बन्द पड़े शौचालयों की सुध लेने वाला कोई नहीं

जनसत्ता संवाददाता। नई दिल्ली, 5 जून। विश्व पर्यावरण दिवस पर दिल्ली में भले ही केन्द्र और राज्य सरकार के साथ अन्य गैर सरकारी संस्थाएँ दिल्ली को प्रदूषण मुक्त बनाने का संकल्प और नई पहल पर जोर दे रही हों पर राजधानी में अभी भी इसके विकल्प पर कोई गम्भीर नहीं दिख रहा। राष्ट्रमण्डल खेलों के समय दिल्ली में सैकड़ों की संख्या में बनाए गए शौचालय कहीं बन्द पड़े हैं तो कहीं उस पर अवैध कब्जा हो गया है। यही हाल दिल्ली नगर निगम के शौचालय का भी है। ऐसे इलाकों की भरमार है जहाँ के लोग अभी भी खुले में शौच करने को बाध्य हैं यह हालत तब है जब दिल्ली में प्रदूषण चिंताजनक स्थिति में पहुँच गया है। सेंटर फार साइंस एण्ड एनवायरमेंट (सीएसई) ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा है कि ओजोन के बढ़ते स्तर से दिल्ली महफूज नहीं है।

 

कई जगहों पर तो माफिया ने इन शौचालय परिसरों को अपनी चपेट में ले लिया है और यहाँ निशुल्क का बोर्ड हटाकर खुद शुल्क लेने वाला बन बैठा है। इतना ही नहीं हालात तो तब बदतर जान पड़ते है जब कई शौचालयों में ताला लगा दिखता है। इनका रख-रखाव भी अलग-अलग इलाके में अलग-अलग एजेंसियों के हाथों में है। इसलिए सभी एजेंसियाँ अपने को इन मसलों से अलग बताकर पिण्ड छुड़ाना चाहती हैं। इन परिस्थितियों में झुग्गी झोपड़ी में रहने वालों के लिए सिवाए खुले में शौच करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।

 

राजधानी में दिल्ली विकास प्राधिकरण, दिल्ली नगर निगम, नई दिल्ली नगर पालिका परिषद, दिल्ली छावनी बोर्ड के साथ ही शहरी आश्रय बोर्ड सहित कई अन्य एजेंसियों के कार्यों का बंटवारा अलग-अलग तरीके से किया गया है। निगम के जिम्मे सीवर और साफ-सफाई को प्रमुखता से रखा गया है तो दिल्ली विकास प्राधिकरण लोगों के लिए रिहाइश के साथ ही पार्कों का रख-रखाव, कई इलाके में शौचालयों का निर्माण और अन्य कार्य भी करता है। नई दिल्ली नगरपालिका परिषद एक खास हिस्से को बना दिया गया है जिसके अन्दर वे नागरिक सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए अधिकृत हैं। इसी प्रकार दिल्ली छावनी बोर्ड भी है। बावजूद इन सभी एजेंसियों के दिल्ली में प्रदूषण और पर्यावरण के प्रति सरकार की चिंता संदिग्ध है।

 

 

 

केन्द्र औऱ राज्य सरकार इन सभी मूलबिन्दुओं पर कितनी चिंतित है यह कुछ उदाहरणों से पता चलता है। राष्ट्रमण्डल खेलों के समय बने खोखेनुमा शौचालय इस समय मृत प्राय अवस्था में हैं। कहीं ताले लगे हुए हैं तो कहीं उसका उपयोग ही नहीं हो रहा है। राष्ट्रमण्डल खेल गाँव में कई शौचालय एक साथ बना दिए गए। नोएडा मोड़, पीडब्ल्यूडी दफ्तर, निजामुद्दीन पुल, सराय काले खाँ और कारगिल स्मृति मार्ग, राजीव गाँधी पार्क से लेकर राष्ट्रीय विज्ञान केन्द्र, प्रगति मैदान, मण्डी हाउस, सुप्रीम कोर्ट से लेकर कनाट प्लेस, बाराखम्भा रोड, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन जैसे इलाके में स्थित दर्जनों शौचालयों को देखने वाला कोई नहीं है।

 

कई जगहों पर तो माफिया ने इन शौचालय परिसरों को अपनी चपेट में ले लिया है और यहाँ निशुल्क का बोर्ड हटाकर खुद शुल्क लेने वाला बन बैठा है। इतना ही नहीं हालात तो तब बदतर जान पड़ते है जब कई शौचालयों में ताला लगा दिखता है। इनका रख-रखाव भी अलग-अलग इलाके में अलग-अलग एजेंसियों के हाथों में है। इसलिए सभी एजेंसियाँ अपने को इन मसलों से अलग बताकर पिण्ड छुड़ाना चाहती हैं। इन परिस्थितियों में झुग्गी झोपड़ी में रहने वालों के लिए सिवाए खुले में शौच करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।

 

साभार : जनसत्ता 6 जून 2015

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