संजीव खुदशाह
भंगी शब्द का पर्याय समझने में हमें पूरी सावधानी बरतने की आवश्यकता है क्योंकि यह तो सत्य है कि आज भंगी का पर्याय ‘सफाई’ कार्य हो गया है परन्तु अब तक के अध्ययन से ज्ञात होता है कि पूर्व में भंगी का पर्याय सफाई पेशा नहीं रहा होगा। अब प्रश्न यह उठता है कि भंगी का पर्याय सफाई पेशा कब से हो गया और क्यों हो गया है :
(क) श्री भक्तमाल के रचयिता श्री नाभाजी के टीकाकार
श्री प्रियादासजी प्रभीत (प्रकाशक- तेजकुमार प्रेस बुक डिपो, लखनऊ 1914/ 1951) ग्रन्थ में लगभग 269 भक्तों का विवरण है, इस ग्रन्थ की रचना सन् 1639 ई. के पूर्व अथवा आसपास हुई है।
श्री भक्तमाल के रचयिता श्री नाभाजी के बारे में इस ग्रन्थ में कहा गया है कि वे डोम वंश के थे। कहीं-कहीं उन्हें लोग भंगी भी कह बैठते हैं, खासकर उत्तर प्रदेश में ।
“स्वामी श्री नाभाजी का जन्म डोम वंश में भी कहते हैं परन्तु पश्चिम देश में 'डोम' किसको कहते हैं, यह न जानने वाले लोग इस देश में डोम भंगी का नामान्तरण समझ के 'भंगी' भी कह बैठते हैं। सो, भंगी कहना महा अनुचित, अविचार व पाप है क्योंकि, पश्चिम माडवार आदि देशों में डोम कलावन्त, ढ़ाढ़ी, भाट, कथक इन ज्ञानविद्या के उपजीवियों के तुल्य जाति (ज्ञाती) और प्रतिष्ठा है (भक्तमाल, पृ. 43)।"
इसी ग्रन्थ के पृष्ठ क्रमांक 34 में कहा गया है कि इसमें 1639 ई. पूर्व के भक्तों का विवरण लिया गया है। अत: स्पष्ट है कि इसे सत्रहवीं शताब्दी के पूर्व लिखा गया था। उस समय जहाँगीर का मुगल काल था।
उक्त पंक्ति का भंगी के परिप्रेक्ष्य में विश्लेषण करें तो यह निष्कर्ष मिलता है कि उस समय किसी महात्मा सन्त को भंगी कहना पाप समझा जाता था, डोम नहीं, क्योंकि भंगी घृणित जाति के रूप में प्रचलित हो गया था।
(ख) Ansari Ghous Muslim Caste in U.P An Ethnographic and folk culture pub. 1960. Appendix C :
"भारत में मुस्लिम राजाओं के हमले से पहले यहाँ भंगी नहीं थे। भंगियों को मेहतर भी कहा जाता है। 16वीं सदी में हुमायूँ के घर काम करने वाले नौकरों को मेहतर ही कहा जाता था। यह भी उन्होंने सबूत के साथ प्रतिपादित किया (नरक सफाई, पृ. 23 के अनुसार)।"
अर्थात् आर्यों पर तुर्कों के हमले के बाद 14वीं व 15वीं शताब्दी में भंगी का अस्तित्व रहा होगा एवं भंगी का पर्याय सफाई पेशा से लिया गया था।
(ग) आइए देखें इस सम्बन्ध में डॉ. बाबा आढाब (नरक सफाई भूमिका में) क्या कहते हैं?
"इस हकीकत को स्वीकार करते हुए पिछले तीन-चार सौ वर्षों में ही बनी एक जाति की कर्म कथा के बारे में एक बात तो डंके की चोट पर कही जा सकती है कि इस भंगी जाति का जन्म एक व्यावसायिक आवश्यकता थी। इस बारे में शाहजहाँ के जमाने से सबूत उपलब्ध हो सकते हैं। यह तो बाकायदा साबित होता है कि भंगी जाति का जन्म उत्तर भारत (खासकर दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, गुजरात) में हुआ। सवाल यह है कि पुरानी प्रतिष्ठित जातियों के लोगों के सामने ऐसी कौन-सी मजबूरी थी कि उन्हें ऐसे मनहूस पेशे से जुड़ना पड़ा?
(घ) एन.आर. मलकानी का मत देखें :
"आधुनिक काल में शहरों के विकास के साथ ही भंगी पेशा शुरू हुआ। सबसे पहले मुसलमानों ने इस व्यवसाय की नींव रखी और अंग्रेजों ने इस व्यवसाय को जबरन पुश्तैनी बना दिया और भंगी जाति का ठप्पा लगा (Malkani N.R. Clean people & unclean country New Delhi National Committee for Gandhi Century 1965.)।”
यदि हम कण्डिका 'ग' एवं 'घ' को सत्य मानें, तो सत्य की कसौटी में यह बात खरी नहीं उतरती कि मुसलमानों में नीच कार्य करने वालों को भंगी कहा। (यह अलग विषय है कि उस समय भंगी पेशा का जन्म हुआ था या नहीं।) भंगी तो हिन्दी शब्द है, फारसी नहीं। हालाँकि मेहतर शब्द फारसी है। सम्भव है कि इसके पूर्व भंगी शब्द प्रतिष्ठित रहा होगा। किन्तु इसके भी स्पष्ट प्रमाण-नहीं मिले हैं। चूँकि बाँस को भंग करना, वैदिक रीति को भंग करना तुच्छ एवं विरोधी कार्य था। इसलिए, आर्यों पर हमले के पूर्व से ही भंगी शब्द की प्रतिष्ठा नहीं रही। ये उस समय के हिसाब से आज के आतंकवादी रहे होंगे। इनमें कुछ विशेष जातियाँ जिसे हमने वर्गीकरण ग्रुप 'ब' में लिया है, आती रही होंगी। ये जातियाँ राजा-महाराजाओं के शादी-विवाह जैसे विशेष अवसरों में महल, गाँव आदि सजाने, साफ-सफाई करने, ढोल बजाने का दायित्व निभाती रही हैं। सम्भव है, इन्हें ही तुर्कों के हमले के पूर्व भंगी कहा जाता रहा होगा। यह जाति राजनीतिक रूप से तिरस्कृत थी। किन्तु भगवान बुद्ध द्वारा एक सफाईकर्मी को बौद्ध दीक्षा दिए जाने की बात एक नई दिशा दिखाती है। वह घटना आज से 2500 वर्ष पूर्व की है।
अत: बीच की कड़ियों के अभाव में हमें यह निष्कर्ष निकालना पड़ रहा है कि सम्भवत: 14वीं शताब्दी में भंगी का पर्याय घृणित पेशा (सफाई काम) बना है। किन्तु इन्हें (घृणित पेशावाले को) भंगी क्यों कहा गया, यह प्रश्न अब भी अनुत्तरित है?
आइए, हम इसके पहले सफाई पेशे का वर्गीकरण करें। (कृपया वर्गीकरण चार्ट देखें)
इस वर्गीकरण का अध्ययन करें तो ज्ञात होता है कि; सफाई कार्य छ: प्रकार का हो सकता है।
1. शरीर की सफाई : इस कार्य में बाल काटना, शरीर की मालिश करना तथा सौन्दर्य प्रसाधन लगाना आता है। जाति व्यवस्था के अनुसार यह कार्य करने वाली जाति नाई कहलाती है।
2. कपड़े की सफाई : इस कार्य में कपड़े धोना एवं उन्हें इस्तरी करना आदि शामिल है। जाति व्यवस्था के अनुसार यह कार्य करने वाली जाति धोबी कहलाती है।
3. घर की सफाई (मनुष्यों को) : इस कार्य में घर-आँगन की साफ-सफाई एवं खाना बनाने के बर्तनों की सफाई भी शामिल है। यह कार्य करने वाली जाति, जाति व्यवस्था के अनुसार यादव / राउत कहलाती है।
4. कोठे की सफाई (पशु) : इस कार्य में गाय, भैंस के निवास स्थान (कोठे) की सफाई का कार्य शामिल है। यह कार्य करने वाली जाति, जाति व्यवस्था के अनुसार यादव / राउत कहलाती है।
5. सड़क, सार्वजनिक स्थल की सफाई : सड़क अथवा सार्वजनिक स्थल की सफाई करने वाली जमात, जाति व्यवस्था के अनुसार भंगी कहलाती है।
6. मृत मवेशी गाँव से बाहर फेंकना : छठी प्रकार की सफाई जिसमें ग्राम में मृत मवेशियों (ढोर-डाँगर) को ग्राम के बाहर फेंकना था। यह काम चर्मकार या चमारों के जिम्मे था। यह एक घृणित पेशा था। यह जाति भंगी से भी ज्यादा तिरस्कृत थी क्योंकि ये गाँव के बाहर रहते थे। जबकि भंगी का काम करने वाले कण्डिका 1,2,3,4 की तरह गाँव में रहते थे। सुणीत भंगी को दीक्षा देने के मामले में विवरण मिलता है कि 'राजगृह में सुणीत नाम का भंगी रहता था।' अत: सफाई का कार्य करने वाले गाँव के ही अंश रहे होंगे, ऐसी सम्भवाना है किन्तु कहीं-कहीं ऐसे विवरण भी मिलते हैं कि भंगी गाँव के बाहर रहते थे।
यह स्पष्ट है कि इस वर्गीकरण के आधार पर सफाई कार्य करने वाली सभी जाति, जाति व्यवस्था के अनुसार शूद्र में आती है। किन्तु गौरतलब है कि कण्डिका 1, 2, 3, 4 में आने वाले सफाई कर्मी कण्डिका 5 के सफाई कर्मी की अपेक्षा ज्यादा प्रतिष्ठित हैं। वास्तव में, कण्डिका 1, 2, 3, 4 में सफाईकर्मी, सफाई कर्मचारी (भंगी) नहीं कहलाते हैं। किन्तु केवल कण्डिका 5. के कामगार ही सफाई कामगार कहलाते हैं। इन दोनों में अन्तर व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक सफाई का है। इस तरह की सार्वजनिक सफाई किसी खास मौके पर जैसे शादी-विवाह, अतिथि-आगमन आदि के मौके पर की जाती थी। यह काम कुछ जातियाँ करती थीं किन्तु इन्हें सार्वजनिक रूप से (सामूहिक रूप से) भंगी कहा जाता था। जैसे डोम को, डोम की अन्य रूप में प्रतिष्ठा भी होती थी किन्तु भंगी रूप में सामाजिक तिरस्कार का सामना भी करना पड़ता था। अत: कण्डिका 5 का कार्य करनेवाली जातियाँ वैकल्पिक कार्य के आधार पर ही भंगी कहलाती थीं।
यह भी सम्भव है कि केवल उस काम के समय ही घृणा की जाती है। श्री नाभाजी के प्रकरण से ऐसा अनुमान होता है ।
क्या मेहतर क्षत्रिय हैं?
मुगल या दूसरे मुस्लिम बादशाहों के आगमन के पश्चात जिन राजनीतिक बन्दियों से, जो क्षत्रिय सैनिक थे, जबरिया टट्टी-पैखाने का घृणित कार्य करवाया गया उस समय के पेशे को भंगी नाम दिया गया। जिन्हें वे मेहतर भी कहते थे। किन्तु चालू नाम भंगी भी प्रचलित हो गया एवं कालान्तर में यह शब्द अत्यधिक घृणा का पात्र बना।
श्री अमृतलाल नागरजी ने अपने उपन्यास 'नाच्यो बहुत गोपाल' में ‘पतित प्रभाकर' पुस्तक के हवाले से एक सूची प्रकाशित की जिसमें उन्होंने दर्शाया कि भंगियों के सरनेम तथा राजपूत सरनेम आपस में बिल्कुल मिलते हैं । इस प्रकार उन्होंने यह सिद्ध किया कि मेहतर के मूल राजपूत होने में कोई सन्देह नहीं है।
'पतित प्रभाकर' पुस्तक से (मेहतर इतिहास)
नाम जाति नाम - बैस, खैरवार, बीर गुजर, (बग्गूजर) भदौरिया, बिसेन, सोवा। बुन्देलिया, चन्देल, चौहान, नादो, यदुवंशी, कछवाहा, किनवार ठाकुर, बैस, भोजपुरी राउत, गाजीपुरी राउत, गहलौत (ट्राहब एण्ड कास्ट ऑफ बनारस)
मेहतर भंगी - गाजीपुरी राउत, दिनापुरी राउत, टांक (तक्षक), गहलोत, चन्देल, टिप्पणी- इन जातियों के जो यह सब भेद हैं वह सबके सब क्षत्रिय जाति में भी भेद या किस्म हैं।
हलाल खरीया चूहड़ - (देखिए ट्राइब एण्ड कास्ट ऑफ बनारस 1872 ए डी)
राजपूत - 8. गहलोत, 7. कछवाहा, 14. चौहान, 16. भदौरिया, 26. किनवार, 27. चन्देल, 29. नकरवार, 31. बैस, 39. बिसेन, 53. यदुवंशी, 99. बुन्देला, 48. बडगूजर पन्ना, 222. पन्ना, 235. दजोहा या जदुवंशी, गूजर, पन्ना, 248. राउत ।
जब भंगी या मेहतर जाति भेद राजपूतों की जाति भेद या किस्म से बिल्कुल मिलता है, तो उनके क्षत्रिय होने में क्या सन्देह है! (ले. महादेव सिंह चन्देल बनारस, पृ. भाग 9 'नाच्यो बहुत गोपाल' द्वारा अमृतलाल नागर)
श्री नागरजी ने अपने इस उपन्यास में यह निष्कर्ष निकाला है कि कुछ जातियों को जोर-जबर्दस्ती से भंगी बनाया गया। इसके समर्थन में उन्होंने 'मार-मार के भंगी बनाना' कहावत का हवाला भी दिया।
दूसरी ओर एन्थोबिन शब्दकोश के अनुसार "उच्च वर्ण के सामाजिक बन्धनों और आचार संहिता का पालन न करने वाले लोगों को बहिष्कृत किया जाता था, और वे ही बाद में भंगी बन गए।"
वही स्टीफन फ्यूकस ने निमाड़ जिले के अपने सर्वेक्षण से निष्कर्ष निकाले हैं कि मेहरत मिश्र वांशिक है। क्योंकि वे अपनी जाति में औरों को मुक्त प्रवेश देते हैं। किसी भी जाति के सामाजिक या नैतिक कारणों से बहिष्कृत व्यक्ति इस जाति के साये में चले जाते हैं।
हमारे इस शीर्षक का विषयवस्तु सिर्फ यह नहीं है कि हम यह सिद्ध करने का यत्न करें कि मेहतर क्षत्रिय थे। किन्तु हम पाठकों का ध्यान इस ओर भी आकर्षित करना चाहेंगे कि उक्त तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि मेहतरों का सम्बन्ध निश्चित रूप से उच्च वर्ण से है।
साभार : सफाई कामगार प्रारम्भ की परिकल्पना, प्रकार, भंगी का अभिप्राय एवं वर्गीकरण