नई दिल्ली, विशेष संवाददाता
कभी सिर पर मैला ढोने का कार्य करने वाली तथा समाज में अछूत समझी जाने वाली महिलाओं ने गाँधी स्मृति में एक समारोह में महात्मा गाँधी की पोती तारा गाँधी भट्टाचार्य के साथ खाना खाया। उनके लिए यह जीवन का गौरवपूर्ण दिन था। इनमें राजस्थान के अलवर की करीब 60 महिलाएँ शामिल थीं ये अब सिर पर मैला ढोने का कार्य छोड़ चुकी हैं।
महात्मा गाँधी की पोती ने इन्हें खाने पर आमन्त्रित किया था। इससे पहले वे महात्मा गाँधी की समाधि स्थल राजघाट पर भी गईं। सदियों से मैला ढोने की कुप्रथा की शिकार इन महिलाओं ने गाँधी जी की समाधि एवं निवास स्थल पर जाकर खुद को छुआछूत के बन्धन से मुक्त महसूस किया। सुलभ इंटरनेशनल के सहयोग से अब ये महिलाएँ अचार, पापड़ बेचने का कार्य कर अपनी आजीविका चला रही हैं। भट्टाचार्य ने जाति प्रथा को उखाड़-फेंकने की अपील की। उन्होंने जाति प्रथा को समाज की बुराई करार देते हुए कहा कि सभी लोगों को समाज में बराबरी से जीने का अधिकार है। इसलिए इसके लिए व्यापक अभियान छेड़े जाने की जरूरत है।
साभार : हिन्दुस्तान 24 दिसम्बर 2012
सुलभ इण्डिया दिसम्बर 2012