महिलाएँ स्वच्छता आन्दोलन की प्रमुख घटक बन सकती हैं: प्रतिभा देवीसिंह पाटिल

21 मार्च, 2012 को विज्ञान भवन में भारत सरकार के ग्रामीण विकास, पेयजल एवं स्वच्छता मन्त्रालय द्वारा आयोजित 7वें ‘निर्मल ग्राम पुरस्कार’ समारोह में अन्य कार्यक्रमों के साथ मध्य-प्रदेश के बैतूल जिले की श्रीमती अनीता बाई नर्रे तथा राजस्थान के अलवर जिले की श्रीमती उषा चौमड़ को भी सम्मानित किया गया। इन दोनों महिलाओं ने श्रोताओं के समक्ष अपने विचार व्यक्त किए। इन दोनों महिलाओं में से एक ने सर पर मानव-मल ढोने एवं दूसरे ने शौच के लिए खुले में जाने का विरोध किया। ‘निर्मल ग्राम’ का अर्थ होता है ऐसा गाँव, जहाँ सभी घरों में, विद्यालयों तथा आँगनवाड़ियों में शौचालय है तथा खुले में कोई शौच नहीं करता है। 2003 में टी.एम.सी. को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए भारत सरकार ने ‘निर्मल ग्राम पुरस्कार’ नाम से अनुदान अभियान चलाया।

 

सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान (टी.एम.सी.) एक आवश्यक कार्यक्रम है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता सम्बन्धी सहूलियतें प्रदान करता है। इस अभियान के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में पूर्ण रूप से खुले में शौच का उन्मूलन करना भी शामिल है। 2003 में टी.एम.सी. को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए भारत सरकार ने ‘निर्मल ग्राम पुरस्कार’ नाम से अनुदान अभियान चलाया। यह अनुदान उन ग्राम पंचायतों को दिया जाता है, जिनके गाँवों में सभी घरों में शौचालय बन गए हैं और लोग खुले में मल-त्याग नहीं करते तथा जहाँ मल-प्रवाह की उचित व्यवस्था है। यह पुरस्कार पंचायतीराज संस्थाओं, व्यक्ति विशेषों तथा उन संस्थानों को दिया जाता है, जो शुचिता अभियान को पूरी तरह लागू करने की ओर अग्रसर हैं।

 

समागत अतिथियों का स्वागत भारत सरकार के ग्रामीण विकास, पेयजल एवं स्वच्छता मन्त्रालय की माननीय सचिव श्रीमती विलासिनी रामचन्द्रन ने किया। इस अवसर पर बोलते हुए महामहिम राष्ट्रपति ने कहा कि देश में फैली समस्त स्वास्थ्य तथा गन्दे जल के उपयोग सम्बन्धी समस्याओं का निवारण करने में महिलाएँ प्रमुख भूमिका निभा सकती हैं। अशुद्ध जल पीने से ही हैजा, पोलियो, मियादी बुखार इत्यादि बीमारियाँ फैलाती हैं।

 

महामहिम राष्ट्रपति ने कहा, ‘यह एक प्रकट तथ्य है कि शुचिता से ही महिलाओं को गौरव, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा मिलती है। महिलाएँ इससे सर्वाधिक लाभान्वित होती हैं। अतः वे देश-भर में स्वास्थ्य सम्बन्धी अभियान चलाने में प्रमुख भूमिका निभा सकती हैं। उनकी भागीदारी से अनेक उपलब्धियाँ प्राप्त हुई हैं और यह पूर्ण शुचिता की प्राप्ति की सफलता का द्योतक है।’

 

‘निर्मल ग्राम पुरस्कार’ प्रदान करते हुए इस इस समारोह में राष्ट्रपति महोदया ने कहा कि ‘महिलाओं में बहुआयामी प्रतिभा है, आज वे केवल गृहणी नहीं हैं, राष्ट्र की आर्थिक उन्नति का स्तम्भ बन गई हैं, उनमें गजब की शक्ति है। महिलाएँ समाज की स्थिरता में भी सहायक हैं।’ उन्होंने कहा कि ‘स्वच्छता तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी अच्छी आदतें अच्छी जीवन शैली को दर्शाती हैं।’ उन्होंने आगे जोड़ा कि ‘बच्चों में स्वच्छता का ज्ञान आवश्यक है। जब गाँवों का विकास होगा तो राष्ट्र स्वयं प्रगति की ओर जाएगा।’


ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों एवं वयस्कों की मृत्यु और अस्वस्थता का मुख्य कारण स्वच्छता की कमी है।

इस समारोह में सुलभ स्वच्छता एवं सामाजिक सुधार आन्दोलन के संस्थापक डॉ. बिन्देश्वर पाठक एक सम्मानित अतिथि के रूप में उपस्थित थे। हरियाणा के श्री प्रीतम सिंह ने भी सभा को सम्बोधित किया था। आपने ‘शौचालय नहीं तो दुल्हन नहीं’ नारे का उद्घोष किया। श्रीमती कृष्णा संध्या जाटा ने सभा में बोलते हुए निर्मल आचार, निर्मल विचार, निर्मल राष्ट्र का नारा दिया। श्रीमती लेनू लोपचा ने ‘सिक्किम, खुले में शौच से पूर्णतः मुक्त राज्य’ के बारे में बताया।

 

बैतूल, मध्य-प्रदेश की श्रीमती अनीता बाई नर्रे शौचालय सुविधा न होने पर अपनी ससुराल छोड़कर चली आईं। उनके द्वारा उठाए गए इस कदम ने उन्हें प्रसिद्धि दिलाई। सभा में उन्होंने शौचालय की कमी के कारण उठाए गए कष्टों का वर्णन किया।

 

श्रीमती उषा चौमड़ वर्ष 2008 से पूर्व अलवर, राजस्थान में सर पर मैला ढोने का कार्य करती थीं। उन्हें सुलभ इंटरनेशनल की ओर से पुनर्वासित कर सम्मानजनक रोजगार में प्रशिक्षण दिया गया। उन्होंने विगत दिनों की आपबीती और शर्मिंदगी से भरे जीवन की बातें सुनाईं तथा पुनर्वासन द्वारा अपने जीवन में आए परिवर्तन के बारे में बताया।

 

इस अवसर पर भारत सरकार के माननीय ग्रामीण विकास, पेयजल तथा स्वच्छता मन्त्री श्री जयराम रमेश ने अपने भाषण में कहा कि ‘निर्मल ग्राम अभियान’ ने न केवल गाँवों में शौचालय निर्माण का कार्य कराया, अपितु इससे ग्रामीण महिलाओं की सुरक्षा भी सुनिश्चित हुई।

 

उन्होंने कहा, ‘सभी को इस अभियान में जुड़ना चाहिए, जिसे सभी पंचायतें ‘निर्मल पंचायत’ बन सकें। आगे उन्होंने कहा कि ‘आगामी 10 वर्षों में देश को ‘खुले में शौच से पूर्णतः मुक्त’ देश बनाना है।

 

माननीय श्री रमेश ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि ‘2.5 लाख ग्राम पंचायतों में केवल 25,000 ही खुले में शौच से मुक्त पंचायतें हैं। भारत में लगभग 60 प्रतिशत लोग शौच के लिए खुले में जाते हैं।’ मन्त्री जी ने आगे कहा, ‘सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान’ को पूरी तरह सफल बनाना चाहिए तथा अगले कुछ महीनों में इस सन्दर्भ में विस्तृत व्यवस्था लागू की जाएगी। उन्होंने घोषणा की कि संत श्री गाडगे बाबा, जिन्होंने स्वच्छता अभियान में अप्रतिम भूमिका निभाई, के नाम पर एक नया पुरस्कार प्रारम्भ किया जाएगा।

 

माननीय मन्त्री जी ने ‘निर्मल ग्राम’ बनाने वाले तथा तीन-चार वर्षों तक इन्हें बरकरार रखने वाली पंचायतों को विशेष पुरस्कार दिए जाने की भी घोषणा की।


साभार : सुलभ इण्डिया अप्रैल 2012     

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