यदि पंजाब सरकार राज्य के स्वच्छता परिदृश्य को लेकर जागरूक हो गई है तो यह उचित ही है। कारण यह है कि अधिकतर लोग अत्यन्त शर्मिंदगी के साथ खेत-खलिहानों में शौच करते रहे हैं। लेकिन पंजाब के मुख्यमन्त्री श्री प्रकाश सिंह बादल पाँचवी बार पद पर आसीन होते ही राज्य के स्वच्छता परिदृश्य को बदलने के लिए कृतसंकल्प हैं।
राज्य सरकार द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, पंजाब के साढ़े पाँच लाख घरों में कोई शौचालय नहीं है। कोई आश्चर्य की बात नहीं कि अनुमानत: तीस लाख लोगों के पास, जिनमें आधी संख्या स्त्रियों की है, शौचालय नहीं है, किन्तु इससे उत्पन्न स्थिति अत्यन्त ही शोचनीय है।
करुण स्थिति यह है कि जो लोग खुले में शौच के लिए जाते हैं, वे गरीबी रेखा के एकदम पास वाले नहीं हैं। दैनिक कार्य करनेवाले मजदूरों की भी इतनी कमाई हो जाती है कि वे अपने घर में शौचालय बनवा सकते हैं। स्थिति को ठीक करने के लिए अतीत में किसी व्यक्ति ने कोई पहल नहीं किया। प्राय: प्रचलित शौचालयों के निर्माण के लिए सेप्टक टैंक या अत्यन्त खर्चीली भूमिस्थ सीवरेज सिस्टम की व्यवस्था थी। बीते वर्षों में इन कठिनाइयों ने ऐसी समस्या पैदा की, जिससे सरकार कोई कारगर कदम उठाने में सफल नहीं हो सकी। किसी ने भी उसके समाधान पर उचित विचार नहीं किया।
श्री बादल ने सुलभ शौचालय की खूबियों के बारे में सुन रखा था कि वे सेप्टिक टैंक और सीवरों की तुलना में किफायती लागत से बनाए जा सकते हैं। दूर-दराज के गाँवों में भ्रमण करने के बाद माननीय मुख्यमन्त्री महोदय ने यह फैसला किया कि वह सुलभ-परिसर में जाकर स्थिति की सही जानकारी लेंगे और उसकी तकनीक को समझेंगे कि सुलभ विधि किस प्रकार मानव-मल की सफाई, बिना किसी सीवर, सेप्टिक टैंक और स्कैवेंजर की मदद के करती है, इसका निर्माण तथा रख-रखाव किस प्रकार होता है। सन 2009 के अगस्त माह में दिल्ली स्थित पालम डाबड़ी मार्ग पर अवस्थित सुलभ-परिसर के भ्रमण के बाद उन्हें महसूस हुआ कि सभ्य सुसंस्कृत तरीके से जिन्दगी जीने के लिए लोगों के पास एक साफ-सुथरा शौचालय चाहिए। इससे राज्य के गांवों की तस्वीर बदली जा सकती है।
मुख्यमन्त्री महोदय सुलभ-तकनीक से बहुत प्रभावित थे, अतः उन्होंने सुलभ-पद्धति को अपनाने का फैसला लिया और पंजाब-विधानसभा का चुनाव जीतने और सत्ताधारी दल का नेता चुने जाने के बाद उन्होंने सुलभ स्वच्छता एवं सामाजिक सुधार आन्दोलन के संस्थापक डॉ. बिन्देश्वर पाठक को चंडीगढ़ आने का आमन्त्रण दिया तथा यह जानना चाहा कि राज्य में बड़े पैमाने पर सुलभ-शौचालयों के निर्माण तथा संचालन-कार्य को कैसे लागू किया जाए। मुख्यमन्त्री महोदय ने राज्य के चार विधानसभा क्षेत्रों श्रीमुक्तसर साहिब जिले में लम्बी, अमृतसर में अजनाला, पटियाला में सनौर और जालंधर में आदमपुर में पन्द्रह हजार सुलभ शौचालय परिसरों के निर्माण का आदेश जारी किया। मुख्यमन्त्री महोदय ने श्रीमुक्तसर साहिब जिले में मलौत प्रखण्ड के गुरुसर-जोधा गाँव में 9 अप्रैल, 2012 को योजना का शुभारम्भ किया। लम्बी विधानसभा-क्षेत्र के गाँवों में यह कार्य शुरू कर दिया गया है।
स्वच्छता के क्षेत्र में सुलभ इंटरनेशनल को वैश्विक स्तर पर मान्यता और पहचान मिली हुई है। यह स्मरणीय अनुभव था, प्रायः मुख्यमन्त्री के साथ भ्रमण करने के समय डॉ. पाठक का।
पंजाब में कुल 12,258 गांव हैं। लोक निर्माण विभाग, मंडी बोर्ड, पंजाब जलापूर्ति और स्वच्छता-विभाग (ग्रामीण विकास और पंचायती राज) आदि सरकारी संस्थाएँ लोगों के घरों में शौचालयों के निर्माण में रुचि ले रही हैं। पानी की उपलब्धता एक समस्या है। कुएँ समाप्तप्राय हैं, क्योंकि लोग इसके पानी का इस्तेमाल कम करत हैं। चापाकल का इस्तेमाल सिर्फ कुछ क्षेत्रों में ही हो रहा है। लोग नलकूप और नहरों पर आधारित जल स्रोतों पर अधिक निर्भर करते हैं। राज्य में लगभग 1,400 चापाकल (हैंडपंप) हैं। पंजाब जैसे राज्य में जहाँ पानी का अभाव है, सुलभ-शौचालय और अधिक उपयोगी सिद्ध होंगे। कारण यह कि सुलभ-तकनीक में एक बार के मल-प्रवाह में मात्र एक से डेढ़ लीटर पानी लगता है, जबकि फ्लश-विधि में 8-10 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है।
साभार : सुलभ इण्डिया जून 2012