आभा बहादुर
श्रीलंका-सरकार के जलापूर्ति और निकास-व्यवस्था-मन्त्रालय ने 4-7 अप्रैल, 2011 के मध्य कोलम्बो में स्वच्छता पर चौथे दक्षिण-एशियाई सम्मेलन का आयोजन किया। इस वर्ष के सम्मेलन का विषय था ‘स्वच्छता जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाती है।’
सरकार-द्वारा संचालित उक्त सम्मेलन एक द्विवार्षिक समारोह है, जो सार्क के सदस्य देशों में बारी-बारी से आयोजित होता है। यह दक्षिण एशियाई देशों के बीच वार्ता के लिए मंच प्रस्तुत करता है। इस सम्मेलन में आठ देशों की सरकारों, नागरिकों, शिक्षा-जगत् के प्रतिनिधिगण, निजी क्षेत्र के कर्मियों और जनसाधारण और अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। पहला सम्मेलन सन 2003 में ढाका में हुआ था। सन 2006 में इसका आयोजन इस्लामाबाद में और सन 2008 में नई दिल्ली में हुआ था।
श्रीलंका के माननीय जलापूर्ति और निकास-व्यवस्था-मन्त्री श्री दिनेश गुणावर्देना ने प्रतिनिधियों का स्वागत किया।
तीन दिनों के इस सम्मेलन में स्थानीय तथा बाहर के अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञों ने अपने बहुमूल्य प्रस्तुतीकरण दिए। भाग लेने आए प्रतिनिधियों ने सार्वजनिक नीति पर बहस की, अनुभवों और निर्णयों का आदान-प्रदान किया और स्वच्छता पर दक्षिण-पूर्व एशिया-क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग से जनता के सामने आने वाली स्वच्छता और स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं को हल करने की पुनः प्रतिबद्धता पर जोर दिया। उन्होंने संयुक्त-राष्ट्र के सहस्राब्दी-विकास-लक्ष्य से सम्बद्ध क्षेत्र के स्वच्छता लक्ष्य की प्राप्ति पर प्रकाश डाला।
प्रथम सत्र मेें विभिन्न विषयों पर चर्चा की गई, जिनमें स्वच्छता-सम्बन्धी सहस्राब्दी-विकास-लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किए गए प्रयास एवं सामने आईं कठिनाइयाँ, स्वच्छता के प्रति लोगों का दृष्टिकोण, क्षेत्रीय अध्ययन के निष्कर्ष और क्षेत्र के लिए बनाई गई नीतियों तथा उनके लिए धन की उपलब्धता एवं उपयुक्त नीतियों और वित्तीय स्थिति के अनुरूप क्या स्वच्छता को महत्व दिया जा रहा है-जैसे विषय शामिल थे।
स्वच्छता की कमी के कारण इस क्षेत्र के देशों को कुल क्षेत्रीय सकल घरेलू उत्पाद के कम-से-कम 5.8 प्रतिशत के बराबर आर्थिक हानि उठानी पड़ी है। विश्व बैंक के एक अध्ययन के अनुसार, स्वच्छता की कमी से भारत में प्रतिवर्ष 6.4 प्रतिशत की हानि होती है। स्वच्छता पर पिछले दक्षिण एशियाई सम्मेलन के बाद से 7,50,000 बच्चों की मृत्यु अतिसार (डायरिया) से हो गई है।
मानवाधिकार के रूप में स्वच्छता
जलापूर्ति और स्वच्छता-सहयोग-परिषद (डब्ल्यू. एस.एस.सी.सी.) के कार्यकारी निदेशक श्री जाॅन लेन ने स्वच्छता की आवश्यकता पर बल दिया, जो अन्तरराष्ट्रीय स्वच्छता-वर्ष-2008 से अधिक महत्वपूर्ण होता जा रहा है, जब 2015 तक सहस्राब्दी-विकास-लक्ष्य और 2025 तक सभी के लिए स्वच्छता-लक्ष्य की प्राप्ति को रखा गया। इस अवसर पर श्री लेन ने कहा कि ‘स्वच्छता के अभाव में लोग हाशिए पर चले जाते हैं और उनकी बात कोई नहीं सुनता। स्वच्छता का रूपान्तरण दान पर आश्रित निर्धन-क्षेत्र से विशाल सक्रिय क्षेत्र में करना है।’
संयुक्त-राष्ट्र के महासचिव के जल और स्वच्छता पर गठित परामर्श-बोर्ड की सदस्या सुश्री ओलिविया कैस्टिलो ने इस तथ्य पर बल दिया कि स्वच्छता सभी सहस्राब्दी-विकास-लक्ष्यों, विशेष रूप से लक्ष्य 3 और 4 के साथ जुड़ा है। स्कूलों में शौचालयों की कमी से लड़कियाँ बीच में ही पढ़ाई छोड़ देती हैं, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसा होता है। इसके चलते सर्वाधिक मृत्यु अतिसार (हैजे) से होती देखी गई है।
सम्मेलन के दौरान चार तकनीकी-सत्रों की बैठकें हुईं। प्रथम सत्र मेें विभिन्न विषयों पर चर्चा की गई, जिनमें स्वच्छता-सम्बन्धी सहस्राब्दी-विकास-लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किए गए प्रयास एवं सामने आईं कठिनाइयाँ, स्वच्छता के प्रति लोगों का दृष्टिकोण, क्षेत्रीय अध्ययन के निष्कर्ष और क्षेत्र के लिए बनाई गई नीतियों तथा उनके लिए धन की उपलब्धता एवं उपयुक्त नीतियों और वित्तीय स्थिति के अनुरूप क्या स्वच्छता को महत्व दिया जा रहा है-जैसे विषय शामिल थे।
दूसरे तकनीकी-सत्र में अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका-सरकार के प्रतिनिधियों ने अपने-अपने देशों की रिपोर्ट प्रस्तुत की।
तीसरे तकनीकी-सत्र में उपेक्षित क्षेत्रों, स्वच्छता को विशेष बढ़ावा देने और स्वास्थ्यकर प्रबन्धन करने पर सामूहिक विचार-विमर्श हुआ। आपात-स्थिति में ‘वाॅश’, पर्यवेक्षण और दायित्व, जलवायु-परिवर्तन, तकनीकी-विकल्पों और स्वच्छता-सेवाओं के स्थायित्व पर भी चर्चा हुई।
आगामी तकनीकी-सत्र में शहरी स्वच्छता और सार्वजनिक स्वच्छता-जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई। इस सत्र में चर्चा के अन्य विषय थे-स्कूलों में ‘वाॅश’, लड़कियों की विशेष आवश्यकताएँ, प्रबन्धन-ज्ञान, सूचना का आदान-प्रदान, पर्यवेक्षण और दायित्व को सुदृढ़ करना, महत्वपूर्ण नीतियाँ तथा संस्थागत भूमिकाएँ और रणनीतियाँ।
यू.एन.-हैबिटाट के परामर्शदाता डाॅ. कुलवंत सिंह ने दक्षिण एशियाई क्षेत्र के सन्दर्भ में स्वच्छता के ग्रामीण और शहरी आँकड़ों की तुलना प्रस्तुत की। यद्यपि खुले में शौच करने का चलन अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में है, किन्तु शहरी क्षेत्रों में भी यह प्रचलित है, जैसे भारतीय शहरों में 18 प्रतिशत नेपाल में 15 प्रतिशत और सभी देशों को मिलाकर 14 प्रतिशत इसके अतिरिक्त 25-40 प्रतिशत ठोस कूड़ा-करकट शहरों में असन्साधित रहता है और भारत में केवल 30 प्रतिशत गन्दे पानी का संसाधन किया जाता है।
एक सशक्त सरकारी प्रोत्साहन और राजनीतिक इच्छा शक्ति की आवश्यकता; शहरों को खुले शौच से मुक्त करने, साफ-सुथरा, स्वच्छ और रहने योग्य बनाने के लिए राष्ट्रीय सरकारों को शहरी-स्वच्छता-नीति बनानी चाहिए।
एशियाई विकास बैंक की ओर से मुख्य जलापूर्ति और स्वच्छता-विशेषज्ञ श्री आनन्द चिपलुन्कर ने सूरत-वेस्टवाॅटर-रिसाइकिलिंग-परियोजना पर एक प्रस्तुतीकरण दिया और इस पर प्रकाश डाला कि कैसे सरकारी और निजी भागीदारी-नीति इस परियोजना को कार्यान्वित करने में सफल रही, जिसमें सूरत-नगर-निगम, निजी उद्योग और गुजरात-सरकार ने मिलकर भाग लिया।
संस्तुति
सैकोसेन-4 (साउथ एशियन काॅन्फ्रेंस आॅन सैनिटेशन) में सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन की प्रतिनिधि के रूप में लेखिका को सत्र की रिपोर्टिंग करने का सुअवसर प्राप्त हुआ और प्रारम्भिक सत्र की निम्नलिखित अनुशंसाओं को ‘कोलम्बो घोषणा-पत्र’ में शामिल करने के लिए प्रस्तुत करने का सौभाग्य मिलाः एक सशक्त सरकारी प्रोत्साहन और राजनीतिक इच्छा शक्ति की आवश्यकता; शहरों को खुले शौच से मुक्त करने, साफ-सुथरा, स्वच्छ और रहने योग्य बनाने के लिए राष्ट्रीय सरकारों को शहरी-स्वच्छता-नीति बनानी चाहिए, जिसके लिए विश्वसनीय आँकड़ों की आवश्यकता है; कार्य-सम्पादन को मान्यता देने के हेतु प्रोत्साहन के साथ स्वच्छता-नीति विकसित करनी चाहिए, ताकि राज्यों और शहरों को प्रोत्साहन मिले; बिना सम्पत्ति के अधिकार की चिन्ता किए मूलभूत स्वच्छता-सेवाओं में शहरी औपचारिक बस्तियों को शामिल करना, ये तथ्य गरीबी-उन्मूलन और सहस्राब्दी-विकास-लक्ष्यों को प्राप्त करने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं; किफायती, पर्यावरण के अनुकूल और सांस्कृतिक दृृष्टि से स्वीकार्य, स्थल पर ही निपटान-तकनीक की व्यवस्था के माध्यम से स्वच्छता-सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए सरकारी एवं निजी भागीदारी वाले माॅडल शहरी परियोजनाओं में अपनाने होंगे।
त्रिदिवसीय दक्षिण एशियाई सम्मेलन के मन्त्रिस्तर की बैठक को सम्बोधित करते हुए श्रीलंका के माननीय राष्ट्रपति महामहिम श्री महिन्दा राजपक्षे ने दक्षिण एशिया के नेताओं से अपील की कि वे अपने भारी रक्षा-व्ययों को कम करके क्षेत्र की निर्धनता और विपन्नता में कमी लाने के लिए अनुसंधान और प्रौद्योगिकी पर ध्यान दें।
‘हमें आर्थिक विकास का लाभ लोगों को फिर से वापस देना है, ताकि वे अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा कर सकें।’ श्री राजपक्षे ने कहा, ‘ग्रामीण व्यय, जिसमें पानी, स्वच्छता एवं साफ-सुथरे पर्यावरण की व्यवस्था शामिल है, हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए, न कि हथियारों और रक्षा-सम्बन्धी वस्तुओं पर व्यय। अतः इस प्रकार के मन्त्रिस्तरीय सम्मेलन में विश्व से दृढ़ता के साथ हमें यह अपील करनी है कि रक्षा पर होने वाले व्यय की निधि का विकास के लिए उपयोग किया जाए।’
जीवन की गुणवत्ता पर प्रभाव
भारत-सरकार के माननीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज्य मन्त्री श्री विलासराव देशमुख ने कहा, ‘स्वच्छता-सुविधाओं के अभाव से निर्धनता में कमी लाने और आर्थिक विकास में बाधा आती है, जिससे जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है, विशेष रूप से विश्व के कुछ निर्धनतम देशों की महिलाओं और बच्चों की। अतः इस क्षेत्र के लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने और मृत्यु और रोग को कम करने के लिए स्वच्छता और साफ-सुथरे पर्यावरण की व्यवस्था आवश्यक है। स्वच्छता को कभी-कभी ‘टैबू’ कहा जाता है, किन्तु सही अर्थों में यह मानव-विकास की बुनियाद है।
‘ग्रामीण व्यय, जिसमें पानी, स्वच्छता एवं साफ-सुथरे पर्यावरण की व्यवस्था शामिल है, हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए, न कि हथियारों और रक्षा-सम्बन्धी वस्तुओं पर व्यय। अतः इस प्रकार के मन्त्रिस्तरीय सम्मेलन में विश्व से दृढ़ता के साथ हमें यह अपील करनी है कि रक्षा पर होने वाले व्यय की निधि का विकास के लिए उपयोग किया जाए।’
ग्रामीण स्वच्छता के क्षेत्र में आने वाली जिन चुनौतियों का सामना भारत कर रहा है, उनमें स्थायी शौचालय-प्रयोग, व्यवहार-परिवर्तन, राज्यों और जिलों में विविध प्रकार के कार्य, जनसंख्या-वृद्धि को कम करने सम्बन्धी कार्यक्रमों को गतिशील बनाना, निर्धनतम घरों को स्वच्छता की सुविधा उपलब्ध कराना, सूखा और गीला कूड़ा-प्रबन्धन की ओर ध्यान देना, आँकड़ा-संग्रह-प्रणाली और विभिन्न प्रकार के अनुमानों और प्रयोगों को स्वीकार करना इत्यादि शामिल हैं।’
मन्त्री महोदय ने आगे कहा, ‘नेपाल में आयोजित होने वाले आगामी सैकोसैन (दक्षिण एशियाई स्वच्छता-सम्मेलन) में अब-तक हुई प्रगति की समीक्षा की जाएगी। हमारा प्रयास तब-तक जारी रहेगा, जब-तक कि दक्षिण एशिया के प्रत्येक बच्चे, महिला और व्यक्ति को, चाहे वह कैसी भी आर्थिक स्थिति में हो, किसी भी जाति अथवा शारीरिक-मानसिक स्थिति का हो, साफ-सुथरा और स्वस्थ जीवन जीने के योग्य सुविधा नहीं मिल जाती है।’
शाम की शुरुआत रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों, यथा-संगीतमय लोकगीतों और ढोल की थापों से हुई। तत्पश्चात् अगामी सैकोमैन-5 का दायित्व नेपाल-सरकार को सौंपने का समारोह हुआ।
सम्मेलन-स्थल पर एक प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया था, जिसमें सरकारी, नागरिक समाज और अन्तरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सार्क देशों के बहुत-से प्रतिनिधियों ने सुलभ का स्टाॅल देखा और सुलभ की स्थल पर ही निपटान, कम खर्च और पर्यावरण के अनुकूल तथा सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य तकनीक की प्रशंसा की, जो दक्षिण एशिया क्षेत्र की खुले में शौच की समस्या का समाधान है।
साभार : सुलभ इण्डिया मई 2011