कुम्भ मेले से जुड़ा नया सामाजिक अध्याय

डॉ. सुमन चाहर

 

इलाहाबाद के महाकुम्भ में हजारों लोग उस इतिहास के साक्षी बने जब 7 फरवरी, 2013 को सुलभ इंटरनेशनल द्वारा पुनर्वासित स्कैवेंजर महिलाओं ने संगम में स्नान कर न सिर्फ पूजा-अर्चना की बल्कि साधु-संतों के साथ मिलकर खाना भी खाया। निःसन्देह यह पहली बार सम्भव हुआ कि महाकुम्भ के इस धार्मिक मंडली में वे शामिल हुईं। और इसकी पहल की सुलभ स्वच्छता आन्दोलन के संस्थापक डॉ. बिन्देश्वर पाठक ने। इस अवसर पर डॉक्टर पाठन ने कहा कि आज यह संगम साक्षी है उस बात को लेकर जब पुरानी परम्पराएँ टूटी हैं और सभी जाति और सम्प्रदाय के लोगों ने एक साथ मिलकर यहाँ समानता बहाल की है।

 

हिन्दू धर्म में कुम्भ मेले का अपना महत्त्व है। इस पवित्र संगम स्थली में धार्मिक स्नान कर लोग पुण्य कमाते हैं। भारत में यह स्नान हर तीन साल के बाद चार धर्म स्थलों हरिद्वार, इलाहाबाद, नासिक और उज्जैन में होता है। सन 1970 से सर पर मैला ढोने वालों को इस घृणित काम से मुक्त करने की लड़ाई लड़ रहे डॉक्टर पाठक ने कहा कि कुम्भ में इन महिलाओं के इस स्नान के माध्यम से हम यह सन्देश देना चाहते हैं कि ये पूर्व स्कैवेंजर महिलाएँ हमारे समाज का ही एक हिस्सा हैं और अस्पृश्य नहीं हैं।’

 

‘यह हमारे जैसी महिलाओं का पुनर्जन्म ही है कि पुरोहित ने खुशी से हमें अपनाया और हम हिन्दू समाज का हिस्सा बनीं। यह हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि महामंडलेश्वर के मुख्य पुरोहित हमें अपनाएंगे और हमें भी समानता का अधिकार मिलेगा।’ संगम में स्नान करने और पुरोहित द्वारा अपनाए जाने के बाद अलवर की पुनर्वासित महिला गुड्डी अठवाल ने यह बात कही। डॉ. बिन्देश्वर पाठक के साथ राजस्थान के अलवर एवं टोंक की 100 पुनर्वासित स्कैवेंजर महिलाएँ महाकुम्भ के इस अवसर पर संगम स्थली पर बने विख्यात संत स्वामी आनन्द गिरि के  कैंप में ठहरी थीं।

 

स्वामी आनन्द गिरि ने आशा व्यक्त की कि इस तरह का आयोजन यह संकेत करता है कि समाज में फैली जाति प्रथा और छुआछूत की प्रथा समाप्त होगी। इस अवसर पर श्री महामंडलेश्वर आनन्दी अखाड़ा के महाराज गजानन्द महाराज और निरन्जन अखाड़ा के जगदीश्वर जी भी मौजूद थे।

ऊषा चौमड़ ने कहा कि ‘यह हमारे लिए न भूलने वाला क्षण है जब माँ गंगा ने हमारे अंतरआत्मा की आवाज सुनी और अपना आशीर्वाद देने के लिए हमें इस पुण्य शहर में बुलाया।’ टोंक से आई 19 वर्षीय तुलसी ने कहा कि मैंने यह कभी नहीं सोचा था कि एक दिन मैं अपनी माँ के साथ इस संगम में डुबकी लगाऊँगी।

संगम में स्नान और पूजा-अर्चना के अलावा सबसे महत्त्वपूर्ण बात थी कि इन महिलाओं ने हिन्दू धर्म के सौ से अधिक संतों जिनमें स्वामी नरेन्द्र गिरि और आनन्द गिरि भी शामिल थे के साथ भोजन ग्रहण किया। इन महिलाओं ने साधु-संतों के साथ हाम मिलाकर पूरे रीति-रिवाज के साथ गंगा में पूजा अर्चना की। टोंक की सरिता ने कहा कि मैं अपने इन अनुभवों को व्यक्त नहीं कर सकती जिसका मुझे वर्षों से इंतजार था।

50 वर्षों से सर पर मैला ढो रही और 2008 में सुलभ द्वारा पुनर्वासित 60 वर्षीया रमा देवी ने बताया कि मुझे लगता था कि हमारी जैसी महिलाओं को भगवान ने सिर्फ सर पर मैला ढोने के लिए बनाया है लेकिन आज ऐसा नहीं है। मुझे आशा है कि हमारी ही तरह अन्य लोगों की जिन्दगी में भी बदलाव आएगा।

इन महिलाओं ने इलाहाबाद के सभी अखाड़ों और बड़े हनुमान मन्दिर का भी दर्शन किया।

श्रीमती ऊषा चौमड़ ने बताया, (अलवर, राजस्थान) जब हम इलाहाबाद से लौटीं तब रास्ते में हमारे जजमान मिल गए। उन्होंने कहा ऊषा, तुम इलाहाबाद कुम्भ-स्नान करके आ गई। उन्होंने कहा, हम तो इस बार नहीं जा पाए। हमने उनको इलाहाबाद से लाया गंगाजल भी दिया। इसके पश्चात् दो जजमान मीना और शीला हमारे घर आए। मैंने उनको पानी का गिलास दिया, उन्होंने कहा कि जब मैं अपनी लड़की की शादी करूँगी तब तुझसे ही लड़की का कन्यादान कराऊँगी। उनको प्रसाद और माला भी दी।

साभार : सुलभ इण्डिया फरवरी 2013

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