खुले में शौच से मुक्त हुआ हरका गाँव

अरविन्द कुमार

 

एक ऐसा सुमदाय जो साफ-सफाई जैसी चीजों पर विश्वास नहीं करता उन लोगों ने मिलकर पूरे गाँव को खुले में शौच से मुक्त किया। पश्चिमी चम्पारण के बेतिया जिले के बगहा प्रखण्ड के जमुनापुर टंडवलिया पंचायत में हरका नाम का एक गाँव है। इस गाँव में कुल 45 घर हैं, जिसमें मुसहर जाति के लोग रहते हैं। यह एक ऐसा समुदाय है जो अपने और अपने परिवार के लालन-पालन के लिए दैनिक मजदूरी का काम करते हैं और जिस दिन काम न करें तो शायद वे अपने परिवार को खाना भी नहीं दे पाते हैं।

 

उनके पास रहने के लिए टूटी-फूटी झोपड़ी है जिससे कि बरसात के मौसम में पानी टपकता रहता है। पहनने के लिए फटे-पुराने कपड़े जिसे पहन कर वे बेरहम ठण्ड और बरसात का सामना करते हैं I अब ये गाँव दूसरे गाँवों के लिए एक मिसाल बन चुका हैI आस-पड़ोस के लोग ये सोचने लगे हैं की अचानक से क्या हो गया है इस गाँव के लोगों को कि कोई भी व्यक्ति सुबह और शाम को नहर किनारे टट्टी करने को नहीं आ रहा है I

 

यही उत्सुकता लिए हुए बगल के गाँव का वार्ड मेम्बर मुखिया जी (श्रीमती सुमित्रा देवी) के पास पहुँचा और उनसे पूछा कि मुखिया जी क्या हुआ है हरका गाँव के लोगों को आजकल वो शाम को टट्टी सेंटर पर मिलते नहीं हैं लेकिन काम पर सभी लोग मिल जाते हैं? पहले तो इस गाँव के ज्यादातर लोग बीमार ही रहते थे?

 

उसी गाँव की एक महिला फुलवा देवी ने भी सोच लिया कि अब उन्हें अपनी बेटी को बाहर नहीं भेजना है अब। चाहे जो हो जाए शौचालय तो बनवाना ही है। परन्तु उसके पास पैसे नहीं थे तो उन्होंने अपने गहनों को गिरवी रखकर पैसे उधार लिये और शौचालय बनवाया। जब प्लान-अदिथि के लोगों ने उनसे पूछा कि आपने ऐसा क्यों किया तो उन्होंने कहा कि “गहने तो हम वापस ले आयेंगे पर अगर मेरी बेटी की इज्जत चली गयी तो उसे कोई वापस नहीं ला सकता।”

 

मुखिया जी ने कहा अरे भाई! तुम्हे नहीं पता यह गाँव तो अब खुले में शौच से मुक्त हो चुका है और यह सब हुआ है यहाँ के लोगों की समझदारी से। यानि की अप्रैल 2014 में प्लान-अदिथि नामक संस्था ने ग्लोबल सैनिटेशन फण्ड (N.R.M.C. एक्सेकुटिंग एजेंसी ऑफ इण्डिया GSF India) के प्रोजेक्ट, जिला जल एवं स्वच्छता समिति- बेतिया के सहयोग से चला रही है। उन्होंने हमारे गाँव में सारे गाँव वालो को बताया कि हम और हमारे बच्चों के अक्सर बीमार रहने की वजह है गन्दगी और खुले में शौच। हम खुले में शौच करते हैं और मक्खियाँ उस पर बैठ कर अपने पैरों में टट्टी लगा कर फिर हमारे खाने पर बैठती हैं और वही खाना हम खा लेते हैं। मतलब कि हम खाने के साथ एक-दूसरे का पैखाना भी खा लेते हैं जिससे हम और हमारे बच्चे बीमार पड़ जाते हैं।

 

यही बीमारी हमारी गरीबी का कारण भी है। जब हम बीमार पड़ जाते हैं तो हमारी रोज की दिहा़ड़ी का तो नुकसान होता ही है साथ में हमें डॉक्टर और दवाई पर भी पैसे खर्च करने पड़ते हैं। इसके अलावा हमारी बहू-बेटियों की इज्जत भी सुरक्षित नहीं रहती है खुले में जाने से। अगर हम अपना शौचालय बनवाते हैं और हाथ साबुन से धोते हैं तो हम 80 प्रतिशत बिमारियों से स्वतः ही बच जाते हैंI ये सारी बातें सुन कर उन लोगों ने यह निर्णय किया की हमें भी अपना शौचालय बनवाना चाहिए। तब प्लान-अदिथि के लोगों ने उस गाँव में एक निगरानी समिति का गठन किया जिसमें महिलायें और पुरुष दोनों ने शामिल होने में तत्परता दिखाई।

 

निगरानी समिति ने संस्था के सहयोग से अपना प्रयास प्रारम्भ किया। पर पैसे की कमी और सामान की अनुपलब्धता ने इसे सफल नहीं होने दिया। परन्तु निगरानी समिति ने जागरूकता फैलाने का काम नहीं छोड़ा। इस समिति की महिला लीलावती देवी की भूमिका को हम भूल नहीं सकते। उन्होंने घर-घर घूम कर लोगों को वो सारी बातेंं याद दिलाई जो ट्रिगरिंग के समय कही गयी थी। उन्हें अपनी और अपनी बहू-बेटियों की इज्जत के बारे में याद दिलाया साथ ही उन्हें शौचालय बनवाने के लिए मजबूर भी कियाI

 

लीलावती देवी ने स्वयं पैसे उधार लेकर पहले अपने घर में शौचालय का निर्माण करवाया। अब लीलावती देवी अकेली नहीं रही क्योंकि उनके इस सार्थक प्रयास में कई और लोग भी जुड़ गए थे। गाँव में शौचालय का निर्माण कार्य शुरू हुआ तब गाँव की मुखिया ने उनके इस प्रयास को देखते हुए उनकी मदद करने की ठान ली और शौचालय निर्माण हेतु जरूरी सामान की व्यवस्था करवा दी। इसके बाद लोगों ने शौचालय बनवाना शुरू कर दिया।

 

उसी गाँव की एक महिला फुलवा देवी ने भी सोच लिया कि अब उन्हें अपनी बेटी को बाहर नहीं भेजना है अब। चाहे जो हो जाए शौचालय तो बनवाना ही है। परन्तु उसके पास पैसे नहीं थे तो उन्होंने अपने गहनों को गिरवी रखकर पैसे उधार लिये और शौचालय बनवाया। जब प्लान-अदिथि के लोगों ने उनसे पूछा कि आपने ऐसा क्यों किया तो उन्होंने कहा कि “गहने तो हम वापस ले आयेंगे पर अगर मेरी बेटी की इज्जत चली गयी तो उसे कोई वापस नहीं ला सकता।” इन बातों को हमने पूरे गाँव के सामने रखा। लोग उनके जवाब से निरुत्तर हो गए और सोचने पर मजबूर हो गए।

 

फिर उन सभी लोगों ने अपने-अपने घर में शौचालय निर्माण का प्रण लिया और अंततः उन्होंने यह कर दिखायाI आज एक भी परिवार ऐसा नहीं है जिसके पास शौचालय नहीं हो। यदि सभी लोग मिलकर यह सोचे की कैसे हमें अपने गाँव को समृद्ध करना है और कैसे हमें अपने गाँव को खुले में शौच से मुक्त करना है तो उन्हें मार्ग-दर्शन देने वाला कोई-न-कोई मिल ही जाता है। उनकी साधना और प्रयास सफल हो जाते हैं।

Post By: iwpsuperadmin
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