राजस्थान की सैंकड़ों ग्राम पंचायतों ने निर्मल ग्राम पुरस्कार जीता है। यह पुरस्कार भारत सरकार गाँवों को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) और स्वच्छ बनाने में कामयाबी हासिल करने वालों को देती है। समूचे चुरू जिले को ओडीएफ बनाने के लिए जिला कलेक्टर द्वारा छेड़ा गया अभियान राजस्थान में कामयाबी की इन्हीं दास्तानों में से एक है। इस मुकाम को आमतौर पर अव्यावहारिक मान कर खारिज किया गया था। इसलिए कुछ महीनों के भीतर ही 28 ग्राम पंचायतों के एक समूचे प्रखण्ड और 50 अन्य ग्राम पंचायतों के पूरी तरह ओडीएफ बन जाने पर कई लोगों को हैरानी हुई। समूचा चुरू जिला पूरी तरह ओडीएफ बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है।
इस बदलाव के केन्द्र में स्वच्छता को बढ़ावा देने में सक्रिय दिलचस्पी रखने वाला एक मजबूत नेतृत्व रहा है। जिला कलेक्टर रोहित गुप्ता की पहल पर यह अभियान नवम्बर 2013 में शुरू किया गया था। झालावाड़ में इसी पद पर रह चुके श्री गुप्ता ने अक्टूबर 2012 में चुरू के जिला कलेक्टर का पद सम्भाला था। अभियान की रफ्तार बनाने और उसे बरकरार रखने में देश, राज्य और जिला स्तरों के वरिष्ठ राजनीतिज्ञों और प्रशासनिक अधिकारियों की ओर से हौसला आफजाई उपयोगी साबित हुई है।
जिला परिषद के अध्यक्ष और अन्य निर्वाचित प्रतिनिधियों समेत चुरू जिले के सभी महत्वपूर्ण भागीदारों ने माह भर के अन्दर ही इस साझा सपने को अंगीकार कर लिया। वे सामुदायिक नेतृत्व वाले एक ऐसे जन अभियान के उदय के गवाह बने जिसके परिणामस्वरूप एक-एक करके गाँव खुले में शौच से मुक्त होते गए इस पहल की सफलता में जिला कलेक्टर और जिला प्रमुख के सक्रिय नेतृत्व के अलावा अभियान की रूपरेखा का भी बड़ा योगदान रहा। अभियान में संस्थागत व्यवस्था, संचार क्षमता निर्माण, चरणबद्धता, वित्त प्रबन्ध, निगरानी और प्रोत्साहन का पूरा ध्यान रखा गया।
संस्थागत व्यवस्था
विभिन्न स्तरों पर मजबूत संस्थागत व्यवस्था के बिना इतने बड़े पैमाने पर अभियान चलाना सम्भव नहीं था।
जिला स्तर: अभियान की निगरानी की सर्वोच्च जिम्मेदारी जिला स्वच्छता मिशन की है। मिशन का अध्यक्ष जिला प्रमुख और सह-अध्यक्ष जिला कलेक्टर है। जिला पंचायत के मुख्य कार्यकारी अधिकारी का सदस्य सचिव के रूप में मिशन में महत्वपूर्ण किरदार है। विभिन्न सरकारी विभागों के जिला-स्तरीय अधिकारी मिशन के सदस्य हैं। जिला समर्थन इकाई और जिला संसाधन समूह मिशन को मदद करता है। रोजमर्रा के आधार पर अभियान चलाने की जिम्मेदारी जिला संयोजक के नेतृत्व वाली समर्थन इकाई के विभिन्न क्षेत्रों के पेशेवर स्टाफ सदस्यों की है। जिला संसाधन समूह में तकरीबन 30 सदस्य हैं जिनकी सेवाएँ जरूरत के आधार पर प्रशिक्षण कार्यक्रमों या गाँवों में सामुदायिक पूर्ण स्वच्छता (सीएलटीएस) के प्रवर्तन के लिए ली जाती है।
प्रखण्ड स्तर: प्रखण्ड स्तर पर यह अभियान एक केन्द्रीय समूह की देखरेख में चलाया जाता है। इस समूह में प्रखण्ड पंचायत का प्रधान, सबडिविजनल मजिस्ट्रेट, प्रखण्ड विकास अधिकारी और प्रखण्ड संयोजक शामिल होते हैं।
ग्राम पंचायत स्तर: ग्राम पंचायत स्तर पर भी अभियान एक केन्द्रीय समूह चलाता है। इसमें सरपंच, ग्राम पंचायत का सचिव और एक प्रभारी होता है। प्रभारी का चयन ग्राम पंचायत में पदस्थापित सरकारी कर्मचारियों के बीच से किया जाता है। इसके अलावा कुछ चुनिन्दा ग्राम पंचायतों में दो प्रेरकों की सेवाएँ भी ली जाती हैं।
गाँव/बस्ती स्तर: हर बस्ती के लिए एक निगरानी समिति गठित की गई जिसमें 10 से 20 सम्भावित नेता होते हैं। इन स्वाभाविक नेताओं की पहचान समुदाय प्रवर्तन के दौरान सीएलटीएस तकनीकों का इस्तेमाल करके की जाती है। ग्राम पंचायत स्तर का प्रभारी निगरानी समिति में तालमेल के लिए नर्सिंग सहायकों (एएनएम) आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और स्कूल शिक्षकों के बीच से एक ग्राम-स्तरीय प्रभारी नियुक्त कर सकता है।
संचार और सम्पर्क
जिले में अभियान के लिए विश्व बैंक के जल और स्वच्छता कार्यक्रम (डब्ल्यूएसपी) की मदद से संचार रणनीति तैयार की गई। संचार रणनीति के मुख्य तत्व इस प्रकार हैं-
सम्मान और गौरव को केन्द्र में रखकर अभियान की ब्रांडिंग: अभियान में आदत में बदलाव के लिए संचार की रणनीति के केन्द्र में समुदाय के अन्दर सम्मान और गौरव को रखा गया है। अभियान की ब्रांडिंग इन पहलकदमियों के जरिए की गई:
1. अभियान का नाम ‘चोखो चुरू’ दिया गया (स्थानीय बोली में चोखो का मतलब स्वच्छ और सुन्दर होता है)।
2. अभियान के लिए एक आकर्षक प्रतीक चिह्न का इस्तेमाल किया जाता है जिसका डिजाइन डब्ल्यूएसपी ने तैयार किया है।
3. खुले में शौच करना बन्द करने वाले परिवारों के मकानों पर ‘चोखो घर’ का छापा पेन्ट किया जाता है।
4. सरकारी कार्यालयों में मान्यता बोर्ड लगाए गए हैं जिन पर ओडीएफ ग्राम पंचायतों को ‘चोखो’ चिह्नित किया जाता है।
व्यक्तियों के बजाय समुदाय को लक्ष्य बनाया जाना: जिले ने व्यक्तियों के बजाय समुदाय को अपने संचार के केन्द्र में रखने का फैसला किया। घरों में शौचालय निर्माण तक सीमित रहने के बजाय समूचे गाँवों, ग्राम पंचायतों और प्रखण्डों को ओडीएफ बनाने का लक्ष्य रखा गया। यह रणनीति इस समझ पर आधारित थी कि आदतों में व्यापक बदलाव व्यक्तिगत पसन्दों से ज्यादा सामुदायिक प्रतिमान से प्रभावित होते हैं। समूचे समुदाय को लक्ष्य बनाया जाना इसके सदस्यों पर सामाजिक दबाव भी बनाता है। इससे लोग शौचालय बनाने और उसका इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित होते हैं।
समुदाय आधारित दृष्टिकोण: पिछले अनुभवों से जाहिर है कि समुदाय आधारित अभियान ही सफल होगा। सीएलटीएस प्रवर्तन अभियान की सफलता के लिए महत्वपूर्ण फौरी और सामूहिक कार्यवाही शुरू कराने में प्रभावी है। लेकिन लक्षित आबादी की सब्सिडी की उम्मीद इस रणनीति को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है। इस तरह कि उम्मीदों को खत्म करने के लिए सभी स्तरों पर यह जता देना जरूरी था कि निर्मल भारत अभियान के तहत सरकारी वित्तीय सहायता अपने शौचालय खुद बनवाने वालों को ही मिल सकेगी। इसने समुदाय को शौचालय बनाने और आदत बदलने के लिए सरकारी सहायता का इन्तजार किए बिना जिला संसाधन समूह द्वारा प्रवर्तन के तुरन्त बाद हरकत में आने को प्रेरित किया।
राजस्थान की सैंकड़ों ग्राम पंचायतों ने निर्मल ग्राम पुरस्कार जीता है। यह पुरस्कार भारत सरकार गाँवों को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) और स्वच्छ बनाने में कामयाबी हासिल करने वालों को देती हैं। समूचे चुरू जिले को ओडीएफ बनाने के लिए जिला कलेक्टर द्वारा छेड़ा गया अभियान राजस्थान में कामयाबी की इन्हीं दास्तानों में से एक है। इस मुकाम को आमतौर पर अव्यावहारिक मान कर खारिज किया गया था। इसलिए कुछ महीनों के भीतर ही 28 ग्राम पंचायतों के एक समूचे प्रखण्ड और 50 अन्य ग्राम पंचायतों के पूरी तरह ओडीएफ बन जाने पर कइयों को हैरानी हुई।
अंतरवैयक्तिक संचार पर ध्यान: ग्राम पंचायत के संदर्भ में अभियान दो दिनों के गहन प्रवर्तन और जिला संसाधन समूह द्वारा समुदाय सम्पर्क कार्यक्रम के साथ शुरू होता है। इसे जिला संयोजक श्यामलाल की सीधी निगरानी में एक व्यवस्थित कैलेंडर के अनुसार चलाया जाता है। इससे समुचित संचार रणनीति के साथ अभियान चलाने के लिए उचित माहौल सुनिश्चित होता है।
समेकित अभियान: चोखो चुरू ‘रात्रि चौपाल’ और ‘प्रशासन गाँवों के संग’ जैसे सभी सरकारी सम्पर्क कार्यक्रमों में बातचीत के मुद्दों में शामिल है।
क्षमता निर्माण
इस व्यापक अभियान के लिए डब्ल्यूएसपी के सहयोग से गहन क्षमता विकास कार्यक्रम चलाए गए हैं। डब्ल्यूएसपी ने विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए विशेषज्ञ एजेंसियों और कर्मियों की सेवाएँ लीं। फीडबैक वेंचर्स की मदद से प्रेरकों और संसाधन समूह के सदस्यों के लिए सामुदायिक पूर्ण स्वच्छता पर पाँच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसी तरह जानेमाने विशेषज्ञ श्रीकांत नवरेकर ने सभी प्रखण्डों में प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए। इसके अलावा डब्ल्यूएसपी ने भोरुखा और चैरिटेबल ट्रस्ट की सेवाएँ लीं जिसने संचार, क्षमता निर्माण, निगरानी और आंकलन के काम में विशेषज्ञता वाले दो पूर्णकालिक सलाहकार मुहैया कराए। इन सलाहकारों का काम नियमित बैठकों और कार्यस्थल दौरों के जरिए पंचायती राज संस्थाओं के सदस्यों, प्रेरकों और नोडल अधिकारियों का क्षमता विकास करना था।
चरणबद्धता
अभियान की शुरुआत तारानगर प्रखण्ड में नवम्बर 2012 में जिला कलेक्टर और जिला प्रमुख के नेतृत्व में एकदिवसीय कार्यशाला के साथ हुई। शुरुआत के लिए तारानगर प्रखण्ड को चुने जाने से चोखो चुरू अभियान को जरूरी गतिशीलता मुहैया कराने में मदद मिली। सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट हरीतिमा, प्रखण्ड विकास अधिकारियों इमिलाल शरण और गोपीराम मेहला तथा प्रधान अंकोरी देवी कासवा के सक्रिय नेतृत्व की बदौलत प्रखण्ड की सभी ग्राम पंचायतें दो महीनों में ही ओडीएफ हो गई। इस कामयाबी के बाद अभियान को जनवरी 2013 में सरदार शहर और चुरू प्रखण्डों में शुरू किया गया। मई 2013 तक जिले के सभी छह प्रखण्डों को इस अभियान के दायरे में लाया जा चुका था। चरणबद्धता और तारानगर की सफलता से अभियान से जुड़े लोगों का हौसला बढ़ा तथा शुरुआती चरणों की कामयाब रणनीतियों को पैना बनाने और दोहराने में मदद मिली।
वित्त प्रबन्धन
केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम को लागू करने के अनुभवों से यह जाहिर है कि सिर्फ शौचालय मुहैया कराके अपेक्षित परिणाम हासिल नहीं किए जा सकते। लोग शौचालय खुद बनवाएँ तभी लगेगा कि उनकी आदत में दीर्घकालिक बदलाव आया है। लेकिन इस तथ्य को भी नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता कि गरीबों की वित्तीय स्थिति इसमें आड़े आती है। जिला प्रशासन ने इस बात की हर मुमकिन कोशिश की कि महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी योजना के जरिए श्रम मुहैया कराया जाए और अपेक्षित परिणाम आने के तुरन्त बाद निर्मल भारत अभियान के तहत लाभ जारी किया जा सके।
निगरानी और पुष्टि
पारम्परिक तौर पर सरकारी स्वच्छता कार्यक्रमों में शौचालयों की संख्या गिनी जाती है। लेकिन ज्यादा-से-ज्यादा गाँवों को खुले में शौच से मुक्त बनाने के लक्ष्य वाले अभियान में ओडीएफ ग्रामों की निगरानी के सिवा किसी भी चीज की गिनती नहीं की जा सकती। जिला और प्रखण्ड स्तर पर नियमित समीक्षा बैठकों की संख्याओं के बजाय परिणाम पर गौर किया जाता है। सबकी चिंता इस बात को लेकर होती है कि हर प्रखण्ड में कितनी ग्राम पंचायतें ओडीएफ हो पाई हैं। इसके अलावा जिला कलेक्टर के कार्यालय में एक निगरानी बोर्ड लगाया गया जिस पर सभी ग्राम पंचायतों के नाम दर्ज हैं। इस पर ओडीएफ ग्राम पंचायतों को हरे रंग से रेखांकित किया गया है।
चोखो चुरू अभियान की सफलता के मुख्य कारक
1. अपेक्षित परिणाम हासिल करने के लिए निर्मल भारत अभियान को मुहिम के तौर पर लागू किया गया।
2. इस सफल अभियान को शुरू करने में प्रशासनिक और राजनीतिक प्राथमिकता महत्वपूर्ण थी।
3. अभियान के लिए एक प्रभावशाली संस्थागत व्यवस्था की गई।
4. अभियान को इस तरह बनाया गया कि सरकारी सहायता का इंतजार करने के बजाय समुदाय खुद पहल करें। सरकारी वित्तीय सहायता को सामुदायिक प्रयास के नतीजों के पुरस्कार के तौर पर प्रभावशाली ढंग से वितरित किया जाता है।
5. सामुदायिक प्रयास को बढ़ावा देने के लिए एक असरदार संचार रणनीति अपनाई गई।
6. हर गाँव में अभियान की शुरुआत दो दिवसीय सघन सामुदायिक सम्पर्क और प्रवर्तन कार्यक्रम के साथ की गई। इसका मकसद समूचे समुदाय को सम्मान और गौरव के लिए अपनी आदत बदलने के वास्ते प्रेरित करना था।
7. प्रवर्तन के बाद नियमित फॉलोअप मुहैया कराने के लिए प्रभारी हर गाँव में निगरानी समितियों का समन्वयन करते हैं।
8. सामुदायिक पूर्ण स्वच्छता का नजरिया इस्तेमाल करके प्रौद्योगिकी विकल्पों के सम्बन्ध में क्षमता विकास का काम शुरू किया गया।
9. शौचालयों के निर्माण के लिए किसी भी ठेकेदार और गैर-सरकारी संगठन की सेवा नहीं ली गई। शौचालयों को इनका इस्तेमाल करने वालों ने व्यक्तिगत पसन्द के अनुसार अपनी ही कोशिशों और संसाधनो से बनाया।
10. निर्मल भारत अभियान के तहत लाभ लाभार्थियों के बैंक खातों में सीधे स्थानांतरित किए गए।
11. निर्मल भारत अभियान के तहत ठोस और तरल कचरा प्रबन्धन के लिए कोष का इस्तेमाल ओडीएफ दर्जा हासिल करने के प्रभावी समुदायिक पुरस्कार के तौर पर किया गया।
12. इस अभियान के बारे में ज्यादा जानकारी और नियमित सूचनाएँ www.facebook.comechokhochuru पर हासिल की जा सकती हैं।
(पेयजल और स्वच्छता मन्त्रालय द्वारा डब्ल्यूएसपी की सहायता से तैयार ग्रामीण स्वच्छता पर सर्वश्रेष्ठ व्यवहार के संग्रह ‘पाथवे टू सक्सेस’ के खण्ड दो के मुख्य अंश)
अनुवादक: सुविधा कुमरा
साभार : कुरूक्षेत्र दिसम्बर 2014