सीता गोपालकृष्णन
पेयजल और स्वच्छता में तकनीक का योगदान समझने के बाद पेयजल और स्वच्छता मन्त्रालय ने एक पुस्तिका प्रकाशित की है। इन सुझावों के आधार पर ग्रामीण क्षेत्रों में कम दाम में उन्नत तकनीक के साथ पेयजल और स्वच्छता की सुविधाएँ पहुँचाई जा सकती हैं।
`उन्नत तकनीक का ग्रामीण पेयजल और स्वच्छता में योगदान का सार-संक्षेप’ शीर्षक से प्रकाशित किताब में कई नई तकनीकों की सूची बनाई गई है जिनका विकेन्द्रित तरीकों से इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें पानी को साफ करने के लिए 22 और सीवेज एवं अपशिष्ट जल शोधन की सात प्रणालियों के बारे में विस्तार से बताया गया है। साथ ही ओएंडएम प्रणाली की जानकारी के साथ सेवा प्रदान करने वालों से सम्पर्क का पता भी लिखा है।
इस पुस्तिका में दी गई तकनीकों में पानी की सफाई के लिए निश्चित धारिता वाले डीआयोनाइजेशन प्रौद्योगिकी का ब्योरा दिया गया है। इसके अलावा जिन तकनीकों का जिक्र किया गया है वे हैं जलदूत अल्ट्रा फिल्ट्रेशन मेमब्रेन्स, जलतारा जो कि बैक्टीरिया सम्बन्धी प्रदूषण दूर करने के लिए धीमी गति का सैंड वाटरफिल्टर है।
इस पुस्तिका में अन्य प्रणालियों के अलावा पीएंडजी और बिजली से चलने वाली जल शोधन प्रणालियों का भी जिक्र है। सम्पर्कों के ब्योरे के साथ-साथ विभिन्न किस्म के केमिकल नैनो तकनीक, आरओ व यूवी आधारित जल शोधन प्रणालियों का भी जिक्र है। उन तकनीकों का भी जिक्र है जो पानी के प्रयोग का आयतन, पानी की फिजूलखर्ची और पानी की स्वचालित वेंडिंग मशीन भी शामिल हैं।
स्वच्छता समाधान
निम्नलिखित कुछ सीवेज और एफ्लुएंट तकनीक हैं जिनके बारे में किताब में लिखा गया है।
1. सीवेज और एफ्लुएंट (बहिस्राव) के लिए सॉयल (मृदा) बायो तकनीक
आईआईटी मुम्बई द्वारा विकसित यह तकनीक जीवाणु द्वारा पानी में मौजूद जैविक और अजैविक चीजों को उपयोगी उत्पादों में बदल देती है। यह अवसादन (सेडीमेंटेशन), रिसना (इनफिल्ट्रेशन) और जैव गिरावट (बायो-डिग्रेडेबल) जैसे आसान सिद्धान्त पर काम करती है। यह अमोनिया, नाइट्रोजन और ठोस अपशिष्ट एवं बैक्टीरिया को पर्याप्त मात्रा में हटा देता है। इस पूरी प्रक्रिया के बाद बचा हुआ अपशिष्ट जल खारा नहीं होता। जल में मौजूद सूक्ष्म जीव 5 एमएलडी से कम और हानि रहित होते हैं।
इसमें किसी भी प्रकार की यान्त्रिक और विद्युत ऊर्जा का इस्तेमाल नहीं होता है। यह पानी को साफ करने के लिए बायो-केमिकल का प्रयोग करता है और मिट्टी को पोषक तत्व प्रदान करता है। इस प्रक्रिया को पूर्ण होने में 6-7 घण्टे का समय लगता है और यह किसी भी प्रकार का अपशिष्ट या गन्ध पैदा नहीं करता। इसके संचालन और रख-रखाव में किसी भी प्रकार के विशेष कौशल की आवश्यकता नहीं पड़ती।
2. अपशिष्ट जल शोधन के लिए फायटोरिड तकनीक
इसे राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग शोध संस्थान (नीरी) ने सीएसआईआर के तहत अपशिष्ट जल के पुनः प्रयोग हेतु विकसित किया है। इस प्रक्रिया द्वारा वेटलैण्ड के जल को भौतिक, जैविक और रासायनिक रूप से साफ किया जाता है। यह प्रक्रिया गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत पर कार्य करती है, इसी वजह से इसे किसी और ऊर्जा स्रोत की आवश्यकता नहीं पड़ती।
जलीय वनस्पतियों को विशेष रूप से इसके किनारों पर लगाया जाता है जिससे ये अपशिष्ट जल में मौजूद पोषक तत्वों को सोखकर बीओडी, सीओडी की मात्रा को कम कर देते हैं। इस प्रणाली के लिए लगभग 30 वर्ग मीटर जमीन की आवश्यकता पड़ती है।
3. मानव अपशिष्ट के लिए बायो डाइजेस्टर प्रणाली
बेहद कम तापमान में मानव मल का प्राकृतिक निपटान नहीं हो सकता। इसी वजह से रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने लद्दाख जैसे बेहद ऊँचाई वाली जगह पर सैनिकों के अपशिष्ट निपटान के लिए एक प्रणाली की जरूरत महसूस की।
इस प्रक्रिया में सेप्टिक टैंक जैसे ढाँचे में सूक्ष्म जीवों को छोड़ दिया जाता है ताकि वे अपशिष्ट को खा सकें। इस प्रक्रिया के बाद बचे हुए अपशिष्ट जल को साफ करने के लिए ईख के बेड (खेत) में भेज दिया जाता है। अब साफ हुए पानी को या तो हौदी में जमा करके रख लिया जाता है या फिर खेती और बागवानी के इस्तेमाल हेतु प्रयोग किया जाता है।
यह प्रणाली उच्च तापमान पर अच्छे तरीके से काम करती है। बायो डाइजेस्टर टैंक ईख खेत के साथ किचन और बाथरूम से निकले अपशिष्ट जल के शोधन में भी असरदार है।
4. बायो-गैस प्रौद्योगिकी
ईंधन की आसान पहुँच उन महिलाओं के जीवन को थोड़ा सुविधाजनक बना देती है जिन्हें ऊपर पहाड़ियों या मैदानों में खाना पकाने और रोशनी के लिए जलाऊ लकड़ियों को इकट्ठा करने जाना पड़ता था। जानवर और मानव अपशिष्ट का बायो गैस के लिए इस्तेमाल कीमती ईंधन के उत्पादन का एक सुनहरा अवसर है, साथ ही इसका रखरखाव भी आसान है। जब बायो-गैस संयंत्र शौचालय से जुड़े होते हैं, तब स्वच्छता और ऊर्जा सुरक्षा दोनों लाभ एक साथ मिल जाते हैं।
ऑक्सीजन के अभाव में जब बैक्टीरिया मल के साथ मिलता है तब बायो-गैस बनती है। बायो-गैस ज्यादातर मीथेन और कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस है जिसमें कि अन्य गैसों की मात्रा बेहद कम होती है। गैस के अलावा, बचा हुआ घोल काफी पोषण युक्त होता है, जिसे की सीधे कृषि हेतु उपयोग किया जा सकता है।
फ्लोटिंग ड्रम के रूप में जाना जाता है, काफी लोकप्रिय है वहीं भूमिगत आरसीसी या 'दीनबन्धु मॉडल' ग्रामीण भारत में ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। पशु, पौधे और मानव अपशिष्ट को इसमें सीधे डाला जा सकता है। इस ढाँचे को सूरज की रोशनी में रखने से कक्ष के अन्दर का तापमान बढ़ जाता है जिससे कि बायो गैस उत्पादन को बढ़ाने में मदद मिलती है। इस तरह उत्पन्न बायो गैस गन्धमुक्त, लाभप्रद और पर्यावरण अनुकूल होती है।
5. मलजल उपचार के लिए अनुक्रमिक बैच रिएक्टर (SBR) प्रौद्योगिकी
इस प्रणाली में जैविक प्रक्रिया द्वारा पहले से उपचारित अपशिष्ट जल का शोधन किया जाता है। इस उपचार को अलग चरणों या चक्रों में बाँटा गया है। प्रत्येक चरण में वेंटिलेशन, शोधन और निथारना शामिल है।
लम्बित अपशिष्ट को बैठ जाने के बाद हटा दिया जाता है और ऊपर तैरते द्रव कोनिथारनी द्वारा हटा दिया जाता है। हर चरण में 5-6 घण्टे का समय लगता है। अपशिष्ट जल को साफ करने के लिए इसे कई बार दोहराया जाता है।
6. अपशिष्ट जल बायो मेमब्रेन रिएक्टर (एमबीआर)
यह प्रक्रिया बिना किसी रसायन की मदद के
दूषित जल से अधिकतम जीवाणुओं को हटाने में सक्षम है।
इसमें खोखले फाइबर मेम्ब्रेन का उपयोग किया जाता है जो कि जैविक टैंक में डूबे रहते हैं। सीवेज या अपशिष्ट जल से उच्च गुणवत्ता वाले चूना का निर्माण होता है।
यह प्रणाली बेहद कम जगह पर स्थापित की जा सकती है और इसमें अलग से किसी टैंक की जरूरत भी नहीं होती। यह उपयोग और संचालन की दृष्टि से भी आसान है।
7. अपशिष्ट जल के लिए मूविंग बेड बायो-फिल्म रिएक्टर (MBBR) प्रौद्योगिकी
हजारों पॉलीथीन अपशिष्ट जल के साथ बहती रहती हैं जो कि जीवाणुओं को पनपने के लिए सही जगह उपलब्ध कराती हैं। परिणामतः उच्च बैक्टीरिया जनसंख्या जल्द ही बेकार तत्वों को खा जाते हैं।
मोबाइल बायोफिल्म लोड के हिसाब से बेहद संवेदनशील होती हैं इसलिए इन्हें आवश्यकतानुसार समायोजित कर लेना चाहिए। एमबीबीआर एक निश्चित मात्रा में बायोफिल्म को इस प्रणाली में बनाए रखता है जिससे कि लगातार देखरेख और रखरखाव की जरूरत कम रहती है।
कृपया सम्पूर्ण तकनीकों के विषय में जानने के लिए नीचे दिया गया पीडीएफ डाउनलोड करें।