स्कैवेंजर-समाज की नई पीढ़ी की रोली कुमारी पढ़ने-लिखने वाली एक युवती है। एक रात जब वह गहरी नींद में होती है तो बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर उसके सपने में आते हैं। बाबा साहेब का यह खत वह उसी सपने में ही प्राप्त करती हैः बाबा साहेब अम्बेडकर का खत
डॉ. गंगेश गुंजन
मेरे प्यारे लोगों!
मैं जानता हूँ तुम मुझे
बहुत प्यार करते हो
तुम में से ज्यादातर तो
मेरे लिए जान भी कुर्बान कर सकते हो
मैं पूरे यकीन से यह मानता हूँ
मेरे प्यारे लोगों!
मैं भी तुम्हारे लिए इसी तरह
कई जनम मर सकता हूँ
जैसे इस जीवन में जीता रहा
मात्र तुम्हीं लोगों को।
लेकिन अपने इसी भरोसे के कारण
मुझे डर भी लगता है-
मेरे लिए तुम्हारा प्रेम किसी पल
श्रद्धा न बन जाए-
कहीं तुम मुझे, मकबरा या मीनार
न बना डालो या कि
समाज से जुदा, गाँव से दूर,
बहुत दूर किसी बियाबान में,
कोई एक भव्य मंदिर!
कृपया, मेरे साथियो! प्यार है तो कोई ‘बुत’
मत बनाना मुझे किसी दिन!
बनाना चाहो तो
अपनी बस्ती के नलके बनाना
गाँवों में बनाना पोखरा-तालाब
किसी बाबू की ड्योढ़ी-दालान का खानदानी
कुआँ मत बनाना कभी,
भूले से भाई मेरे!
सबजनिया कुआँ ही बनाना,
पानी ले जाए जिससे
गाँव-भर-समाज।
जरूरत भर गाँव के लिए
कुआँ-चापाकल ही बनाना,
गंगा-जमना के साथ एक और नदी बनाना।
जी भर नहाना।
निर्भय पीना छक कर, प्यास भर पानी।
उसका स्वच्छ मीठा जल रखने का करना
पुख्ता इंतजाम।
मुक्त कर इस घृणित पेशे से,
नई तकनीक के शौचालय बनाना
बनाओ तो देश-भर
सुलभ पब्लिक स्कूल बनाना
सुलभ के अपने संस्थापक जी से अनुरोध
करना और-बहुत-से और
‘नई दिशाएँ’ सेंटर बनवाना।
मगर अपने ही सुख मंे
निश्चिंत मत हो जाना।
इस घिनौने पेशे से मुक्त होने में
अब और देर मत करना
मुझे मालूम है, समाज की
प्रथा की उम्र बहुत नहीं होती है।
हमारे पेशे की तो और भी कम है।
अब जग गए हो तो
कल खत्म होनी ही है।
लेकिन तब भी सफर नहीं होगा आसान।
बापू ने जिसे समाज का
आखिरी आदमी कहा था
उन तक पहुँचने का रास्ता,
जो मकसद है, वह बहुत लम्बा है।
मुझे चेतना बनाना।
जेब-टॉर्च की तरह अपने साथ रखना
अँधेरे रस्ते पर जहरीले
साँप-बिच्छुओं से बचने के लिए।
सको तो मुझे सफर में
पास-पास की सराय बनाना
जहाँ ठहराने से पहले सराय-मालिक पूछे
नहीं किसी बटोही से-आश्रम,
उसकी जात, जिला, उसके गाँव का नाम।
थके-हारे यात्रियों में बिन रोक-टोक मुझे
करने देना रात भर विश्राम।
मगर भूले से मुझे पाँचतारा होटल
मत बनाना साथियो! कभी मत।
महानगर में अभी बहुत दूरियाँ हैं
लोग-लोग के बीच।
अब झुग्गी-झोपड़ी मत बनने देना मुझे।
खुद बचना और बचाना।
सको तो आज भी अपने इस गरीब और
अशिक्षा के अँधेरे में डूबे हुए लाखों गाँवों के
बीचोबीच जरूरत के
पुस्तकालय बनाना,
उपलब्ध हो जाए पढ़ी जानेवाली
नई-से-नई किताब और प्रकाश।
इसकी वजह बनाना मुझे!
मीठे बोल और सुरों का गाना बनाना,
कर्कश आवाज और झुलसे हुए आपस के
स्वरों का झगड़ालू शोर, कभी मत! समाज
बनाकर रखना। पर याद रहे-ऐसा जातों में
बँटा-कटा-पिटा-विभेदी-विद्वेषी समाज नहीं।
समरस आनन्द के अवसर का
सर्वजन उपाय बनाना। साथ रखना।
जीवन का बिलकुल
एक नया ही साँचा बनाना मुझे।
मुझे एक बड़ी बहस बनाए चलना,
सृष्टि के उज्जवल सत्य और
मानवीय सम्मान का पाठ हो,
वह सार्वजनिक विश्वविद्यालय बनाना।
विवाद मत बनाना साथी,
विचार बनाकर रखना।
मुद्दों के बहस-विलासी
बौद्धिक जनों से बचाना।
तुम मुझे बहुत प्यार करते हो ना।
तो मुझे जात-पाँत
प्रथामुक्त संसार का प्यार ही बनाना।
बना सको तो।
समरस धर्म की दिव्य हँसी-खुशी बनाना
और बाँटना पूरी दुनिया जहाँ आज भी किसी
अभिशापित इतिहास का प्रतिशोध आग
बनकर अक्सर जला देने आ जाता है हमारे
मन-मिजाज को, अँधेरा कर जाता है। मुझे
आपसी मतभेद नहीं, सहजीवी वजूद बनाना
और विश्व-शांति का नया पाठ।
हिंसामुक्त स्पर्श बनाना मुझे,
आमने-सामने तने हुए
तीर-तलवार मत बनाना मेरा।
निश्चल अडिग अपना विश्वास बनाना मुझे
लेकिन बुत नहीं।
कितनी भी बड़ी हो मूरत,
वह मूरत ही रहती है।
साबूत सही इनसान के आगे छोटी ही रहती
है और बे-जान!
दुनिया के इन दुःखों से बेपरवाह!
बना सको तो आने वाले दिनों,
मेरे लोगो!
मुझे बने ही दिए रहना इनसान।
भगवान् मत बनाना!
और आखिर में एक और-
बापू और मेरी बहसों का,
हमारे विचार के संघर्षों का
कभी नहीं करना इस्तेमाल,
गलतफहमी में कभी
इसे तुच्छ वर्चस्व की नफरत का
मैदान मत बनाना।
हमारी उन बहसों और विरोधों को
नई जरूरी रोशनी की तरह
करना तैयार और
इतिहास की निष्पक्ष किताब बनाना।
मिला करें हम इस तरह
14 अप्रैल को भी हर्ज नहीं हर हाल।
लेकिन इन्सानियत का मुकम्मल संविधान
बनाना मुझे मेरे लोगो!
साभार : सुलभ इण्डिया अप्रैल 2014