भोपाल। मध्यप्रदेश में स्वच्छता अभियान के नाम पर 600 करोड़ रुपए भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए। छह लाख शौचालय महज कागजों पर ही बने और भुगतान भी हो गया। पत्रिका ने इसकी पड़ताल की तो सामने आया कि यह गड़बड़ी ग्राम पंचायत से लेकर मुख्यालय तक सभी जिम्मेदारों की जानकारी में थी। इसके बावजूद खेल बदस्तूर चलता रहा।
ऐसे हुई गड़बड़
शौचालय निर्माण के लिए निर्मल भारत और मनरेगा के तहत पैसा आया। ग्राम पंचायतों ने फर्जी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करके सीधे भुगतान कर दिया। निर्माण एजेंसियों ने फर्जी बिल लगा दिए। अधूरा और घटिया क्वालिटी का निर्माण किया गया।
यहाँ हुई गड़बड़ी
भोपाल, छतरपुर, पन्ना, बालाघाट, जबलपुर, भिण्ड, ग्वालियर, बुरहानपुर, मण्डला, नीमच सहित अनेक जिलों में शौचालय के नाम पर भुगतान किया गया। भोपाल में ही धुआखेड़ा गाँव में 12 साल में कभी कोई शौचालय नहीं बना, जबकि इस गाँव के नाम पर भुगतान 2014 के पहले हुआ है।
ग्राम पंचायतों ने फर्जी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करके सीधे भुगतान कर दिया।
ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार
1. पहले स्तर पर निर्माण एजेंसी ने गड़बड़ी की। बिना निर्माण के फर्जी बिल लगाए।
2. ग्राम पंचायत स्तर पर अध्यक्ष, पंच-सरपंच ने फर्जी बिल पास किए। जिला पंचायत स्तर पर भी इन बिलों की कोई सत्यता नहीं जाँची गई।
3. कलेक्टर के स्तर पर भी इस फर्जीवाड़े की जाँच नहीं की गई।
4. इस तरह कलेक्टर, पंच-सरपंच-अध्यक्ष और निर्माण ठेकेदार तक पर कार्रवाई होनी थी, किन्तु राज्य मुख्यालय ने उल्टे लीपापोती शुरू कर दी।
5. 2014 के पहले के शौचालय या तो खराब हैं या फिर बिना बने ही भुगतान हुआ है, लेकिन दोषी अफसरों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
500 करोड़ वापस बुलाए
अब ग्राम पंचायतों से बचे हुए पाँच सौ करोड़ रुपए वापस बुलाए गए हैं। अफसर इसी राशि की आड़ लेकर बच रहे हैं। जबकि, अक्टूबर 2014 के पहले बने शौचालयों के खर्च का कोई हिसाब ही स्पष्ट नहीं है।
ग्राम पंचायतों से 500 करोड़ रुपए वापस आए हैं। इसी से शौचालय बनने थे। कोई घोटाला हुआ ही नहीं है तो फिर कार्रवाई किस पर करें। अक्टूबर 2014 से तो हितग्राही के खाते में पैसे जाते हैं। ऐसे में गड़बड़ी का सवाल ही नहीं उठता- हेमवंती वर्मन, डायरेक्टर, राज्य निर्मल भारत-स्वच्छ भारत अभियान, ग्रामीण विकास, मप्र।
साभार : राजस्थान पत्रिका 24 अक्टूबर 2015