मनु और परी

सुनील चतुर्वेदी

मनु और उसके दोस्त रोज शाम को तालाब के किनारे खेलने जाते थे। खेलकर घर लौटते समय मनु को बहुत जोर से भूख लगती इसलिए वह आते ही रसोई में घुस जाता और फल, मिठाई, नमकीन जो भी उसे दिखाई देता उठाकर खाने लगता। आज भी घर में घुसते ही मनु ने खाने के लिए एक सेब उठाया, तभी मम्मी ने रोज की तरह उसे टोका -

मनु, पहले साबुन से हाथ धोओ, फिर किसी खाने की वस्तु को छूना।

मनु को समझ नहीं आता था कि रोज मम्मी उसे कुछ भी खाने से पहले हाथ धोने के लिए क्यों कहती है, जबकि उसके हाथ तो एकदम साफ रहते हैं। वह अपनी मम्मी से जिद करने लगा।

नहीं, मैं हाथ धोए बिना ही सेब खाऊंगा ।

बिल्कुल नहीं, साबुन से हाथ धोए बिना तुम्हें कुछ भी खाने को नहीं मिलेगा मम्मी ने डांटते हुए कहा।

सेब नहीं देना है तो मत दो लेकिन मैं हाथ नहीं धोऊंगा। मनु गुस्सा करके बिस्तर पर जाकर लेट गया।

थोड़ी ही देर में उसने देखा कि उसके सिरहाने एक सुन्दर सी परी खड़ी है और वह उसके बालों को सहलाते हुए प्यार कर रही है। मनु के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। उसने खुश होते हुए पूछा-

तुम परी ही हो ना?

परी ने जवाब दिया - हाँ मैं परी हूँ! तुम मेरे साथ परीलोक चलोगे मनु? मैं तुम्हें खाने को बहुत सारे फल दूंगी और खेलने के लिए ढेर सारे खिलौने।

हाँ, मैं तुम्हारे साथ चलूँगा। मैंने सुना है कि परीलोक बहुत सुन्दर है, तुम मुझे परीलोक घुमाओगी ना परी दीदी। - मनु ने उत्साहित होकर कहा।

हाँ, कहते हुए परी मनु को अपनी पीठ पर बैठाकर आसमान में उड़ चली।

हवा में पक्षियों की तरह उड़ते हुए मनु को बहुत मजा आ रहा था। वह परी के साथ बादलों की सैर कर रहा था। बादलों के पार परीलोक था। परीलोक पहुँचकर एक सुन्दर बगीचे में परी ने मनु को अपनी पीठ से उतारते हुए कहा -

यही परीलोक है मनु, यहाँ तुम जहाँ चाहो घूम सकते हो। इस बगीचे में बहुत सारे फलों के पेड़ हैं, जो तुम्हें अच्छे लगे वो फल तुम खा सकते हो।

मनु परीलोक देखकर खुशी से उछलने लगा...

वाह! कितना सुन्दर है परीलोक। सुन्दर रंग-बिरंगे फल, फूलों पर उड़ती तितलियाँ, हरे-भरे उँचे-ऊँचे पहाड़, पहाड़ों से बहता झरना, सेब, चीकू, अमरूद से लदे पेड़, बेलों पर लटके गोल-गोल अंगूर।

मनु फलदार वृक्षों वाले बगीचे की ओर चल दिया। बगीचे में आम, जामुन, सेब, चीकू, सन्तरा, मौसम्बी, केले से लदे बहुत सारे पेड़ थे। (लाल-लाल सेब देखकर मनु के मुँह में पानी आ गया। उसने एक सेब तोड़ने के लिए हाथ बढ़ाया तो सारे पेड़ एक साथ बोल पड़े -

हाथ नहीं हैं तुम्हारे साफ और अच्छे

हमारे फलों को न छूना , ए गन्दे बच्चे ।

देखो - देखो, मेरे हाथ एकदम साफ हैं।

कहते हुए मनु ने अपने हाथ सेब के पेड़ के सामने फैला दिए।

सेब के पेड़ ने कहा -

ना-ना, हमारे फलों को बिल्कुल नहीं छूना,

सैकड़ों कीटाणु हैं तुम्हारी अंगुलियों मे मुन्ना !

अगर छुओगे जो तुम फलों को हमारे

रोगाणु हमारे पास आ जाएंगे सारे।

अब मनु रूआंसा हो गया। वो फलों के बगीचे से निकलकर झरने की ओर बढ़ने लगा। उसे बहुत जोर की प्यास लग रही थी। झरने के पास पहुँचकर जैसे ही उसने पानी पीना चाहा कि अचानक झरना बन्द हो गया। झरने का पूरा पानी एकदम सूख गया। मनु घबरा गया। उसे लगा कोई जादू है तभी झरना बोला-

नहीं -नहीँ, ये नहीं है जादू

तुम्हारे हाथों में हैं सैकड़ों कीटाणु।

जो तुम मेरे पानी में डालोगे हाथ

कीटाणु पानी में आ जाएंगे साथ।

कीटाणु से फैलेगी बीमारी

परीलोक की परियों बीमार हो जाएँगी सारी।

पहले जाकर साबुन से धोओ हाथ

तब तुम छूना पानी से हाथ।

अब तो मनु के धैर्य का बाँध टूट गया। पहले मम्मी ने डांटा फिर पेड़ों ने दूर भगाया, और अब झरना भी डांट रहा है।

वह झरने के पास पत्थर पर बैठकर रोने लगा। तभी परी उसके सामने प्रकट हुई।

क्या हुआ मेरे बच्चे, तुम रो क्यों रहे हो?

परी दीदी, मेरी मम्मी, आपके ये पेड़ और झरना सभी कहते हैं कि मेरे हाथों में लाखों कीटाणु हैं। अब तुम ही देखो मेरे हाथ तो एकदम साफ हैं। कहते हुए मनु ने अपने दोनों हाथ परी के सामने फैला दिए।

परी ने उसके हाथों की ओर देखा और बोली -

इन सबकी बात तो ठीक है, तुम्हारे हाथ में लाखों कीटाणु हैं।

परी दीदी आप भी... जाइये, मुझे आपसे बात नहीं करनी। मनु मुँह पलटकर बैठ गया।

नहीं मेरे बच्चे, ऐसे गुस्सा नहीं करते। तुम्हारी अंगुलियों से चिपके कीटाणुओं को यदि तुम अपनी आँखों से देख लो तब तो मेरी बात मानोगे। परी ने मनु को प्यार से समझाते हुए कहा।

हाँ... मनु ने सिर हिलाते हुए कहा।

ठीक है, मैं तुम्हें तुम्हारे हाथों में चिपके हुए कीटाणु दिखाती हूँ। कहते हुए परी ने अपने हाथ की छड़ी को गोल घुमाया ।

परी के छड़ी घुमाते ही सारी चीजें बड़ी-बड़ी हो गई। बगीचे की घास, पेड़ों के आकार की लगने लगी। तितलियाँ जैसे हवा में उड़ते पक्षी हों, पेड़ तो जैसे

आसमान तक उँचे हो गए हों और झरना तो पहाड़ से नहीं जैसे आसमान से गिर रहा हो। फल जैसे बड़े-बड़े छाते हों। मनु ने देखा वो खुद भी कितना बड़ा हो गया था। उसे आश्चर्य के साथ-साथ खुद को देखकर हंसी भी आ रही थी।

परी ने कहा - मनु, अब तुम अपनी अंगुलियों और बड़े नाखूनों को देखो।

मनु ने देखा, उसकी अंगुलियों और नाखून में लाखों छोटे-छोटे कीटाणु घूम रहे हैं। मनु बुरी तरह डरकर जोर से चिल्लाया -

परी दीदी, रोको... ये कीटाणु मुझे मार डालेंगे ।

परी दीदी ने छड़ी को फिर उल्टा घुमाया और सारी चीजें पहले जैसी अपने वास्तविक आकार में आ गई थीं। मनु का डर कुछ कम हुआ।

देखा तुमने, तुम्हारे हाथों में कितने कीटाणु चिपके हैं, जो तुम्हें आँखों से दिखाई नहीं देते। परी ने मनु को समझाते हुए कहा।

लेकिन दीदी, ये कीटाणु मेरे हाथों में आए कहाँ से? मनु ने सवाल किया।

तुमने मिट्टी में खेलकर आने के बाद अपने हाथ साबुन से धोए थे? परी ने पूछा।

नहीं... मनु ने सिर हिलाया।

जब हम कोई काम करते हैं या खेलते हैं तो बहुत सी वस्तुओं को छूते हैं और इस तरह कई कीटाणु हमारे हाथों में चिपक जाते हैं। ये कीटाणु इतने छोटे होते हैं कि आँखों से दिखाई नहीं देते हैं। लेकिन जब हम इन हाथों से कुछ भी खाते है तो ये कीटाणु खाने के साथ हमारे पेट में पहुँचकर कई बीमारियों पैदा करते हैं। परी ने मनु को समझाते हुए बताया।

तो इनसे बचने के लिए हमें क्या करना चाहिए? मनु ने सवाल किया।

इन कीटाणुओं से बचने के लिए हमें हमेशा खाना खाने से पहले और शौच के बाद अदृछी तरह से साबुन से हाथ धोने चाहिए। परी ने कहा।

मेरे कुछ दोस्त शौच के बाद मिट्टी से हाथ धोते हैं। क्या ये गलत है? मनु की जिज्ञासा अब बढ़ती जा रही थी।

परी ने जवाब दिया -

बिल्कुल गलत है। यदि हम मिट्टी से हाथ धोएंगे तो हमारे हाथ साफ नहीं होंगे बल्कि...

... मिट्टी में मौजूद कीटाणु हमारे हाथों से चिपक जाएँगे। मनु ने परी की बात पूरी करते हुए कहा।

बिल्कुल ठीक समझे। अब साबुन से अच्छी तरह हाथ धोकर पहले कुछ फल खाओ। फिर तितलियों के साथ खेलना...। कहते हुए परी ने मनु के हाथ साबुन से धुलवाए।

ठीक है परी दीदी, मैं अभी फल खाकर आता हूँ। फिर हम परीलोक घूमेंगे... कहते हुए मनु फलों के बगीचे की ओर दौड़ गया।

फलों के बगीचे में पहुँचते ही सारे पेड़ मनु को बुलाने लगे। आम बोला -

मनु तुम कितने अच्छे हो,

मन के कितने सच्चे हो,

अब तुम्हारे हाथ हैं साफ।

मैं अपनी डालियाँ झुकाता हूँ।

माठे-मीठे फल तुम्हें खिलाता हूँ।

 

सेब, चीकू, सन्तरे सभी पेड़ मनु को बुलाने लगे -

आओ... आओ, मनु यहाँ आओ।

देखो कितने मीठे फल है, जितने खा सको खाओ ।

मनु ने पेट भरकर फल खाए और सभी पेड़ों को बाय-बाय कर फलों के बगीचे से लौट आया। फूलों ने स्वागत किया। गुलाब ने मुस्कुराकर मनु से कहा-

आओं मेरे नन्हें दोस्त, यहाँ मेरे पास आओ,

मुझे छुओ, देखो मेरी कितनी प्यारी खुशबू है।

मनु फूल को छूने लगा। उसे बहुत अच्छा लग रहा था।

फिर मनु को लगा कि कोई उसके बालों को सहला रहा है। मनु ने आँख खोली तो देखा कि मम्मी उसके सिरहाने बैठकर मनु को प्यार कर रही है। मनु बिस्तर से उठकर मम्मी से लिपट गया और बोला-

सॉरी मम्मी, अब मैं हमेशा हाथ धोकर ही कुछ खाऊँगा। मम्मी को बहुत आश्चर्य हुआ और वह बहुत खुश भी हुई। उन्होंने मनु के लिए उसका मनपसन्द हलवा बनाया और उसे बहुत से फल भी दिए।

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