कुमार कृष्णन
केन्द्र सरकार लगातार यह ढोल पीटती आ रही है कि वैज्ञानिक प्रबंधन के कचरे को कमाई का माध्यम बनाया जा सकता हैं। झारखण्ड की राजधानी राँची में केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकार के दावे खोखले साबित हो रहे हैंं। राँची नगर निगम तो कचरा प्रबंधन में बिल्कुल नकारा साबित हो रहा है। यह लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहा है और उनके जीवन को खतरे में डाल दिया हैं।
हैरतअंगेज बात तो यह है कि झारखण्ड उच्च न्यायालय की सख्त निगरानी के बावजूद प्रदूषण नियंत्रण परिषद अस्पतालों से निकलने वाले कचरे के निष्पादन में पूरी तरह विफल रहा है। हर जिम्मेदार विभाग अपनी नाकामयाबी का ठीकरा एक-दूसरे पर फोड़ रहा है।
राँची नगर निगम ने रातू के झिरी में कचरा फेंककर तकरीबन दस हजार लोगों के जीवन से खिलवाड़ कर रही है। नगर निगम ने इसके मद्देनजर कचरा निस्तारण प्लांट लगाने की योजना बनाई थी। इसके लिए चार साल पहले नगर निगम ने प्लांट लगाने के लिए एटूजेड कम्पनी को लगभग ढाई करोड़ रुपये की राशि का भुगतान भी कर दिया गया था। उस कम्पनी डम्प यार्ड में सिर्फ पिलर लगाने का काम किया और भाग खड़ी हुई।
इस प्रकरण में झारखण्ड उच्च न्यायालय की फटकार के बाद कार्रवाई के भय आखिरकार मुख्य सचिव राजीव गौवा की अध्यक्षता वाली कमेटी ने अस्पतालों से निकलने वाले बायोमेडिकल कचरे के निस्तारण के लिए झिरी में प्लांट लगाने का फैसला लिया। इसका डीपीआर बनाने का निर्देश भी जारी किया गया। इस कमेटी ने बायोमेडिकल वेस्ट डिस्पोजल प्लांट लगाने का जिम्मा बीसीसीएल के सेन्ट्रल अस्पताल को और जमशेदपुर में टाटा के मेन हॉस्पीटल को दिया है। साथ ही इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को कहा गया है कि अन्य जिलों मेें डिस्पोजल प्लांट लगाने की जिम्मेदारी उठाए। अदालती फरमान के मद्देनजर कमेटी ने गैरनिवंधित अस्पतालों तथा नर्सिंग होम के निवंधन की प्रक्रिया आरम्भ की जाए। इसकी साझा जबावदेही स्वास्थ्य विभाग और प्रदूषण नियंत्रण परिषद को दी गयी है।
यह तो बात हुई अदालती फरमान की। अब बात करें नगर निगम की। राँची नगर निगम ने रातू के झिरी में कचरा फेंककर तकरीबन दस हजार लोगों के जीवन से खिलवाड़ कर रही है। नगर निगम ने इसके मद्देनजर कचरा निस्तारण प्लांट लगाने की योजना बनाई थी। इसके लिए चार साल पहले नगर निगम ने प्लांट लगाने के लिए एटूजेड कम्पनी को लगभग ढाई करोड़ रुपये की राशि का भुगतान भी कर दिया गया था। उस कम्पनी डम्प यार्ड में सिर्फ पिलर लगाने का काम किया और भाग खड़ी हुई। यह दीगर बात है कि जयपुर और रायपुर ब्लैकलिस्टेड कम्पनी एटूजेड को किन हालातों में राज्य सरकार के नगर विकास विभाग ने राजधानी राँची और धनबाद के शहरों में दिया।
आखिरकार कम्पनी झारखण्ड में भी ब्लैकलिस्टेड हो गयी है। कम्पनी के प्रति राज्य सरकार की मेहरबानी का खामियाजा झिरी के लोगों को भुगतना पड़ रहा है। चार सालों के दौरान छह लाख टन कचरे एकत्र हो गए। चार सालों के दौरान निगम ने पहली बार फोगिंग और कीटनाशकों का छिड़काव किया। चार सालों से इसकी कोई फिक्र न तो निगम के अधिकारियों को थी न ही जनता के चुने नुमाइन्दे को। चार साल तक कचरा निष्पादन का काम दूसरी कम्पनी के चयन के नाम पर टलता रहा। हाल ही में सरकार ने एक कम्पनी का चयन किया है। यही सरकारी काम की कार्य संस्कृति है।
इससे भी खराब हालत है अस्पतालों से निकलने वाले कचरे की। यहाँ से निकलता है बायोमेडिकल कचरा। राजधानी राँची से लेकर राज्य के छोटे-बड़े शहरों में निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम को प्रदूषण कानून के तहत लाइसेंस देने की जवाबदेही प्रदूषण नियंत्रण परिषद की है। वह लाईसेंस देने तक ही अपनी जबावदेही समझता है। आँकड़ों के मुताबिक 990 अस्पतालों तथा नर्सिंग होम को इसने लाइसेंस तो दे रखा है, लेकिन इससे निकलने वाले कचरे का निष्पादन कैसे हो, इसकी फिक्र नहीं है। लाइसेंस धारी से दुगनी संख्या में बिना लाईसेंस वाले अस्पतालों तथा नर्सिंग होम की है। इससे बड़ा क्रूर मजाक क्या हो सकता है कि बायोमेडिकल कचरे के निष्पादन के लिए अब तक सिर्फ एक बायोकेमेकिल वेस्ट डिस्पोजल प्लांट रामगढ़ में लगाया गया है। इसका आलम यह है कि रामगढ़ और आस-पास के अस्पतालों के कचरे भी यहाँ नहीं पहुँचते हैं तो दूर-दराज की बात तो छोड़ें।
सरकार के काम-काज का तरीका इस कदर का है कि हर मामले में अदालत को हस्तक्षेप करना होता है। इस मामले में भी अदालती हस्तक्षेप हुआ। निर्देश जारी हुए। बावजूद इसके अदालती आदेश के प्रदूषण नियंत्रण परिषद डिस्पोजल प्लांट लगाना अपनी जबावदेही नहीं मान रहा है। वह इसकी जिम्मेदारी इंडियन मेडिकल एसोसिएशन पर डाल रहा है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का आरोप है कि उसे जमीन नहीं मिल रही है।