ए.के सेनगुप्ता
भारत-सरकार के पेयजल एवं स्वच्छता-मन्त्रालय-द्वारा राज्य -सरकारों के ग्रामीण स्वच्छता विभाग के मन्त्रिगण तथा सचिवों के साथ राष्ट्रीय विचार-गोष्ठी का आयोजन नई दिल्ली में 20 और 21 दिसम्बर, 2012 को किया गया।
1986 में ग्रामीण विकास विभाग द्वारा भारत के प्रथम राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम, केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया, जिसका केन्द्र-बिन्दु था-घरों में पोर-फ्लश शौचालयों का प्रावधान। इनके लिए लोगों की माँग संवर्धन हेतु हाई-वेअर अनुदान की भी व्यवस्था की गई परन्तु इस कार्यक्रम से स्वच्छता के आच्छादन की वस्तुतः न वृद्धि हो पाई, न ही लोगों को इसके लिए उपयुक्त प्रेरणा या प्रोत्साहन मिल पाया। इसका कारण था इस कार्यक्रम का इस भ्रामक अनुमान पर आधारित होना कि स्वच्छता की सुविधाओं के प्रावधान से आच्छादान तथा वास्तविक उपयोग में वृद्धि होगी।
वर्ष 2012 में पूर्व स्वच्छता-अभियान के स्थान पर निर्मल भारत अभियान प्रारम्भ किया गया, जिसकी मार्गदर्शक विशेषताएँ तथा उद्देश्य परिवर्तित किए गए हैं, इस उद्देश्य से कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता का आच्छादन बढ़ाया जाए, ताकि पुनरीक्षित नीति के साथ ग्रामीण समुदायों को व्यापक तौर पर आच्छादित किया जा सके। निर्मल भारत अभियान में ग्रामीण स्वच्छता-कार्यक्रम में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन लाते हुए निजी घरों मंे शौचालय के लिए इन्सेंटिव का प्रावधान बढ़ाया गया है, ताकि अनुसूचित जाति तथा जनजाति, लघु तथा सीमांत किसानों, घर वाले भूमिहीन मजदूरों, शारीरिक रूप से चैलेंज्ड लोगों के तथा महिला-प्रधान घरों को गरीबी-रेखा के नीचे लोगों के घरांे के साथ शामिल किया जा सके। इस अभियान के तहत इन्सेंटिव बढ़ाकर 4600 रुपए कर दिया गया है। जिसमें 3200 रुपए केन्द्र तथा 1400 रुपए राज्य का अनुदान है, पहाड़ी तथा कठिन क्षेत्रों के लिए केन्द्र का 500 रुपए का अतिरिक्त अंशदान होगा। सभी उपयुक्त लाभान्वितों के लिए महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के अन्तर्गत निजी घरों में शौचालयों के लिए 4500 रुपए प्रति घर के हिसाब से अतिरिक्त वित्तीय सहायता का प्रावधान किया गया है।
उपर्युक्त अभियान के निरीक्षण, समीक्षा और जाँच से पता चलता है कि महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण नियोजन गारंटी योजना के साथ निर्मल भारत अभियान का कार्यान्वयन अभी पूरी तरह प्रयोग में नहीं हो पाया है, राज्य-सरकारें इस दिशा में कुछ कठिनाइयों की चर्चा करती हैं।
मुख्य उद्देश्य
राष्ट्रीय विचार-गोष्ठी का मुख्य उद्देश्य था राज्य-स्तर के राजनीतिक नेतृत्व, सम्बद्ध सचिवों, क्षेत्र तथा जिला के कार्यकर्ताओं, गैर-सरकारी संगठनों तथा अन्तरराष्ट्रीय संसाधन एजेंसियों को एक मंच प्रदान करना, जहाँ निर्मल भारत अभियान के कार्यान्वयन से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श हो तथा भारत को निर्मल भारत बनाने के अभियान में जरूरी समझे जाने वाले बदलाव तथा संशोधनों की पहचान करना।
राष्ट्रीय विचार-गोष्ठी दो दिनों तक चली। पहले दिन विचार-गोष्ठी में भाग लेने वाले थे राज्यों के सम्बद्ध विभागों के सचिव तथा ग्रामीण स्वच्छता के प्रभारी जिला-स्तरीय पदाधिकारिगण। पहले दिन के कार्यक्रम की अध्यक्षता भारत-सरकार के पेयजल तथा स्वच्छता मन्त्रालय के सचिव श्री पंकज जैन ने की।
दूसरे दिन की गोष्ठी में राज्य-सरकार के मन्त्रिगण तथा स्वच्छता के प्रभारी सचिवों ने भाग लिया। दोनों दिनों के विचारणीय विषयों में निम्नलिखित प्रमुख थे-
निर्मल भारत अभियान प्रारम्भ होने के बाद राज्यों की भौतिक तथा वित्तीय प्रगति की समीक्षा।
निर्मल भारत अभियान तथा महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के समन्वय की समीक्षा।
योजना की नए मार्गदर्शक नीतियों का कार्यान्वयन।
स्वच्छता मॉनिटरिंग संरचना की समीक्षा।
समन्वित कार्यान्वयन गतिविधियों की नीति की समीक्षा।
गैर-सरकारी संगठनों तथा अन्तरराष्ट्रीय संसाधन एजेंसियों की भूमिका की समीक्षा।
खुले में शौच की समाप्ति के लिए समय-निर्धारण।
शुष्क शौचालयों के स्वच्छ शौचालयों में परिवर्तन की समीक्षा।
कार्यक्रम के दूसरे दिन गोष्ठी का उद्घाटन करते हुए माननीय श्री भरतसिंह माधवसिंह सोलंकी, भारत-सरकार के पेयजल तथा स्वच्छता राज्य मंत्री (स्वतन्त्र प्रभार) ने कहा, ‘बारहवीं पंचवर्षीय योजना के पहले वर्ष मंे प्रारम्भ किए गए निर्मल भारत अभियान का उद्देश्य है ग्रामीण जनता-द्वारा स्वच्छता-सुविधाओं के निर्माण तथा उपयोग में व्यापक परिवर्तन लाना। स्वच्छता को मुख्यधारा में लाने और लोकप्रिय बनाने के लिए कई उपाय किए गए हैं। स्वच्छता-कार्यक्रम में निर्मल भारत अभियान-द्वारा कई परिवर्तन किए गए हैं, जैसे इन्सेंटिव के प्रावधान को व्यापक बनाना, जिससे गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों के साथ-साथ गरीबी रेखा के ऊपर के चिह्नित परिवारों को भी शामिल करना। इस विषय पर मैं गैर-सरकारी संगठनों और अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं के मूल्यावान सुझावों के लिए अनुरोध करूँगा। गैर-सरकारी संगठन इस सुविधा के लिए माँग सर्जित करने और शौचालय-सुविधा की जरूरत और इसके लाभ पर समुदायों को जानकारी उपलब्ध करा सकते हैं और इस दिशा में सहभागिता भी कर सकते हैं। स्वस्थ आदतों और व्यवहार पर ये प्रोत्साहन तथा ग्रामीण समुदाय में हो रहे परिवर्तनों पर नजर भी रख सकते हैं। मैं गैर-सरकारी संगठनों से निर्मल भारत के लिए स्वच्छता की दिशा में अधिक भागीदारी के लिए आग्रह करना चाहूँगा।’
सुलभ की उपलब्धियाँ
सम्मेलन में दोनों दिन अपनी बात रखते हुए डॉ. बिन्देश्वर पाठक ने सुलभ की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला और कहा कि सुलभ के प्रयासों से स्वच्छता-कार्यक्रम जन-साधारण मंे लोकप्रिय हुआ। उन्होंने ग्रामीण स्वच्छता-कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए उचित व्यावहारिक तकनीक, ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशिक्षित मानव-शक्ति की उपलब्धता तथा सबल प्रोत्साहन तथा जागरूकता-अभियान की आवश्यकता पर बल दिया।
डॉक्टर पाठक ने इस बात पर बल दिया कि गैर-सरकारी संगठन स्वच्छता के क्षेत्र में हार्डवेयर तथा साफ्टवेयर दोनों क्षेत्रों मंे संसूचन, प्रोत्साहन तथा सामुदायिक स्तर पर उत्तरपूर्वी देख-रेख में तत्परता से सक्रिय रहे हैं। उनकी अपेक्षा न केवल ग्रामीण लोगों में स्वच्छता के प्रति जागरूकता लाने, बल्कि वे स्वच्छता सुविधाओं का वस्तुतः उपयोग करते हैं, इसे सुनिश्चित करने के लिए भी होती है। अनुभवी गैर-सरकारी संगठन ग्रामीण समुदायों के बीच मानव-संसाधन-विकास में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इन संगठनों के लोगों को लागू हो रही सेवाओं की उपयुक्तता पर तथा सुधार के लिए प्राथमिकताओं के बारे में व्यावहारिक जानकारी रहती है। ये संगठन उत्पादन केन्द्र तथा ग्रामीण स्वच्छता मार्ट भी चला सकते हैं। ये स्वच्छता, स्वास्थ्य-विज्ञान, जल-उपयोग इत्यादि से सम्बद्ध व्यवहार तथा दृष्टिकोण पर आधारभूत सर्वे तथा सुझाव देने में भी उपयोगी हो सकते हैं।
डॉक्टर पाठक ने इस बात पर बल दिया कि इन सभी कार्यकलाप के लिए राज्य-सरकारों को इस क्षेत्र में अनुभवी गैर-सरकारी संगठनों का सावधानता से चयन करना होगा तथा उन्हें केन्द्र तथा राज्यों द्वारा वहन किए जाने वाली कुल परियोजना-लागत की 15 प्रतिशत राशि भी इन संगठनों को उपलब्ध करानी होगी।
राज्य सरकारों के प्रतिनिधियों ने निर्मल भारत अभियान और महात्मा गाँधी रोजगार गारंटी योजना के समन्वय से सम्बद्ध कई मुद्दों का उल्लेख किया और कहा कि ये दो कार्यक्रम पदाधिकारियों के दो अलग-अलग दलों द्वारा कार्यान्वित किए जाते हैं। इनकी प्राथमिकताएँ भी भिन्न हैं, अतः इन्हें एक साथ मिलाना कठिन प्रतीत होता है। उन्होंने पेयजल तथा स्वच्छता-मन्त्रालय को इन विभेदों का समाधान करने के हेतु उपयुक्त कदम उठाने का अनुरोध किया, ताकि ग्रामीण स्वच्छता-कार्यक्रम ठीक से चल सके। राज्य-सरकारों ने घरेलू शौचालयों के विविध उपयुक्त नमूनों, प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं तथा जागरूकता-अभियान सशक्त करने की आवश्यकता पर बल दिया ताकि, यह कार्यक्रम सफल हो सके।
साभार : सुलभ इण्डिया दिसम्बर 2012