अशोक कुमार ज्योति
महात्मा गाँधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी-विश्वविद्यालय, वर्धा द्वारा दो दिनों का सेमिनार 17 तथा 18 फरवरी, 2013 को वर्धा में आयोजित किया गया। विषय था - ‘स्वच्छता का समाजशास्त्र’। सेमिनार के प्रथम दिन का कार्यक्रम विश्वविद्यालय-परिसर के समता-भवन में आयोजित किया गया। समाज-कार्य-विभाग के प्रोफेसर डॉ. मनोज कुमार ने स्वागत-वक्तव्य दिया और ‘स्वच्छता का समाजशास्त्र’ विषयक इस दो दिवसीय सेमिनार के मुख्य उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि हमारी वर्तमान आवश्यकता यह हो गई है कि इस विषय को स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में सम्मिलित किया जाए और हम डॉ. बिन्देश्वर पाठक के इस मानव-कल्याणकारी अभियान में सहभागी बनें।
विश्वविद्यालय के समाज-कार्य-विभाग-द्वारा वर्धा शहर के स्वच्छता-परिदृश्य पर एक विस्तृत रिपोर्ट की प्रस्तुति विभाग के चतुर्थ छमाही के छात्र श्री वरूण कुमार ने की। इस अध्ययन में वर्धा शहर की सफाई और कचरा प्रबन्धन पर विस्तार से चर्चा की गई। उन्होंने बताया कि वर्धा शहर से प्रतिदिन लगभग 30 टन का कचरा निकलता है, किन्तु उसके निपटान की समुचित व्यवस्था नहीं है। उन्होंने चिन्ता व्यक्त की कि नगर-परिषद तो इसके लिए जिम्मेदार है ही, लोगों में भी स्वच्छता-जागरूकता की कमी है। वे सही या निर्धारित जगहों पर कचरा न डालकर यत्र-तत्र फेंक देते हैं। उन्होंने वर्धा शहर के अस्पतालों के सफाई-प्रबन्धन के सही नहीं होने पर भी चिन्ता व्यक्त की, वहीं दत्ता मेघे अस्पताल की अच्छी स्वच्छता-व्यवस्था की प्रशंसा भी की।
श्री वरुण ने वर्धा शहर के शौचालय-प्रबन्धन पर भी प्रकाश डाला। वर्धा में रेलवे स्टेशन, बस स्टॉपों और अन्य सार्वजनिक जगहों पर शौचालय एवं मूत्रालय नहीं होने से लोगों की कठिनाई की ओर ध्यान केन्द्रित किया गया। वहीं रिपोर्ट में शहर में स्थित सुलभ शौचालय की सफाई-व्यवस्था की प्रशंसा की गई। उन्होंने इन बातों के बीच सबका ध्यान आकर्षित करते हुए जो एक दिलचस्प बात बताई, वह यह थी कि वर्धा शहर की जनसंख्या पूर्व के अनुपात में कम हुई है। उन्होंने इसका कारण लोगों का पलायन और जनजागरूकता बताया। इस पहले दिन के कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्री भरत महोदय जो गाँधी-विचार-परिषद वर्धा के निदेशक हैं, ने भारतीय स्वच्छता-परिदृश्य पर दुःख व्यक्त करते हुए कहा कि यह व्यक्तिगत स्वच्छता और सामूहिक अस्वच्छता का देश है। उन्होंने कहा कि स्वच्छता पर समाज का ध्यान उदासीनतापूर्ण है। उन्होंने कहा कि स्वच्छता-अभियान के दो मुख्य तत्त्व हैं-आन्तरिक शुद्धि और बाह्य शुद्धि। महात्मा गाँधी का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि गाँधी जी कहते थे कि ग्रामसेवकों को गाँवों में जाकर सबसे पहले स्वच्छता पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। उन्होंने सामाजिक कार्यकर्त्री सुश्री प्रीति जोशी का विशेष उल्लेख किया, जो सब्जी-मंडी के कचरे को वर्मी कम्पोस्टिन्ग के कार्य में जुड़ी हैं।
इस अवसर पर डॉ. बिन्देश्वर पाठक ने कहा कि हमें स्वच्छता के क्षेत्र में समुचित दृष्टिकोण, मिशनरी भाव, समर्पणशीलता और पूरी क्षमता लगाकर कार्य करना होगा। उन्होंने श्री वरुण कुमार द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट की भूरि-भूरि प्रशंसा की और कहा कि जब हम इस प्रकार के कार्यों के साथ लोगों के बीच जाएँगे तो उनमें जागरूकता आएगी और उनकी आदतें ठीक होंगी।
महात्मा गाँधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति श्री विभूति नारायण राय ने हमारी जीवनदायिनी नदियों को दूषित किए जाने पर क्षोभ प्रकट करते हुए कहा कि हम जिन नदियों को पवित्र मानते हैं, माता की तरह पूजा करते हैं, उन्हीं नदियों में गन्दगी फैलाते हैं। उन्होंने अपनी विगत श्रीलंका-यात्रा की चर्चा करते हुए कहा कि मुझे श्रीलंका में कहीं खुले में शौच का कोई दृश्य नहीं दिखा। श्री राय ने कहा कि जब मैं विश्वविद्यालय में आया तो अन्य सारी व्यवस्थाओं के साथ मैंने परिसर के कचरा-प्रबन्धन और सफाई-व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया। 17 फरवरी के इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के समाज-कार्य-विभाग के शिक्षक-शिक्षकाओं एवं छात्र-छात्राओं की उपस्थिति रही। इस कार्यक्रम से प्रेरणा लेने के लिए रेलवे कर्मचारी श्री नवीन कुमार एवं अधिवक्ता श्रीमती रेखा यादव भी विशेष उत्साह के साथ उपस्थित थीं। पहले दिन के कार्यक्रम में उपस्थित शिक्षकों, छात्र-छात्राओं और अतिथियों का धन्यवाद-ज्ञापन प्रो. डॉ. मनोज कुमार ने किया।
18 फरवरी को प्रातः 11 बजे डॉ. बिन्देश्वर पाठक एवं श्रीमती अमोला पाठक के नेतृत्व में सुलभ के सभी सदस्यों ने सेवाग्राम-स्थित गाँधी-कुटीर एवं वर्धा-स्थित मगन-संग्रहालय का भ्रमण किया। उन दोनों जगहांे पर डॉक्टर पाठक ने वहाँ के कार्यकर्ताओं को सम्बोधित किया और गाँधी जी के कार्य-रूप का गहराई से मनन किया। मगन-संग्रहालय के मुमारप्पा कुटी के समक्ष खादी-ग्रामोद्योग से जुड़े लगभग पचास कार्यकर्ताओं ने डॉक्टर पाठक के गाँधी जी के सपने को पूरा करने के क्रियाकलापों को जब जाना तो सभी भाव-विभोर हो गए, इस दौरान डॉ. विभा गुप्ता की विशेष और स्मरणीय भूमिका रही।
तत्पश्चात् दिन के 3.00 बजे विश्वविद्यालय-परिसर-स्थित हबीब तनवर ऑडिटोरियम मंे ‘स्वच्छता का समाजशास्त्र’ विषयक दूसरे दिन का कार्यक्रम शुरू हुआ। विषय-प्रवर्तन किया प्रो. डॉ. मनोज कुमार ने। इस अवसर पर दिल्ली से पधारे साहित्यकार श्री उपेन्द्र कुमार ने सामाजिक-स्वच्छता और लोगों के नजरिए पर अपने विचार रखे और सुलभ इंटरनेशनल-द्वारा अलवर में पुनर्वासित स्कैवेंजर महिलाओं की जीवन-दशा के परिवर्तन को द्योतित करने वाली कविताओं को प्रस्तुत किया, जिन्हें सुनकर श्रोता गमगीन हो गए। इसके बाद समारोह के मुख्य वक्ता डॉ. बिन्देश्वर पाठक ने ‘महात्मा गाँधी तथा स्वच्छता का समाजशास्त्र’ विषय पर अपना विशेष व्याख्यान प्रारम्भ किया।
अब समय आ गया है, जब ‘स्वच्छता का समाजशास्त्र’ को एक शाखा के रूप में सम्मिलित किया जाए। ‘स्वच्छता का समाजशास्त्र’ एक वैज्ञानिक अध्ययन होगा।
उपस्थित सम्मानीय विद्वानों, प्रोफेसरों तथा समाजशास्त्रियों को सम्बोधित करते हुए डॉक्टर पाठक ने सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपने जीवन की शुरूआत के बारे में बताया कि ‘वर्ष 1968 में संयोगवश मैंने बिहार गाँधी जन्म-शताब्दी समारोह-समिति में योगदान दिया। समिति ने अनेक कार्यक्रम शुरू किए थे, जिनमें से एक था अस्पृश्य स्कैवेंजरों के मानवाधिकार तथा गरिमा की वापसी। ये लोग मानव-मल की हाथों से सफाई करते तथा उसे सर पर ढोकर दूर ले जाते थे। मैं इनके सम्मान के लिए कार्य करना चाहता था। मैं समाजशास्त्र का विद्यार्थी रहा था। उसमंे कहा गया है कि जिस समाज के लिए आप काम करना चाहते हैं, उनके साथ आपको रहना पड़ेगा। अतः इन लोगों के साथ घनिष्ठ सम्पर्क बनाने हेतु मैंने बिहार राज्य के एक छोटे शहर, बेतिया, चम्पारण में अस्पृश्य स्कैवेंजरों की बस्ती में उनके साथ तीन महीने बिताए। यह वही चम्पारण है, जहाँ से महात्मा गाँधी ने भारत की स्वतन्त्रता के लिए आन्दोलन का प्रारम्भ किया था, यह ‘चम्पारण-सत्याग्रह’ के नाम से सर्वविदित है। वहाँ स्कैवंेजरों की बस्ती में रहने के दिनों दो घटनाएँ मुझे आज भी याद हैं। एक दिन सवेरे-सवेरे ही पड़ोस में काफी शोर-गुल सुनाई पड़ा। मैं बाहर आया, मैंने देखा कि एक नव-विवाहिता युवती बुरी तरह रो रही थी। उसे उसके पति और सास-ससुर बेतिया शहर में जाकर कमाऊ शौचालय साफ करने के लिए जबरदस्ती भेजने पर तुले थे। वह जाने को बिलकुल तैयार नहीं थी और रो रही थी। मैंने हस्तक्षेप किया। युवती की सास ने मुझसे पूछा, यदि यह शौचालय साफ नहीं करेगी, जो हमारा पेशा है, तो कल से क्या करेगी ? यदि यह सब्जियाँ बेचती है तो इसके हाथों से कौन खरीदेगा ? इसके पास यह काम करने के अलावा कोई चारा नहीं है, इसे यही काम जिन्दगी भर करना है।
‘कुछ दिनों बाद मै बस्ती के कुछ मित्रों के साथ बेतिया शहर जा रहा था। हमने देखा कि लाल कमीज पहले एक लड़के को साँड मार रहा था। लोग उसकी मदद करने को दौड़े, तभी भीड़ के पीछे से कोई जोर से बोला कि लड़का अस्पृश्यों की बस्ती का है। बस, क्या था, सभी उस घायल लड़के का छोड़कर हट गए। मैं मित्रों की मदद से लड़के को स्थानीय अस्पताल ले गया, पर वह रास्ते में ही चल बसा। उस दिन उसी समय मैंने अपनी जाति, अपने परिवार को भूलकर संकल्प किया कि पिछले 5000 वर्षों से चली आ रही दासता के चंगुल से अस्पृश्य लोगों को मुक्त कराने का महात्मा गाँधी का सपना पूरा करना है।
‘समाजशास्त्र के अनुसार, किसी भी अनुसंधान-कार्य के लिए जिन मान्यताओं को लेकर आप आगे बढ़ते हैं, उनको परखने के लिए कोई साधन अपेक्षित होता है। यहाँ वह साधन था फ्लश शौचालय, जिसे हाथों से साफ करने की जरूरत नहीं होती और जो कमाऊ या शुष्क शौचालय का स्थान ले सकता है। इसी क्रम में मैंने टू-पिट पोर-फ्लश कंपोस्ट शौचालय का आविष्कार, प्रवर्तन और विकास किया और इसे सुलभ शौचालय का नाम दिया। इस शौचालय में दो गड्ढे या पिट होते हैं, एक बार में एक ही का इस्तेमाल होता है, उसके भर जाने पर उसे ढक देते हैं और दूसरे का इस्तेमाल किया जाता है। दो वर्षों के बाद पहले पिट का मानव-मल खाद बन जाता है, जिसका उपयोग खेतों में पौधों के लिए किया जा सकता है। यह उत्तम कोटि का जैविक खाद होता है, जिसमें फॉस्फोरस, नाइट्रोजन तथा पोटैशियम होते हैं।
‘स्कैवेंजरों की उनके अमानवीय पेशे से मुक्ति के बाद उनकी जीविका चलाने का प्रश्न उठा। उन्हें पुनर्वासित करने एवं समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए जो महात्मा गाँधी का सपना था, मैंने राष्ट्रपिता के ही प्रिय साधन ‘अंहिसा’ की सहायता ली। मैंने समाज की ऊँची जाति के लोगों को समझाया और स्कैवेंजरों के साथ उठने-बैठने और खाने-पीने के लिए राजी किया। मैंने उनके सोच, उनके मनोवृत्ति और स्कैवेंजरों के साथ उनके बर्ताव में तब्दीली लाने में कामयाबी हासिल की।
‘महात्मा गाँधी का हमेशा से जोर रहा बेसिक शिक्षा पर। मैंने स्कैवेंजरों के लिए भिन्न-भिन्न रोजगारों के बेसिक प्रशिक्षण की व्यवस्था की, जैसे-पापड़, नूडल, अचार बनाना, सिलाई-कढ़ाई-कसीदाकारी तथा सौंदर्य-प्रसाधन।’ इस तरह वे अपनी जीविका कमा सकते थे और आत्म-निर्भर बन सकते थे। साथ ही मैंने समाज की ऊँची जाति के लोगों की तरह ही पूजा-पाठ, व्रत-त्योहार और धर्म-अनुष्ठान-कार्य करने के लिए स्कैवेंजरों की मदद की और इसके लिए मैं उन्हें उन मन्दिरों में ले गया, जहाँ उनका प्रवेश निषिद्ध था। हम प्रसिद्ध नाथद्वारा मन्दिर गए और ब्राह्मण पंडितों को स्कैवेंजरों को पूजा-पाठ कराने के लिए राजी किया, वहाँ से लौटने पर भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति माननीय श्री आर. वेंकटरमन तथा प्रधानमन्त्री माननीय श्री राजीव गाँधी ने उनसे मुलाकात करने की कृपा की।
‘वर्ष 2007 में नई दिल्ली मंे आयोजित विश्व शौचालय-शिखर-सम्मेलन में स्कैवेजरों ने सक्रिय रूप से भाग लिया। उसमें पूरे विश्व से प्रतिनिधिगण पधारे थे। इस अवसर पर पहली बार इन्हें दिल्ली के प्रसिद्ध और सम्मानजनक सभागाार ‘विज्ञान-भवन’ में प्रवेश मिला था। ये लोग संयुक्त राज्य अमेरिका गए और संयुक्त राष्ट्र महासभा की कार्यवाही में इन्होंने भाग लिया और विश्व के राजनयिकों और प्रतिनिधियों के समक्ष भारत और अमेरिका की सुन्दरियों के साथ फैशन शो में भाग लिया।
‘महात्मा गाँधी के पोते प्रो. राजमोहन गाँधी वर्ष 2009 में सुलभ-परिसर, नई दिल्ली पधारे। उनके साथ संयुक्त राज्य अमेरिका के इलिनॉय विश्वविद्यालय के छात्र भी थे। अपने इस भ्रमण के दौरान वह इतने अभिभूत हुए कि उन्होंने कहा, ‘मैं महात्मा गाँधी के पुत्र का पुत्र हूँ, पर डॉ. बिन्देश्वर पाठक उनकी आत्मा के पुत्र हैं। यदि हम मोहनदास करमचन्द गाँधी से मिलने जाएँ तो वह डॉक्टर पाठक का महत्कार्य देखते हुए पहले उनसे मिलेंगे, उसके बाद मुझसे मिलेंगे। डॉक्टर पाठक ने उन लोगों को उनके मानवाधिकार और प्रतिष्ठा लौटाई है, जो मानव-मल की हाथों से सफाई और ढुलाई का काम करते थे।’
‘हाल ही में देश के माननीय उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण को निर्देश दिया कि वृंदावन के चार सरकारी आश्रय स्थलों मंे रह रहीं 1780 विधवाओं की सहायता करने के लिए सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन से जिज्ञासा की जाए। प्राधिकार की चिट्ठी आते ही चौबीस घंटों के अन्दर मैं वृंदावन गया, वहाँ उनकी दयनीय स्थिति देखकर मुझे बड़ा कष्ट हुआ। तत्काल उन्हें आर्थिक सहायता दी गई, और उसके बाद प्रति विधवा को 2000 रुपए प्रतिमाह नियमित रूप से दिए जा रहे हैं। उनके आश्रय-स्थलों को पाँच ऐंबुलेंस दिए गए हैं। उनका नियमित डॉक्टरी चेक-अप कराया जा रहा है।
स्वच्छता के क्षेत्र में अपने 45 वर्षों की यात्रा में मैंने विभिन्न संस्कृतियों और समुदायों, राजनीतिक दलों, सरकार और जन-साधारण के बीच विश्वास जगाने हेतु
सत्य, ईमानदारी, समर्पण, और नैतिकता का सदा सहारा लिया है। यहाँ महात्मा गाँधी का प्रसिद्ध कथन उल्लेखनीय है, एक आउंस अभ्यास (प्रैक्टिस) टनों उपदेश से अधिक मूल्यवान है।
‘मेरा दृढ़ विश्वास है कि अब समय आ गया है, जब ‘स्वच्छता का समाजशास्त्र’ को एक शाखा के रूप में सम्मिलित किया जाए। ‘स्वच्छता का समाजशास्त्र’ एक वैज्ञानिक अध्ययन होगा, जिसका लक्ष्य होगा स्वच्छता, सामाजिक वंचन, जल, जन-स्वास्थ्य, स्वास्थ्य, पर्यावरण, गरीबी, लैंगिक समानता, बाल-कल्याण से सम्बद्ध सामाजिक समस्याओं का समाधान और सुखी जीवन के लिए तथा औरों की जिन्दगी में फर्क लाने हेतु दार्शनिक तथा आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति एवं सतत विकास के निमित्त लोगों का सशक्तीकरण।’
सुलभ-स्वच्छता-आन्दोलन के संस्थापक डॉ. बिन्देश्वर पाठक के आह्वान के पश्चात महात्मा गाँधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी-विश्वविद्यालय के कुलपति श्री विभूति नारायण राय ने घोषणा की कि विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के पाठ्यक्रम में स्वच्छता को सम्मिलित करने की पहल पर कार्य शुरू कर दिया जाएगा। श्री राय ने अनुभव तथा तर्क पर आधारित डॉ. पाठक के सुझावों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। सेमिनार में भाग लेने वाले विद्वानों और समाजशास्त्रियों ने प्रस्तावित सुझाव का स्वागत किया।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के स्थापना-दिवस पर आयोजित व्यंजन-प्रतियोगिता के विजेताओं सुश्री ऋतु (प्रथम) सुश्री आकांक्षा (द्वितीय) और सुश्री शांता (तृतीय) तथा पर्यावरण क्लब-द्वारा आयोजित भाषण-प्रतियोगिता की विजेताओं सुश्री भावना सिरोहा (प्रथम), श्री शम्भुशरण गुप्त (द्वितीय) और सुश्री ऋतु राय एवं सुश्री अनुपमा कुमारी (तृतीय, सम्मिलित रूप से) को प्रतिकुलपति डॉ. ए. अरविंदाक्षण ने पुरस्कार प्रदान किए। इस अवसर पर कुलपति श्री विभूति नारायण राय ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हमारे देश में स्कैवंेजिंग की कुप्रथा विदेशियों ने प्रारम्भ करवाई, क्योंकि इसके लिए उन्हें सस्ते श्रमिक उपलब्ध थे। उन्होंने स्कैवेंजिंग की प्रथा को खत्म करने की दिशा में सुलभ इंटरनेशनल के योगदान की प्रशंसा की और समाज के हर व्यक्ति को इसमें सहयोग करने की अपील की।
इस दो दिवसीय सेमिनार में सुलभ की गतिविधियों से सम्बद्ध लगी प्रदर्शनी लोगों के विशेष आकर्षण केन्द्र रही।
वर्धा में विश्वविद्यालय के कार्यक्रम के बाद 19 फरवरी को नागपुर मंे मीडिया को सम्बोधित करते हुए डॉक्टर पाठक ने बताया कि 28 तथा 29 जनवरी, 2013 को नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन एवं वर्धा में महात्मा गाँधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी-विश्वविद्यालय में हुए सेमिनारों में समाजशास्त्र विषय के पाठ्यक्रम में स्वच्छता के अध्ययन को सम्मिलित करने के प्रस्ताव पर विचार-विमर्श के पश्चात् सहमति दी गई। उन्होंने बताया कि अन्य विश्वविद्यालयों के सम्बद्ध विभागों तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को भी वह इस सम्बन्ध में पत्र लिखेंगे। इससे समाजशास्त्र-विषय की परिधि का विस्तार होगा और स्वच्छता से सम्बद्ध समाज की समस्याओं के समाधान में भी मदद मिलेगी। नई दिल्ली के राष्ट्रीय सम्मेलन मंे देश-भर से पधारे समाजशास्त्रियों और विद्वानों ने एकमत होकर इस विषय पर सहमति प्रकट की थी और इसके हेतु पाठ्यक्रम के विषयों का प्रस्ताव देते हुए राष्ट्रीय घोषणा भी पारित की थी।
साभार : सुलभ इण्डिया फरवरी 2013