कभी सिर पर मैला ढोने का काम करनेवाली और समाज में अछूत समझी जानेवाली पुनर्वासित स्कैवेंजर महिलाओं के एक समूह के लिए शनिवार को उस वक्त अकल्पनीय क्षण आया, जब उन्होंने राजधानी के ऐतिहासिक गांधी स्मृति में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पोती के साथ खाना खाया। महात्मा गांधी जी की पोती तारा भट्टाचार्य के साथ भोजन करने के समय हाथ से शुष्क शौचालय साफ करने और मल को सिर पर ढोकर अन्यत्र पहुंचाने के पुश्तैनी काम से मुक्त कराई गई राजस्थान के अलवर और टोंक जिलों की कम-से-कम 60 महिलाओं के चेहरे गौरव का भाव साफ-साफ पढ़ा जा सकता था।
गांधी की पोती ने मैला ढोने वाली महिलाओं के साथ खाना खाया
तारा भट्टाचार्य ने इन महिलाओं को खाने पर आमंत्रित किया था। इससे पहले वे सभी महात्मा गांधी के समाधि स्थल राजघाट भी गईं और वहां उन्हें श्रद्धांजलि सुमन अर्पित किए। सदियों से मैला ढोने की कुप्रथा की शिकार इन महिलाओं ने गांधी की समाधि और उनके निवास स्थल गांधी स्मृति पर पहुंचकर छुआछूत के बंधन वाले इस समाज में खुद को आजाद परिंदे जैसा महसूस किया। उषा चैमड़ और 30 साल की लक्ष्मी सहित इन महिलाओं के जीवन में सात साल पहले उस वक्त नया सवेरा आया था जब ये सुलभ आंदोलन के प्रणेता डॉ. बिन्देश्वर पाठक के नेतृत्व में सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन से जुड़ी थीं।
सुलभ ने सिर से मैला हटाया, अब वे सम्मानित पेशों से जुड़ गई हैं
स्वच्छता क्षेत्र के इस गैर सरकारी संगठन ने उनके जीवन की दिशा और दशा दोनों बदलकर रख दी और अब वे पापड़, अचार, नूडल्स, मोमबत्ती, ठोंगा आदि बनाने जैसे अनेक व्यावसायिक कार्यों व ब्यूटीशियन आदि के काम में जुटी हैं और सम्मानित जीवन जी रही हैं। सामाजिक कुरीतियों से छुटकारा पाई इन महिलाओं को वास्तविक हीरोइन बताते हुए तारा गांधी भट्टाचार्य ने समाज में व्याप्त इन बुराइयों को उखाड़ फेंकने के लिए व्यापक अभियान चलाने की आवश्यकता जताई।
डाॅ. पाठक के प्रयास से मानवता को संबल मिला है
उन्होंने जाति प्रथा को सबसे बड़ी बुराई करार देते हुए कहा कि गरीबों को भी आत्मसम्मान के साथ जीने का अधिकार है। राजस्थान के अलवर और टोंक जिलों की महिलाओं के जीवन में नया सवेरा लाने की दिशा में सुलभ आंदोलन के जनक डॉक्टर पाठक की ओर से किए गए प्रयासों की तारीफ करते हुए तारा गांधी भट्टाचार्य ने कहा कि इस तरह के प्रयासों से मानवता में उनका विश्वास मजबूत हुआ है।
तारा गांधी भट्टाचार्य ने कहा, गांधी के रास्ते को अपनाते हुए डॉक्टर पाठक स्कैवेंजर के लिए जाति प्रथा से संबोधित सामाजिक और कानूनी बाधाएं हटाने की दिशा में कार्य कर रहे हैं। निम्न जाति के दलितों को जन्म के बाद से ही शौचालय और मानव-मल साफ करने को कहा जाता है और उसके जीवन में कोई अन्य विकल्प नहीं होता। इस अवसर पर डॉक्टर पाठक ने कहा कि महात्मा गांधी का सपना था कि मैला ढोने वालों को भी समानता का अधिकार और समाज में सम्मान मिले और तारा गांधी ने पूर्व स्कैवेंजर महिलाओं को अपने साथ खाना खाने के लिए आमंत्रित करके उन्हें सम्मान देने का अद्भुत काम किया है।
पढ़ना भी सीख रहे हैं स्कैवेंजर
सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक ने इन पुनर्वासित महिलाओं के राजघाट और गांधी स्मृति तक की यात्रा को अस्पृश्यता जैसी सदियों पुरानी बुराई के खिलाफ बड़ी जीत करार दिया। उन्होंने कहा कि करीब दस लाख स्कैवेंजरों की समस्या केवल पानी और स्वच्छता की समस्या नहीं है, बल्कि विशेष तरह की समस्या है, जिसका निदान भी विशेष तरीके से ही किया जा सकता है। सुलभ इंटरनेशनल के सहयोग से लिखना-पढ़ना सीख चुकी एक पुनर्वासित महिला लक्ष्मी ने इन अवसर पर अपनी दो कविताएं भी सुनाईं, जबकि डॉली ने यह बताया कि आखिर सुलभ इंटरनेशनल के प्रयास ने कैसे उसका जीवन बदल दिया।
साभार : जनसत्ता, सुलभ इंडिया, दिसंबर 2012