लिए तंग कमरे हैं जिन्हें सात-आठ मजदूर मिलकर प्रायः किराए पर लेते हैं। इनमें न तो शौचालय है न स्नानघर न कोई सुविधा। तिस पर मकान मालिक कई बंधन लगाते हैं। गर्मी इतनी होती है कि पुरुष बाहर खुले में ही सोते हैं जबकि महिलाओं को बहुत मच्छर और गर्मी का प्रकोप रात भर सहना पड़ता है। बिजली व पंखे की सुविधा बहुत कम है। पानी बाहर से भर कर लाना होता है।
अनेक मजदूर परिवार सहित पूरी तरह बेघर हैं। वे खुले में ही रहते हैं। रात को उनके सोने के स्थान को देखा तो सबसे पहला विचार यह आया कि यहाँ कोई कैसे सो सकता है। आसपास जंगली पौधे व झाड़ियाँ थीं व किसी बिच्छू या कीड़े के काटने का डर भी ऐसे स्थान पर बना ही रहता है। अपना सामान रखने की भी कोई सुरक्षित जगह इन मजदूरों के पास नहीं है।
शौचालय के लिए एक किमी. दूर तक अनेक मजदूरों को जाना पड़ता है व इसके बाद भी खुला स्थान ही शौच के लिए मिलता है। महिलाओं के लिए तो यह स्थिति और भी असहनीय है। स्नानघर के अभाव में उन्हें स्नान भी खुले में ही करना पड़ता है जिससे उन्हें बहुत तकलीफ होती है। इस तरह इन मजदूरों के लिए सबसे बुनियादी सुविधाओं का भी घोर अभाव है।
महिला मजदूरों ने बताया कि सुबह पाँच बजे उठकर दैनिक कार्यों से निपट कर खाना बनाते हैं। आठ-नौ बजे तक कार्यस्थल पर पहुँचना होता है अतः बहुत जल्दी-जल्दी सब काम करना पड़ता है। फिर दोपहर एक बजे तक कड़ी मेहनत करनी होती है। इसके बाद एक घण्टे का समय मिलता है खाना खाने के लिए। फिर 2 बजे से शाम के 7 बजे तक या उससे भी आगे काम करना होता है। बहुत देर बाद घर लौट पाती हैं। थोड़ा सा आराम कर फिर खाना बनाती हैं तो रात के लगभग 11 बजे सो पाती हैं। इस तरह उनका जीवन बहुत कठिन और थकाने वाला है जबकि उन्हें पोषण बहुत कम मिलता है।
शौचालय के लिए एक किमी. दूर तक अनेक मजदूरों को जाना पड़ता है व इसके बाद भी खुला स्थान ही शौच के लिए मिलता है। महिलाओं के लिए तो यह स्थिति और भी असहनीय है। स्नानघर के अभाव में उन्हें स्नान भी खुले में ही करना पड़ता है जिससे उन्हें बहुत तकलीफ होती है। इस तरह इन मजदूरों के लिए सबसे बुनियादी सुविधाओं का भी घोर अभाव है।
मोहिनी ने बताया कि वह निर्माण कार्यस्थल पर अपने दो छोटे बच्चों को भी साथ लेकर जाती हैं क्योंकि बच्चों को कहीं और नहीं छोड़ सकती हैं। मोहिनी ने बताया कि कई बार सुबह खाना बनाने का भी समय नहीं होता है। इस स्थिति में थोड़ा सा बिस्कुट खाकर व बच्चों को भी बिस्कुट देकर काम चलाया जाता है। यही दोपहर के खाने में करना पड़ता है। फिर रात को एक बार ही खाना पकाने और खाने का समय मिलता है।
सिंदरु पंचायत क्षेत्र में रहने वाले पत्थर-गिट्टी के मजदूर बहुत विकट स्थितियों को झेल रहे हैं। सबसे बड़ी समस्या तो इन मजदूरों के लिए पानी की है। कालियामंगरा की महिलाओं ने बताया कि पेयजल लेने के लिए एक किमी. दूर एक हौज में जाना पड़ता है जो डामर मजदूरों के लिए बनवाया गया है। यदि वे पानी लेने दें तो ठीक है, पर यदि वे मना कर दें तो इससे आगे फिर पानी की तलाश में डेढ़ से दो किमी. जाना पड़ता है। अपनी बस्ती में न नल है न टैंकर।
पेयजल के लिए ही नहीं, नहाने व कपड़े धोने के लिए भी इसी तरह पानी दूर से लाना पड़ता है। इस कारण इतनी दूर पानी के लिए कई चक्कर लगाने पड़ते हैं जबकि महिलाएँ पहले ही बहुत कमजोर हैं। उन्हें बहुत कम पोषण मिलता है।
इन परिवारों के पास न तो राशन कार्ड है और न ही यहाँ आँगनवाड़ी है। बहुत कम बच्चे कक्षा 5 तक के स्कूल में जा पाते हैं जिससे उन्हें मिड डे मील भी नहीं मिलता है। सब्जी तो खाने में बहुत ही कम है। प्याज, मिर्च, चटनी से कुछ रोटी चबा लेते हैं। बीमारी की स्थिति में प्राईवेट डॉक्टरों पर बहुत पैसा खर्च करना पड़ता है, हालांकि हाल के समय में सहायता केन्द्र ने सहकारी अस्पतालों में भी इलाज की कुछ व्यवस्था करवायी है।
कालियामंगरा की महिलाओं ने बताया कि पेयजल लेने के लिए एक किमी. दूर एक हौज में जाना पड़ता है जो डामर मजदूरों के लिए बनवाया गया है। यदि वे पानी लेने दें तो ठीक है, पर यदि वे मना कर दें तो इससे आगे फिर पानी की तलाश में डेढ़ से दो किमी. जाना पड़ता है। अपनी बस्ती में न नल है न टैंकर।
श्वास से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याएँ धूल भरे माहौल में काम करने के कारण परेशान करती रहती हैं। टीबी के अनेक केस यहाँ बनते हैं। सम्भावना यह है कि कुछ केस सिलिकोसिम के भी होंगे जिनका अलग से पता नहीं चल पाता है।
यहाँ तुरन्त राहत पहुँचाकर भूख-प्यास से मौत की सम्भावना को दूर करना जरूरी है। सबसे बड़ी जरूरत यह है कि इन मजदूरों की पेयजल समस्या को शीघ्र से शीघ्र सुलझाया जाए।
स्थानीय लोगों व नगरपालिका का सहयोग प्राप्त करते हुए सभी मजदूरों व मजदूर परिवारों को बुनियादी सुविधाएँ पहुँचाना एक उच्च प्राथमिकता है व इसमें भी पेयजल और सेनिटेशन को विशेष महत्व मिलना चाहिए। इसके लिए एक व्यवहारिक योजना मजदूरों की भागीदारी से बननी चाहिए जिससे उनकी प्राथमिकताओं को सही अभिव्यक्ति मिल सके। शौचालय, स्नानघर, पानी के हौज व आश्रय स्थल किस जगह बनाए जाएँ, इन स्थानों की सही पहचान होनी चाहिए। यहाँ सब बेघर लोगों के लिए पर्याप्त आश्रय स्थल बनने चाहिए जो केवल रात को नहीं दिन में भी खुले रहने चाहिए। कुछ आश्रय स्थल ऐसे होने चाहिए जहाँ परिवार के विभिन्न सदस्य साथ-साथ रह सकें।
लेखक का पता : सी-27, रक्षा कुंज, पश्चिम विहार, नई दिल्ली-110063, फोन: 011- 25255303
फोटो साभार : दैनिक जागरण डॉट कॉम