मानव मल से किए जा रहे प्रयोगों को देख चकित रह गए मंत्री

सुलभ संवाददाता

जब घाना गणतंत्र के स्थानीय निकाय तथा ग्रामीण विकास-मंत्री श्री सैमुएल ओफोसू  अमपोफो सुलभ-परिसर में पहुंचे, उसके पूर्व ही भारत-सरकार के माननीय ग्रामीण विकास, पेय जल तथा स्वच्छता-मंत्री श्री जयराम रमेश पधार चुके थे। समागत अतिथियों का स्वागत अत्यंत आदर और उत्साह से किया गया। दोनों ही महानुभवों ने यहां आकर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की।

माननीय मंत्री महोदय के साथ श्री रैन्सफोर्ड अगपोंज दिनकिया, श्री क्वासी ओपोंग (दोनों ही घाना गणतंत्र के स्थानीय निकाय-विभाग के) एवं नई दिल्ली-स्थित घाना उच्चायुक्त सुश्री आवासुआ अजरी फोसू सुलभ-परिसर में पहुंचे। सुलभ के वरिष्ठ साहचर्य सदस्यों ने उनका स्वागत किया। परिसर के प्रवेश-स्थल पर ही लगे अपने भव्य और विराट चित्र को देखकर माननीय मंत्री महोदय अत्यंत प्रसन्न हुए। जयराम रमेश के चित्र के पास के लॉन में लगी हरी घास और उसके किनारों पर खिले फूलों वाले गमलों को देखकर आगंतुक भाव-विभोर हो गए। तब उन्हें और प्रसन्नता हुई, जब अलवर, राजस्थान की एक मुक्त महिला स्कैवेंजर ने उनकी आरती उतारी और उनके ललाट पर तिलक लगाया।

स्वागत के बाद अपने तथा सुलभ के सहयोगियों के साथ माननीय मंत्री जी सुलभ पब्लिक स्कूल में पहुंचे। सुलभ पब्लिक स्कूल में सामान्य एवं स्कैवेंजर दोनों वर्गों के बच्चों को एक साथ बैठे हुए और अध्ययन करते हुए देखकर उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई। कक्षा में उनके प्रवेश के साथ ही भारतीय संस्कृति के अनुरूप विविध भाषाओं में छात्रों ने उनका स्वागत किया। एक दो छात्रों ने संक्षेप में मंत्री महोदय को यह बताया कि वे अपनी शिक्षा समाप्त करने के बाद क्या करना चाहते हैं। मंत्री महोदय सुलभ वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर में यह देखकर बहुत प्रसन्न हुए कि छात्रों को कम्प्यूटर, कढ़ाई, सिलाई का प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के तहत दिया जा रहा है।

सुलभ पब्लिक स्कूल की एक वरिष्ठ अध्यापिका ने समागत अतिथियों को विद्यालय तथा प्रशिक्षण-केंद्र के कार्यकलापों और अनुशासन के बारे में बताया। घाना के माननीय मंत्री और उनके साथियों ने सेनिटेशन फैसिलिटेशन नैपकिन-केंद्र में लड़कियों को सैनिटरी नैपकिन बनाने में दिए जाने वाले प्रशिक्षण में गहरी दिलचस्पी दिखाई। घाना के उच्चायुक्त ने मंत्री महोदय की उस वक्त की तस्वीर कैमरे में उतारी, जब वे छात्रों से बातचीत कर रहे थे। वह यह देखकर बहुत प्रसन्न थे कि छात्रगण न केवल सैनिटरी नैपकिन बनाने वाली तकनीक से परिचित थे, बल्कि इस बात के महत्त्व से भी परिचित थे कि मासिक धर्म की शुचिता क्या है। मंत्री महोदय ने केंद्र के विद्यार्थियों के साथ फोटो खिंचावाई। छात्रों द्वारा एक गीत प्रस्तुत किए जाने के बाद उन्होंने हैप्पी-हैप्पी डे कहते हुए विदाई ली।
आगंतुकों को सुलभ की उपलब्धियां और उद्देश्य को बताते हुए कई चित्र भी दिखाए गए, जिनमें डॉक्टर पाठक को सन् 2009 का ‘स्टॉकहोम वाटर प्राइज’ का मेमेंटो भी था।

इसके बाद माननीय सैमुएल ओफोसू अमपोफो सुलभ अंतरराष्ट्रीय शौचालय-संग्रहालय देखने पहुंचे। उक्त संग्रहालय में न केवल मानव-सम्यता के प्रारंभिक काल से लेकर आज-तक के बीच के शौचालयों के विकास को दिखाया गया है, बल्कि यह भी दिखाया गया है कि इतिहास के अलग-अलग समय में शौचालय का कैसा स्वरूप था। यहां प्रदर्शित नमूनों में मध्यकाल के कुछ राजाओं द्वारा अपने सिंहासन के ठीक नीचे बने शौचालयों का इस्तेमाल दिखाया गया है। आगंतुकों के लिए यह जानकारी न केवल विस्मयकारी, बल्कि आंखें खोलने वाली थी। आगंतुकों के लिए शौचालय-संग्रहालय में जाना बहुत लाभकर सिद्ध हुआ। कारण, संग्रहालय के क्यूरेटर श्री वागेश्वर झा ने शौचालयों के इतिहास के बारे में जो कुछ बताया, वह दिलचस्प था। अतीत में एक समय में शौचालय इस तरह के बनाए जाते थे, जो मूल्यवान वस्तुओं के रखने के लिए भी प्रस्तुत होते थे। इतिहास का तथ्य यह भी है कि उनकी चोरी भी होती थी। मंत्री महोदय को सुलभ के शिरडी (महाराष्ट्र)-स्थित शौचालय-परिसर की एक प्रतिकृति दिखाई गई, जो दुनिया के बड़े शौचालय-परिसरों में एक है।

इसके बाद अतिथिगण सुलभ द्वारा विकसित शौचालयों की विभिन्न डिजाइनें देखने पहुंचे। वहां उन्हें बताया गया कि विभिन्न भौगोलिक परिवेश में उपलब्ध स्थानीय सामग्री, यथा-पत्थर, लकड़ी आदि के उपयोग से लोग अपनी आर्थिक व्यवस्था के अनुकूल खर्च करके शौचालय बनवा सकते हैं। सुलभ द्वारा विकसित शौचालय में मानव स्कैवेंजर की आवश्यकता नहीं पड़ती और इसके खाद में परिवर्तित मल को घर के लोग स्वयं साफ कर सकते हैं। एक नमूने द्वारा यह दिखाया गया कि किस तरह बहुत कम पानी (1.0 से 1.5 लीटर) में मल-प्रवाह किया जा सकता है। सुलभ के एक वैज्ञानिक ने जब सूखे मानव-मल से बना एक दरवाजा दिखाया तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ। पुनः उन्हें विश्वास दिलाने के लिए शुष्क मानव-मल से निर्मित एक गेंद को जमीन पर पटका गया। वह अन्य गेंदों की तरह उछल कर जमीन पर आ गया। आगंतुकों ने कहा ‘उल्लेखनीय! मानव-मल का ऐसा भी इस्तेमाल हो सकता है!’

डॉ. बिन्देश्वर पाठक माननीय केंद्रीय मंत्री श्री जयराम रमेश को विदा करके घाना से आए अतिथियों से मिलने के लिए पहुंच चुके थे। उन्होंने गर्मजोशी से श्री ओफोसू और उनकी टीम के सदस्यों से हाथ मिलाया। उसके बाद वे उन्हें सुलभ सार्वजनिक शौचालय-परिसर में ले गए। सबसे पहले उन्होंने एक नलका खोलकर बर्तन में साफ पानी भरा। अतिथि यह विश्वास नहीं कर सके कि बर्तन में जो पानी है, वह शौचालय-परिसर से निःसृत संशोधित अपजल है। उन्हें तब यकीन हुआ, जब डॉक्टर पाठक ने सीवेज से निकले जल के संशोधन की प्रक्रिया के बारे में बताया। इसके बाद डॉक्टर पाठक ने माननीय मंत्री को सुलभ शौचालय में संलग्न बायोगैस-प्लांट दिखाते हुए मानव-मल आधारित बायोगैस के विविध उपयोगों को बताया और बायोगैस-आधारित मेंटल-लैंप को जलाने के लिए उन्हें एक लाइटर दी। लैंप जलाने के बाद मंत्री महोदय मुस्कराए। उन्हें यकीन हो गया कि सुलभ की कार्य-प्रणाली में कुछ चीजें जादुई हैं। सुलभ के रसोईघर में बायोगैस से जलने वाले चूल्हे पर उन्होंने पापड़ भी सेंके।

जब आगंतुक सुलभ-सभागार में पहुंचे, तब सुलभ-परंपरा में उनका विधिवत स्वागत किया गया। डॉक्टर पाठक और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती अमोला पाठक ने सभी को चंदन एवं गुलाब की माला एवं शॉल भेंट की। तत्पश्चात् सुलभ की सीनियर वाइस प्रेसिडेंट श्रीमती आभा बहादुर ने माननीय मंत्री जी के जीवन, कार्य और उपलब्धि से संबद्ध प्रशस्तिपत्र का वाचन किया।

प्रशस्तिपत्र में उल्लेख था, ‘हम आपका स्वागत करते हुए अत्यंत गर्व का अनुभव कर रहे हैं। हम सुलभ-परिसर में आपका स्वागत करते हुए दोनों देशों के साथ होने के अवसर को पर्व की तरह मना रहे हैं। दोनों देश पहले ब्रितानी उपनिवेश थे। 1962 में जन्मे माननीय मंत्री सेमुएल को एक अंतरराष्ट्रीय मैगजीन ‘द न्यू घानानियन’ ने उन्हें स्थानीय निकाय का दस वर्षों का सर्वोत्तम मंत्री कहा था।

विभिन्न भौगोलिक परिवेश में उपलब्ध स्थानीय सामग्री, यथा-पत्थर, लकड़ी आदि के उपयोग से लोग अपनी आर्थिक व्यवस्था के अनुकूल खर्च करके शौचालय बनवा सकते हैं। सुलभ द्वारा विकसित शौचालय में मानव स्कैवेंजर की आवश्यकता नहीं पड़ती और इसके खाद में परिवर्तित मल को घर के लोग स्वयं साफ कर सकते हैं।

यह मान्यता श्री अमपोफो के नेतृत्व संबंधी गुणों और असाधारण मेहनत के कार्यों के कारण मिली, जिसका घाना-वासियों के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। उनके नेतृत्व में स्थानीय सरकार और ग्रामीण विकास मंत्रालय ने विकेंद्रीकरण, ग्रामीण विकास, पर्यावरण, स्वास्थ्य और स्वच्छता के क्षेत्र में पिछले मानक तोड़ देने वाली उपलब्धि हासिल की। हम लोगों को स्वस्थ रखने के लिए मिल-जुलकर कार्य करें, श्रीमान्, एक बार हम फिर सुलभ-परिसर में आपका स्वागत करते हैं।’

 

शीशे के अंदर एक सुंदर फ्रेम में मढ़ा प्रशस्तिपत्र जब माननीय मंत्री जी को प्रदान किया गया तो उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक डॉक्टर पाठक और श्रीमती पाठक से हाथ मिलाया। अतिथियों का स्वागत करते हुए डॉक्टर पाठक ने कहा कि यह एक अच्छा क्षण है, जब दो महत्वपूर्ण सरकारों-भारत और घाना के मंत्री सुलभ-परिसर में पधारे। दोनों समान विभाग के प्रभारी हैं। सुलभ-तकनीक, जैसा कि आपने देखा है बहुत सहज और लोगों की आय के अनुकूल तथा भारत और घाना दोनों के लिए उपयुक्त है। दोनों ही देशों में भूमिगत सीवरेज सिस्टम का निर्माण व्यावहारिक नहीं है, क्योंकि वह बहुत महंगा है। जहां कहीं भी सीवरेज सिस्टम व्यवहारिक नहीं है, वहां सुलभ की तकनीक स्वीकार की जा रही है, भारत में भी और भारत के बाहर भी। सुलभ ने काबुल में शौचालयों का निर्माण किया है। हम स्वच्छता-संबंधी अपने ज्ञान को घाना के साथ भी बांटना चाहेंगे।’

उस अवसर पर बोलते हुए माननीय मुख्य अतिथि ने कहा, ‘गरीबी, कुपोषण और स्वच्छता की दयनीय स्थिति ऐसी समस्याएं हैं, जिनसे जूझना है। इसके लिए घाना कदम उठा रहा है। हम भारत-सरकार के प्रति कृतज्ञ हैं कि उन्होंने यहां आने का हमें आमंत्रण दिया। मैं उससे अधिक कृतज्ञ हूं सुलभ-संगठन का, जिसने एक अतिथि के रूप में मेरा और मेरी पार्टी का स्वागत किया। घाना जिंदाबाद, भारत जिंदाबाद।’
अतिथियों ने सुलभ पब्लिक स्कूल के छात्रों द्वारा प्रस्तुत सांस्कृतिक कार्यक्रम का आनंद उठाया। ‘होलिया में उड़े रे गुलाल’ गाते हुए छात्रों ने उनके चेहरों पर गुलाल लगाया। राष्ट्रगान के पूर्व डॉक्टर पाठक ने उनके लिए एक होली गीत गाया।

घाना के माननीय मंत्री श्री सैमुएल ओफोसू अमपोफो ने सुलभ से विदा होने के पहले आगंतुक पुस्तिका में लिखा-‘शौचालय के निर्माण को आय के अनुकूल बनाने वाले और उसमें जो नवीनता पाई गई है, उसके लिए तथा इस केंद्र द्वारा समाज के दलित-वर्गों के लिए सामान्य सामाजिक सेवा की व्यवस्था और स्कैवेंजिंग को समाप्त करने के लिए जो क्रियाकलाप किए जा रहे हैं, उनसे मैं बहुत प्रभावित हूं। आपको ईश्वर का आशीष।’
विदा होने से पहले अतिथियों ने अलवर और टोंक की पुनर्वासित महिलाओं के साथ फोटो खिंचवाया। जब वे अल्पाहार के लिए सुलभ-सम्मेलन-कक्ष में पहुंचे तो उन्होंने अपने स्वागत-सम्मान के लिए डॉक्टर पाठक को धन्यवाद दिया।

साभार : सुलभ इंडिया

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